Book Title: Syadvadarahasya Part 3
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 210
________________ * रद्देश्य-विधेयभावमीमांसा * तदसत् - 'द्रव्यं गुण-कर्मान्यत्वविशिष्टसत्तावत्' इत्या द्रव्यान्यत्वविशिष्टसत्तात्वेन व्यापकतालाभप्रसहगात, विधेयतावच्छेदकावच्छिन्नसमव्यापकतावच्छेदकधर्मावच्छिमव्यापक -* ायलता *दुषयति - नदसदिति । उद्देश्यविधेयभावस्थले विधेयतासमव्याप्तरूपेण विधेयस्योद्देश्यव्यापकत्वलाभप्रतिपादनं असत, यतः 'द्रव्यं गुणकर्मान्यत्वविशिष्टसत्तावत' इत्यत्र तादात्म्येन द्रव्यस्योद्देश्यत्वेन व्याप्यत्र सामानाधिकरण्यन गुणभेद-कर्मभेदविशिष्टसत्तायाः समवायसम्बन्धेन व्यापकत्वम् । विधेयतावच्छेदकं तु गुणभेद-कर्मभेदविशिष्टसत्तात्वम् । यदि च विधयतावच्छेदकरूपेणैव विधेयस्य व्यापकत्वलाभमपोद्य विधेयतासमनियनधर्मेण विधेयस्योदेवयच्यापकत्वं संसर्गमर्यादया लभ्यमित्युच्यते तदा प्रकृते विधेयस्य द्रव्यान्यत्वविशिष्टसत्तात्वेन व्यापकतालाभप्रसङ्गात् = द्रव्यनिष्ठतादात्म्यसम्बन्धादचिनच्याप्यतानिरूपितव्यापकताया: संसर्गमर्यादया लाभापने: गणकान्यत्वविशिष्टसत्तायाः शुद्धसत्ताग अनतिरेकात् शुद्धसत्तायाश्च गुण दिवत्तित्वेन तत्र च द्रव्यान्यत्वस्य सन्चन द्रश्यनिरूपितविधयताश्रयीभूताया गुणनिष्ठायाः सामानाधिकरण्येन द्रव्यान्यत्वविशिष्टायाः सत्तायाः विधेयतासमव्याप्तेन द्रव्यान्यत्वविशिष्टसजावन रूपेण द्रज्यव्यापकताऽपि संसर्गमर्यादया लभ्या स्यादिति प्रसङ्गापादनम् । वस्तुतोत्र गुणकान्यत्ववैशिष्ट्य -सत्तात्वयोरेच विधेयनावच्छेदकत्वम्, अन्यथा विशेषण-विदोष्यभावे विनिगमनाविरहान् । एतेन विधेयतानवच्छेदकन विधपतासमञ्याप्तरूपेण व्यापकत्वभानेऽपि 'धूमवान् वहिनान्' इत्यादी बहिघटान्यतरत्वादिना व्यापकत्वला भासगी नास्ति, विधेयतावच्छेदकनानात्वस्यले पत्र शन्दोपात्ततत्तद्धेियतावच्छेदकावच्छिन्नान्यतमत्वादिना व्यापकत्वं प्रनयत इति व्युत्पत्तेरिति परास्तम्, गुणकर्मान्यत्वरिष्ट्रयसत्तात्वन्यतरत्वेन ब्यापकत्वलाभप्रसङ्गात् । ननु विधेयतासमव्याप्तरूपावच्छिन्नव्यापकत्दसंगर्गेण द्रव्यत्वावच्छिचे गगकर्मान्यत्वविशिष्टयनाया अन्वयः स्वीक्रियते किन्तु विधेयतावच्छेदकावछिन्नसमन्यापकतावच्छेदकरूपवच्छिमव्यापकत्वसंसर्गेगैव । द्रव्यान्यत्वविशिष्टसत्तात्वस्य विधेयतासमव्याप्तत्वेऽपि विधेयतावच्छेदकावच्छिन्नसमव्यापकतावच्छेदकत्वं नास्ति, तस्य गुणकर्मान्यत्वविशिष्टसनात्वावच्छिन्नाया: समयापकताया अनवच्छेदकत्वात, गुणकर्मान्यत्वविशिष्टरसात्वेन तादृशासनाया द्रव्यवृत्तित्वेऽपि द्रव्यान्यत्ववेशिष्टसत्तात्वेन सनाया द्रव्यवृत्तित्वचिर. हात् । न च गुणकर्मान्यत्ववैशिष्ट्य-सत्तात्वयोः विधेयतावच्छेदकत्वेन विधेयतावच्छेदकी भूतसत्तात्वाश्रयीभूतायाः सनाया पदधिकरणं । गुण: तन्निष्ठाधिकरणतानिरूपकताबच्छेदकत्वस्य तत्रिष्टाभावप्रतियोगितानवच्छेदकत्वस्य च द्रव्यान्यत्वविशिष्टसत्ताले मत्त्वन नाय विधयतावच्छेदकावच्छिन्नममच्यापकावच्छेदकत्वमनपायमेवेति वाच्यम, पर्याप्तिसम्बन्धन विधेयतावच्छेदकताया विचक्षणान्भेष दोषः । न हि पर्याप्तिसम्बन्धावच्छिन्नवियतावच्छेदकताश्रयीभूतगुणकर्मन्यत्ववैशिष्ट्यसत्तात्वीभयावच्छिन्नायाः समव्यापकताया अबच्छेदकता द्रव्यान्यत्वविशिष्टसत्तात्वे समस्तीत्याशङ्कायां प्रकरणकार आह - विधेयतावच्छेदकावच्छिन्नसमव्यापकतावच्छेदकावच्छिन्नव्यापकत्वस्य = पर्याप्तिसम्बन्धावच्छिन्नविधेयतावच्छेदकतापा आश्रयेणावच्छिना या समव्यापकता तवच्छेदकेन रूपेणाऽवच्छिन्नस्य व विशेरातासमलियतरूप से व्यापकतालाभ अमान्य हुन नदसन । मगर विचार करने पर यह गत असंगत प्रतीत होती है, क्योंकि विधेयतासमनियन धर्म से विघय में उद्देश्यन्यापकता का लाभ मान्य किया जाय तब तो 'द्रव्यं गुणकर्मान्यत्वविशिष्टसत्त्ववत्' इस स्थल में द्रव्यान्यत्वविशिष्टसत्तात्वेन द्रव्यव्यापकता का विधेय में स्वीकार करने की आपत्ति आयेगी। यहाँ उद्देश्य है द्रव्य और विधेय है गुणकर्मान्यत्वविशिष्ट सत्ता । गुणकर्मान्पल्लविशिष्ट मत्ता केवल द्रव्य में ही रहती है 1 मगर गुणकर्मान्यत्वविशिष्ट सत्ता भी शुद्ध सत्ता से अतिरिक्त नही होने से गुण और कर्म में भी रहती है । गुण, कर्म में जो सत्ता रहती है वह द्रन्यान्यत्वरिशिष्ट है, क्योंकि गुण एवं कर्म में द्रव्यान्पत्व = द्रव्यभेद और सत्ता रहती है। मतलब कि गृख सना से विधेय = गुणकर्मान्यत्वविशिष्ट सत्ता अतिरिक्त नहीं है और इल्यान्यत्वविशिष्टसत्ता भी शुद्ध सत्ता से भिन्न नहीं है । अतः द्रल्यनिरूपित विधेयता का समव्याप्त धर्म गुणकर्मान्यत्वनिशिएसत्ताच की भौति द्रव्यान्यत्व-विशिष्टसत्तात्वरूप से अन्यन्यापकता का संसर्गमर्यादा से लाभ होने का अनिष्ट प्रसंग उपस्थित होता है। मा परिणत व्यापकता भी दोषारत का धि. । यदि उक्त दोप के निरासार्थ यह कहा जाय कि -"विधेयतासमव्यापकथर्मावजिन्नन्यापकतासम्बन्ध से विधेय का उद्देश्य में अन्वय न मान कर विधेयतावच्छेदकधर्मावच्चिनसमन्यापकतावच्छेदकधर्मावच्छिन्नन्यापकता सम्बन्ध से विधय का उद्देश्यतावच्छेदकावच्छिन्न में अन्वय मानने पर उक्त दोप का अवकाश नहीं होगा, क्योंकि द्रव्यत्वावस्छिन में गुणकर्मान्यत्त्वविशिष्टसना D

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