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७२४ मध्यमस्वाद्वादरहस्ये खण्ड: ३ का. १५ * नानाविधशब्दनाशकताविचारः
शब्दनाशेन, मध्यमानां पुनरुभाभ्यामपीति सम्प्रदायमतमयुक्तम्, प्रतियोगितया नाशत्वावच्छिन्नं प्रति स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्धेन नाशत्वेनैवाऽन्यत्र क्लृप्तेन कार्यकारणभावेन सकलशब्दनाशनिर्वाहात् । तथा च शब्दस्योत्कर्षत: क्षणचतुष्टयावस्थायिविजातीयपवनसंयोगनाश्यत्वेन * जयलता कै
स्वजन्यशब्देन नाश:, अन्त्यशब्दस्य = शब्दजन्यत्वे सति शब्दाजनकस्य शब्दस्य कारणशब्दनाशेन = स्वजनकशब्दनाशेन स्वकार्यशब्दस्वजनकशब्दनाशाभ्यां अपि नाश, मध्यमानां = शब्दजन्यत्वे सति शब्दजनकानां शब्दानां पुनः उभाभ्यां | नाशः । प्रतियोगितया प्रथमशन्दनाशं प्रति स्वजनकत्वसम्बन्धेन कार्यशब्दस्य हेतुत्वं प्रतियोगितया चरमशदनाशं प्रति स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्धेन कारणाञ्चनाशस्य कारणत्वं तथा प्रतियोगितया मध्यमशदनाशं प्रति स्वजनकत्वसम्बन्धेन कार्यशब्दस्य स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्धेन च कारणशब्दनाशस्य निमित्तत्वमिति सम्प्रदायमतं प्राचीननैयायिकपरम्परामर्त अयुक्तम् नाना कार्यकारणभावकल्पने गौरवात्, आद्यशब्दमात्रस्य शब्दजनकत्वे मानाभावेन शब्दाऽजनप्रधमशदनाशानुपपतेः कत्वादिविशिष्टलौकिकप्रत्यक्षानुपपत्तेश्च । न हि प्रथमक्षणोत्पन्नः ककारः द्वितीयक्षणे क-कवनिर्विकल्पकज्ञानं जनयित्वा तृतीयक्षणं कर्त्याविशिष्टकका - गोचरव्ययसायात्मकलौकिकश्रावणोत्पातकालेऽवतिष्ठते । नागि विषयं विना तज्ज्ञानं भवितुमर्हति लौकिकसाक्षात्कार विषयस्य सहभावेन हेतुत्वात् अन्यथा भ्रमत्वापतेः । सम्प्रदायमतायुक्तत्वसाधकप्रदर्शितहेतूभयनस्य सुकरत्वात्तमुपेक्ष्य हेत्वन्तरमाहुः प्रतियोगितयेति । अयं भावः घटनाशः प्रतियोगितासम्बन्धेन घंटे वर्तते तत्र च स्वप्रतियोगिजन्यत्त्वसम्बन्धेन कपालद्रयविजातीयसंयोगनाश: तत्कारणमपि वर्तत एव । एवं प्रतियोगिता पन्ना पटेऽस्ति तत्र च स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्धेन तन्तुविजातीयसंयोगनाशोऽपि वर्तते । तती निरुक्तसम्बन्धन कपालद्वयविजातीयसंयोगनाशत्वावच्छिन्नस्य प्रतियोगितया बदनाशत्वावच्छिन्नं प्रति कारणता, विजातीयतन्तु संयोगनाशलावच्छिन्नस्य पढनाशत्वावच्छिन्नं प्रति हेतुनेति लम्पते । यविशेषयोः कार्यकारणभाव: स तत्सामान्ययारपि असति बाधके इतिन्यायेन प्रतियोगितया नाशत्वावच्छिन्नं प्रति स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्धेन नाशत्वावच्छिन्नस्य घटना पटनाशादिस्थले क्लृप्तेन कारणत्वमवश्यक्ळुानम् | अन्यत्र = प्रमाणसिद्धेन निरुक्तेन कार्यकारणभावेन एव सकलशब्दनाशनिर्वाहसम्भवात् प्रथमादिशन्दनाशस्थलीयनानाकार्यकारण भावाङ्गीकर्तुसम्प्रदायमतमयुक्तम् । न च प्रथमशब्दनाशस्य अनुपपत्तिरिति वाच्यम्, विजातीयनिमित्तपवनसंयोगनाशादेव तन्नाशसम्भवात् ।
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तथा च = निरुक्तकार्यकारणभावसमर्धनेन च शब्दस्य उत्सर्गतः क्षणचतुष्टयावस्थानिविजातीयपवन संयोगनाश्यत्वेन होता है कि आय शब्द का नाश कार्यशब्द से होता है अर्थात् आयशब्दनाश के प्रति आयशब्दजन्य शब्द कारण होता है। मगर अंत्य शब्द का नाश अन्यशब्दजनक शब्द के नाश से होगा, क्योंकि अन्त्यशब्दजन्य कोई शब्द नहीं होने से स्वजन्यशब्द से चरमशब्दनाश नहीं हो सकता है। प्रथम और चरमशब्द के बीच जो मध्यम शब्द हैं, उनका नाश स्वजनकशब्दनाश एवं स्वजन्यशब्द - दोनों से भी होगा। इस तरह शब्दनाश के निर्वाहार्थ प्राचीन नैयायिक के मत में अनेक कार्यकारणभाव का गौरव होता है। इसकी अपेक्षा तो मुनासिब यही है कि प्रतियोगितासम्बन्ध से नाश के प्रति स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्ध मे नाशवेन नाश को ही कारण माना जाय, मां अन्यत्र घटनाश, पटनाश आदि स्थलों में आवश्यक है । आशय यह है कि प्रतियोगितासम्बन्ध से नाशत्वेन घटना घट में रहता है और घट कपालद्रयविजातीयसंयोगजन्य होने से नाशत्वेन कपालद्रयविजातीयसंयोगनाश स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्ध से धद में ही रहेगा । इस तरह घटनाश आदि स्थल में प्रतियोगितासम्बन्ध से नाश के प्रति स्वप्रतियोगिजन्यत्वसम्बन्ध से नाशत्वेन नाश कारण होता है ऐसा कार्यकारणभाव निश्चित ही है और उसी शब्दनाश का भी निर्वाह हो जाता है, अतिरिक्त कार्यकारणभाव की कल्पना का गौरव अनावश्यक है । जैसे स्वशब्द का अर्थ होगा विजातीयपचनसंयोगनाश तथा उसका प्रतियोगी होगा विजातीय-पवनसंयोग, उसकी जन्यता होगी शब्द में अतः स्वप्रतियोगिजन्यतासम्बन्ध से विजातीयवायुसंयोगनाश भी नाश्य शब्द में रहेगा, और उसीमें प्रतियोगिता सम्बन्ध से शब्दनाश रहेगा, क्योंकि शब्दनाश का प्रतियोगी शब्द है । अतएव शब्दजनक शब्द का कार्यशब्द से चरमशब्द का स्वजनकशब्दध्वंस से एवं मध्यम शब्दों का स्वजन्य शब्द से और स्वजनकशब्दनाश से नाश नहीं होता किन्तु (विजातीयवायुसंयोग = 1 जनक के नाश से ही नाश होता है । प्रदर्शित कार्यकारणभाव के अनुसार शब्द का नाश शब्द के प्रथम क्षण में उत्पन्न होगा अधांत चार क्षण तक शब्द की स्थिति रहेगी, क्योंकि शब्दजनक विजातीयवायुसंयोग उत्सर्ग में चार क्षण स्थायी होता है। इस मान्यता में उक्त विजातीयपवनसंयोगनाश से शब्द के पास क्षण में शब्द का नाश होने का क्रम यह है कि उक्त संयोग के इससे क्षण में शब्द उत्पन्न होगा और उसी क्षण में उक्त संयोग के उत्पादक पवनकम का नाश होगा। संयोग के तृतीय क्षण
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