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२७४ मध्यमस्माद्भादरहस्ये खण्ड: ३ का. ९ * घटाकाशसंयांगाचाक्षुपत्वविचारः *
त्वात् । अत एव त्रुटिचाक्षुषानुरोधेन परमाणुन्दयकयोरपि सिद्धिरित्याहुः ।
वच्चिन्त्यम्, चित्रकपालिकास्थले तदसम्भवात् । किञ्च, घटाकाशसंयोगाद्यचाक्षुषत्वानुरोधेन * गयलता
भिधानमिति । लाघवानुरोधादतत्कल्पे द्रव्यतत्समवेतस्पार्शनसाधारण्येन स्पार्शनत्वावच्छिन्नं प्रति स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्धेनव स्पर्शस्य हेतुत्वमिति चेतसि प्रणिधातव्यम् ।
प्रकृतकल्पस्वीकारनान्तरीयकफलविशेषमावेदयन्ति
अत एव द्रव्य तद्वृतिसाधारणचाक्षुषं प्रति स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्व| सम्बन्धन रूपस्य कारणत्वस्वीकारादेव त्रुटित्राक्षुषानुरोधेनेति, उपलक्षणात् 'त्रुटिपरिमाणादिचाक्षुषानुरोधेन इत्यपि द्रष्टव्यम्, परमाणुयणुकयोरपि सिद्धिः विषयतया व्यणुकचाक्षुपाश्रये व्यणुके स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्धेन परमाणुरूपस्यैव वृत्तित्वसम्भवात् त्र्यशुकस्य परमाणुरूपाश्रयपरमाणुसमंवतद्वयणुकवृत्तित्वात् विषयतया त्रसरेणुपरिमाणादिचाक्षुषाधिकरणं त्रसरेणुपरिमाणादी च स्वाश्रयसमवतवृत्तित्वसम्बन्धेन द्वयणुकरूपस्यैव वृत्तित्वसम्भवात् वसंरेणुपरिमाणादेः पशुकरूपाश्रयद्वयणुकसमवेत त्रुटिवृत्तित्वात् । परमाणु द्वद्मणुक्रानुपगमे तु गुणत्वावच्छिन्नस्य द्रव्यमात्रवृत्तित्वनियमेन त्रुटि तत्परिमाणादिचाक्षुषकारणचिरहसिद्ध्या त्रुटितत्परिमाणाद्यचाक्षुषमापद्येत । एतच्च प्रत्यक्षविरुद्धमिति निरुक्तकार्यकारणभावबलेन त्रुटितत्परिमाणादिचाक्षुषान्यधानुपपन्या परमाणुरूप द्व्यशुकरूपयाः सिद्धौ तदाश्रयतया परमाणु द्व्यणुकयोरपि सिद्धिरप्रत्यूहवेति केषाञ्चिदभिप्रायः ।
आहुरित्यनेन प्रकरणकृता स्वकीयाऽस्वरसोद्भावनं कृतम् । तदेव कण्ठत आवेदयति तचिन्त्यमिति । चिन्ताची जमेच प्रदर्शयति चित्रकपालिकास्थले नानारूपवदवयवारब्धकपालिकासमवेतकपालारब्धपदस्थले तदसम्भवात् - घटतत्सम|वेतपरिमाण संयोग कस्वप्रभूतिचाक्षुषाऽनुपपत्तेः । नानारूपवदवयवारम्भवदस्येव तत्र कपालिकाया नानाजातीयरूपवदवपवारच्यत्वेन नीरूपत्वसिद्धः तत्समचेतपालनीरूपत्वसिद्धया न नत्र घंटे स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्धेन कपालिकारूपं वर्तते न वा नदुद्घदसमवेतपरिमाणादी स्वाश्रयसमवेतद्वृत्तित्वसम्बन्धेन कपालरूपं वर्तते येन तचाक्षुषं सम्भवत् । सार्वजनीनञ्च नानारूपवदवयवारब्धकपालिकासमंवतकपालारब्धघट तत्परिमाणादिगीचरं चाक्षुषम् । ततश्चैतादृशच्यतिरेकव्यभिचारादेव न विषयतया द्रव्यतत्परिमाणादिचाक्षुषं प्रति स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्धन रूपस्य कारणत्वाभिधानं सङ्गतिमङ्गति ।
'इत्थञ्च तादृशघटस्य नीरूपत्वं तादृशघटवृत्तिसंयोगादिचाक्षुपं न स्यादिति वक्ष्यमाणग्रन्थप्रस्तावार्थमुपक्रमते किचेति । यदि विषयतया द्रव्य तत्समवेतगोचरचाक्षुषं प्रति स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्धेन रूपस्य कारणत्वं स्यात् तदा घटाकाशसंयोगादिचाक्षुषमपि स्यादव, कपालरूपस्य स्वाश्रयसमवेतवृत्नित्वसम्बन्धेन यदाकाशसंयोगादी सत्त्वात् घटाकाशसंयोगादः कपालरूपाश्रयकपालद्रव्यसमवेतगोचरसमवेतघटवृत्तित्वात् । न च तद् भवतीत्यतो घटाकाशसंयांगायचाक्षुफ्त्वानुरोधेन चानुपत्वावच्छिन्नं दोनों के चाप साक्षात्कार की अनुपपत्ति हो सकती नहीं है। ऐसा मानने से ही परमाणु और यणुक की भी सिद्धि हो सकती है, क्योंकि ज्यणुक = त्रुटि के प्रत्यक्ष के प्रति परमाणुगत रूप स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्ध से कारण होगा और त्रुटिसमवेत परिमाणादि के प्रति यणुकगत रूप स्वाश्रयसमवेतवृतित्वसम्बन्ध से कारण बनेगा । परमाणु का स्वीकार किये बिना त्रुटि के में त्र्यणुक चाकी उपपत्ति कथमपि संगत न होगी, क्योंकि स्व = परमाणुरूप के आश्रय = परमाणु में समवेत मणुक वृत्ति होने से परमाणु का स्वीकार करने पर ही स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्य सम्बन्ध से परमाणुरूप के आश्रय व्यणुक के चाक्षुप की उपपत्ति होगी एवं त्रुटिंगत परिमाणादि के चाक्षुप की संगति हृयणुक के अङ्गीकार के बिना नामुमकिन है, क्योंकि स्व यणुक की मान्य करने पर ही स्वाश्रयसमवेतवृनित्यसम्बन्ध
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शुकरूप के आश्रय = द्व्यणुक में वृत्ति (समवेत) त्र्यणुक होने से
से रूप के आश्रय त्रुटि के चाक्षुप की उपपत्ति हो सकती है। इस तरह द्रव्य और द्रव्यममवेत के चाय की साधारण कारणता का स्वीकार कर के स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्ध से ही रूप को उसका कारण मानना सुसंगत है'। <रूपविहीन घटवादी के मत की समालोचना
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तचिन्त्यम् इति । मगर प्रकरणकार श्रीमदजी का उपर्युक्त कथन के खिलाफ यह मन्तव्य है कि उक्त मत विचारणीय है, न कि बिना विचार किये स्वीकार्य । इसका कारण यह है कि चित्रकपालिका स्थल में उसका सम्भव नहीं है । अन्तर्निहितार्थ यह है कि जहाँ कपालिका ही विभिन्नरूपवदवयवों से उत्पन्न होगी वहाँ कपालिका भी नीरूप होगी । अतः उस स्थल में घट और घटसमवेत परिमाणादि के चाक्षुष साक्षात्कार की अनुपपत्ति होगी। कपालिका नीरूप होने से कपाल भी नीरूप डी होगा । तत्र कपालिकारूप स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्ध से घट में और कपालरूप स्वाश्रयसमवेतवृत्तित्वसम्बन्ध से घटसमवेत