Book Title: Syadvadarahasya Part 3
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 333
________________ ८६६ मध्यमस्याद्वादर ०१:३ EFT. ?? उदयनाचार्यमनादनम न चैवं धूमं प्रति वहन्यभावस्य हेतुतापति:, धूमाधिकरणे वह्रिरूपतदभावस्य विशेषणतयाऽवृत्तेरिति वाच्यम्, विशेषणतयापि तस्य तत्र वृत्तेः, 'वहन्यभावो नास्ती'ति प्रतीतेस्तयैव निर्वाहात् । ॐ जयलता ॐ भावच्छिन्नवृत्तिताक- निरुक्तसंसर्गकार्यांच्यावहिताक्षणावच्छिन्नात्यन्ताभावप्रतियोगितानवच्छेदकरूपवत्त्वं कार्यतावच्छेदकावच्छि प्रति तादृशसम्बन्धेन कारणत्वमित्यभ्युपगमे तू धूमत्वावच्छिन्नं प्रति हेरिव वन्यभावस्यापि कारणत्वं प्रसज्यते धूमत्वावच्छिन्नल्यादाव्यवहितप्राकुक्षणावच्छेदेन सनवायेन धूमाधिकरणेषु धूमावयवेषु संयोगेन पर्वतादिषु विशेषणताविशेपसम्बन्धेन बर्तमानस्य कारणतावच्छेदकसम्बन्धावच्छ्त्रिप्रतियोगिताकस्य बटाभावादेः प्रतियोगिताया अनवकेदकत्वस्य वहन्यभावले सत्त्वात् । न च तस्य बह्निस्वरूपत्वमेव नाभ्युपगम्यत इति वाच्यम्, तदा तत्र बहुभावाज्ञानात् वहन्यभावव्यवहाराच तस्य वह्निरूपताया अनिरा कार्यत्वात् । तदुक्तं न्यायकुसुमाञ्जली उदयनेन 'अभावविरहात्मत्वं वस्तुनः प्रतियोगिता' । (न्या. कु. ३/२) इति । न चा व्यवहितप्राकृक्षणावच्छेदेन धूमाधिकरणे वह्निस्वरूपां वहन्यभावाभावो विशेषताविशेषसम्बन्धेन वर्तत । ततो वहन्यभावत्वं दावाप्रतियोगितानवच्छेदकत्वासत्त्वाद धूमकारणत्वापत्तिरित्याशङ्काम कर्तुं नैयायिका उपक्षिपन्ति न चेति वाच्यमित्यनेनास्यान्चयः । एवं = निरुक्ताभांचे विशेषणताविशेषसम्बन्धावच्छिन्नवृत्तित्वस्य विशेषणविश्रया निवेश, कार्य धूमं = धूमत्वावच्छिन्नं प्रति वर वन्यभावस्य अपि हेतुतापत्तिः, अव्यवहित] कुक्षणावच्छेदेन धूमाधिकरणे बहिरूपतदभावस्य = वह्निस्वरूपस्य प्रतियोगि काभावाभावस्य विशेषणतया स्वनिष्ठविशेष्यतानिरूपितधूमाधिकरणत्वावच्छिन्नविदीषणतासम्बन्धेन अवृत्तः = = असत्वात् इति वाच्यम् । = नैयायिक समादधते विशेषणतया स्ववृत्न्तित्रिदोष्पतानिरूपित्तविशेषणताविशेषसम्बन्धन अपि तस्य = वहन्यभावाभावस्य तत्र - धूमाधिकरणं वृत्तेः सत्त्वात् । यथा घटयति भूतले पाभावाधिकरणको घटाभाव: पटाभावत्वेन रूपेण स्वनिरूपित भूतलल्वावच्छिन्न- विशेषणताविशेषसम्बन्धेन वर्तन घटाभावत्वेन रूपेण तु कालिकविशेषणतासम्बन्धेन तथैव अव्यवहितप्राकक्षणावच्छेदेन धूमाधिकरणे वहन्यभावाभावः वह्नित्वेन रूपेण संयोगेन सन्नपि वहन्यभावाभावत्वेन रूपेण तु स्वनिष्ठविशेष्यतानिरूपितधूमाधिकरणत्वावच्छिन्नविशेषणतासम्बन्धेनैव वर्तते। कुतः ? उच्यते धूमधिकरणं हन्यभावो नास्तीति प्रतीतः तथैव निरुक्तविशेषणतयैव निर्वाहात, नास्तित्वावगाहिप्रतीतः संसर्गविधव विशेषणताविशेषस्यैव विषयीकरणात् अन्यथा भूतले घटनास्तीति प्रतीतेरपि विशेषणताविशेषसंसर्गकत्वं न स्यात् । अत्यन्ताभावाभावस्य सप्तपदार्थत्वनयं तु सुतरां विशेषणता* अनलाभावागाव स्वरूपसम्बन्ध से रहता है- जैयायिक = = यहाँ यह शंका कि न कार्याव्यवहितप्राकक्षणावच्छेदेन कार्याधिकरण में विशेषणताविशेषसम्बन्धात्मक स्वरूपसम्बन्ध से रहनेराले अभाव की प्रतियोगिता के अनवच्छेदक को ही कारणता मानी जाय तब तो धूमात्मक कार्य के प्रति जैसे वह कारण है ठीक वैसे ही ह्नि का अभाव भी कारण बन जायेगा, क्योंकि अव्यवहितप्राकक्षणावच्छेदन धूमाधिकरण में विशेषणता विशेषात्मक स्वरूपसम्बन्ध से रहनेवाले अभाव में घटाभाव, पटाभाव आदि, जिनकी प्रतियोगिता का अनवच्छेदक अभावत्व है । श्रमानिकरण में विशेषणनाविशेपसम्बन्ध से रहनेवाले अभाव की प्रतियोगिता का अवच्छेदक अभवत्य त हो सकता है यदि वहाँ विशेषणताविशेपसम्बन्ध से बहिअभावाभाव रहता हो । मगर यह नामुमकिन है, क्योंकि अभाव का अभाव तो स्वरूप ही है, क्योंकि अत्यन्ताभाव का अभाव प्रथम अभाव के प्रतियोगिस्वरूप होता है यह नियम है । वह्निस्वरूप अभावाभाव तो धूमाधिकरण में संयोगसम्बन्ध से रहता है, न कि विशेषणताविशेपसम्बन्ध से । अतः अव्यवहितप्राकृक्षणावच्छेदेन वह्निभावत्वधर्मवत्त्वस्वरूप धूमकारणता वह्निअभाव में भी रहने लगेगी, जो किसीको भी इष्ट नहीं है। त्रि । इसलिये निराधार है कि अच्यवहितप्राक्षणावच्छेदेन धूमाधिकरण में वह्निअभाव अभाव विशेषणनाविशेषसम्बन्ध से भी रहता ही है । इसीलिए तो तब वहाँ यह प्रतीति होती है कि 'यहाँ वह्निअभाव नहीं है'। विशेषणताविशेष को सम्बन्ध बनाने पर ही तो उपर्युक्त नास्तित्वावगाही प्रतीति की उपपनि हो सकती है। मास्तित्वावगाही होने पर भी उक्त प्रतीति को विशेषणताविशेषसम्बन्ध की अनवगाही मानी जाय तब तो 'भूतले घटो नास्ति' इत्यादि प्रतीति भी विशेषणताविशेषात्मक स्वरूपसम्बन्ध को अपना विषय नहीं बनाएंगी मगर वस्तुस्थिति यह है कि भाव में रहनेवाली विशेष्यता से निरूपित विशेषणता उक्त प्रतीति से भूतल में प्रतीत होने की वजह स्वनिष्ठविशेष्यतानिरूपित भूतलत्वावच्छिन्नविशेषणता सम्बन्ध से ही घटाभाव भूतल में रहता है। इस तरह अव्यवहित प्राकृक्षणाचच्छेदेन धूमाधिकरण में विशेषणताविशेपसम्बन्ध से वृत्ति वृद्धिअभाव अभाव

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