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* आगलाधमजानगकरणम * न दितीय-तृतीये, व्यापककार्यज्ञानाधुपलाभादेव । कारण पलम्भस्तु कार्यपूर्वोत्तरनिषेधकत्वात् आत्मनस्वातीहशत्वा बाधकः । सहचरानुपलनियरधनास्तेि, आत्मसहचराणां
ष्टादीनां बाढमपलम्मादव। ___कि परापरसाह कर्यस्याऽन्योतयाभावानभ्युपगमे दायहरवार भूतचतुष्टयमपि लोकायतिकानां कधकारगुपचादनीयम् ? मिथोव्यावृत्यसिन्दः ।।
- मया II * ---- अस्तु नहि व्यापक रम्या कानुल या वा नादनपरित्याशद कापामार . न द्वितीय-तृतीये, व्यापककार्यज्ञानाद्युपलम्भादेव तादात्म्यसम्बन्धन्निात्मनानन्ययता निम्तायाः समयावारिय। आधाभावगम्बन्धावन्निछन्नामा वा यापकतया आश्रयस्य ज्ञानच्चा-नि-गुम्बादम्पारन माकडानन्या आत्मानना क्या । नादात्म्यसम्बन्धावच्छिन्नातःत्वावच्छिन्नमरनानिमागितकार्यत श्रयागतम्य नानादरखापानम्मान कायांमुपलश्या नदम्पकच्या माधनाहां । कारणायनुपरम्भः = कारण नुपलश्चिाबच निगल युत्तरगनुपलब्धिनिकः तु कार्यपूर्वानरनिपंधकल्लान = प्रतियोगिविषयकार्यानग्यपूर्वचरणतिपयकत्यात आत्मनश्च अन दृशत्वान् = कार्योत्तर चत्वात न बाधकः । आत्मना-कायंत्यानत्कारणम्य विम्हात्र कारणानपलब्ध्या तदनुपलब्धिः रियति । तम्ब कराचदयपक्षवानग्यरत्याभावन न कस्यापि तत्वचरमिति न पूर्वदरानुपलन्ध्या नदनुपलयिः सम्भवति । एवं तम्प कस्यचिनप्पलया पूर्ववरत्वविरहण न करयापिनदानग्धरामनि गनिम्नानुगलभ्या नदनुपलब्धि: माधयितुं शश्या । मनमाविका T-fप नात्मप्रतिपय इत्यावदापनि - महचगनुपरधिपि नास्तीनि । र. स्थञ्च सप्तपिंगदनिमलविकल्पमस्यामानवकविनात 'भूत-पतितं यात्मादि नम्नि, अनुपलर नि चार्वाकवचनं 'लयन एव । नतश्च विन्यानेजवायागत नानि ति मध्याधानः ।
प्रकरणाकार: काग-क्तिमत्रच्याघातापादनाधम पक्रनत किनि मनानां परम्परमादयस्य = 'रगन्मान्वय, अन्योन्याभावानभ्युपगमे = भूत-नानानिमितपदानपगमे, दापग्हिग्यात्त । अभियान मत भूतमात्र यस्तितः स्वभाग नंब भिगने, विशेपाभावान । नाकमा नयानयार तत्वानि भूतचन प्रथमापि लोकायतिकानां कथझार उपपादनीयम् ? भदकान्झिोपगाभाचन मिधी ज्यावृत्त्यसिद्धेः । नत भूतमय भूतान्तरभेदो न बास्तवः किन्तु विभिन्नधमंप्रकारकबुद्धिविषयत्वरक्षणां गाक्त ग्य. विकपणामिछाप्य भेदात्मका बा । न च चिगिन्नधर्म विना नाटतद्भटसम्भव इति भुताद्वतवादप्रसङ्गः चायांकम्पा सिद्धान्नामा दुवार नि नाताबम
नदि । इस तरह द्वितीय विकल्प 'ज्यापकानपलब्धि' भी असंगत है, क्योंकि ममवाय सम्बन्ध में आत्मा के व्यापक ज्ञान, इच्छा आदि का उपगम्भ = ज्ञान होना ही है । नादात्म्य में जहाँ आन्म द्रव्य होता है वहाँ ममवार में ज्ञानादि होने है । व्यापक की अनुलब्धि नहीं होने में व्याप्य आन्मा का निपध नहीं किया ना मकना । पचं कार्यानपलबियप नृतीय विकल्प में भी आत्मा का प्रनिषध नहीं हो सकना, बाकि आमकार्य ज्ञान, इच्छा आदि की उपलब्धि ही होती है। कार्य की उपलब्धि होने पर ना उसक. कारण आत्मा का निपध कम किया जा मरना है ? अन; तृतीय विकल्प ये आत्मप्रनिषेध असहन है । पय चनु विकल्प 'कारणनुपरधि में भी आत्मा का प्रतिपंध नहीं किया जा सकता, क्योंकि भान्मा अकार्य है। कारणानपनाभ सं कायांभाव की मिद्धि हो सकती है, न नि. अकागांभाच की । पर पाम विकल्प पूर्वचर अनुपलब्धि' में भी भात्मा का निपंध नहीं किया जा सकना, मांचि. आत्मा किगीकी जनरचार नहीं है । पर्वगनुपलथि मे इनग्बर काही निषेध हो सकता है, गमे 'आज मंगरयार नहीं है. याचि. कल सोमबार नहीं था । एवं पष्ठ विकल्प 'नग्चर अनुपलभि' में भी आत्मा का इन्कार नहीं किया जा सकता, क्योंकि आत्मा किमामा पुर्वचर नहीं है । उन्नावर अनुपलचि से कंवल परचर का ही निषेध किया जा सकता है, जब 'आज मंगलवार नहीं है, क्योंकि कल अभयार नहीं है। एवं मतग चिकल्प ‘गहवर नगाधि' भी भामनिया में किभित्र .. म्यां कि आत्मा के गहचा चंगा आदि का स्पष्ट रूप से परम्भ होता ही है । सहचर उपलब्धि होने पर की आत्मा का निध हो सकता है ?
ranitli bhojpuri किश्च । । इसके अतिरिक्त यह भी जानव्य है कि भूतचनाक के अनिग्नि मंद-नानक परम पदार्थ का स्वीकार