Book Title: Syadvadarahasya Part 3
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 63
________________ .५.९ मध्यमस्याडादरहस्ये खण्डः ३ . का... अन्वयाचाराधिकरणम * अवच्छेदकतासम्बन्धातच्छिापतियोगिताकस्य नीलेतराभावविशिष्टनीलाधभावस्याऽवच्छेदकतया नीलादी हेतुत्वे गौरवात्, व्याप्यवृत्तिनीलवत्कारालेऽवच्छेदकतया घटनीलसत्त्वेऽध्यवच्छेदकतया तदापत्तेश्च । अवच्छेदकतासम्बन्धावछिन्नप्रतियोगिताकनीलेतराभावविशिष्टनीलाध -* जयअवच्छेदकतासम्बन्धावन्चिनप्रतियोगिताकस्य = अवच्छंटकतासम्बन्धावच्छिन्ननीलादिनिप्रतियोगितानिस्पकर, नीलेतराभावविशिष्टनीलायभावस्य = सामानाधिकरण्यसम्बन्धेन सभवापसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक-नीलतराभावविशिष्टस्य नीलादिरूपाभायस्य, अवच्छेन्द्रकनया नीलादी हेतुन्वे स्वीक्रियमाणं गौरवान् = कारणतावच्छेदकधर्मादिगारवान् । न च फलमुखत्वेन तस्याःदोपत्वमिति वाच्यम्, प्रमाणान्फलफलवझायनिश्चयानन्तरमुपस्थितगौरवस्यैव फलमुखपदार्थत्वात् । प्रतने तादृशजन्यजनकभाचनिश्चयपूर्वमेवा:न्वयन्यभिचारापस्थितः तथा वक्तुमशक्यत्वादित्याशयेन दोषान्तरमाह व्याप्यवृत्तिनीलबत्कपाले = नीलनात्रपातमात्रकमालद्वितयारब्ध-घटसमवायिनि न्यायवृचिनीलरूपवनि कपाले, अवच्छेदकतया = स्थनिष्ठानच्छद्यतानिरूपितावच्छेदकतासम्बन्धन घटनीलसत्त्वे = घटसमवेतनीलरूपस्य सच्च अपि अवछंदकतया तदापत्तेत्र = कपालसमंवतालरूपोत्पन्यापनश्च, नत्कालवृतिनीलरूपस्य व्याप्यत्तित्वेनादवच्छेदकनासम्बन्धन नीलमात्रकपालेश्वर्तमानतया वन्दकतासम्बन्धावच्छिन्नतियोगिताकम्य नीलाभावस्य समानाधिकरण्यन समन्वायसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियाग्तिाकनीलतराभावविशिष्टम्य स्वरूपसम्बन्धन नीलमाकपाल सत्त्वान् । न च नीलमात्रकपालेश्वच्छंदकतया कपालसमवनव्याप्यनिनीलरूपमुत्पद्यत किन्न घटवृत्त्यच्याप्यत्ति-नालरूपमन्यन्वयन्यभिचाराचार्य हेतु-हेतुमद्राबादप्युपादेय इति तात्पर्यम् । ननु नौलमान-पानमात्रकपालिकाद्रयारब्ध-नीलपातकपालजन्यघटस्थाले नाल-पातकपाल बन्दकतासम्बन्धन नालायुत्पनिवारणावा-यछदकतासम्बन्धन नीलादी अवच्छंदकतासम्बन्धावनिकन्न प्रतियोगिताकस्य नालायभावस्य सामानाधिकरण्येनावन्दकता- | सम्बन्धान्छिनप्रतियोगिताकनीलतराभावविशिष्टस्य व हतत्वं स्वीक्रियते । न च नालापातकपाले नीलनात्रपालिकारच्चंदन नीलतराभावस्य सत्त्यान तत्र पातमात्रक्रपालिकापच्छंदन स्वरूपेग सती:वच्छन्दकतासम्बन्धावछिन्नप्रतियोगिताकस्य नीलाद्यभावग्य यामानाधिकरण्यन अवलंदकतासम्बन्धवच्छिन्त्रप्रतियोगिताकनीलतराभावविशिष्टल्यानदवरवा चन्दकनया नालायुत्पादापनिर्सिन वक्तव्यम, नालेतरसामानाधिकरण्या विशिष्टानाषणस्वरूपस्वकारटकनासम्बन्धावच्छिन्न प्रतियोगिताकस्य नालाहभावस्य सामाना. चिकरण्येनाऽवच्छेदकतासम्बन्धावच्छिन्न प्रतियोगिताकीलतगभावविशिष्टस्यायच्छेदकतया नीलादी हेतुत्वाभ्युपगमारत, प्रकृतव्यच्छंदकतासम्बन्धावच्छिन्न प्रतियोगिताकस्य नालनराभावस्य नलिनरसामानाधिकरण्या:विशिष्टावच्छेदकतासम्बन्धावन्छि प्रतियोगिताकनालाद्यभावविशेषणविरहात, अवचंदकतासम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताकनीलावभावस्य स्वरूपेण नीलपतकपाले रुचात् । इत्य। निरुतनीलतराभावविशिष्टनालाद्यभावस्यावच्छेदकतन्या नीलादी कारणत्वं नालेतरसानानाधिकरण्या-विशिष्टविशेषणत्वस्य च कारणताबच्छेदकल्यमित्यहीकारणेव नीलपीनकपालवच्छेदकतया नीलाद्युत् निवारणसम्भव इत्याशङ्गकामपाकर्नुलाह --> अवच्छेदकतासम्मन्धावच्छित्रप्रतियोगिताकनीलतराभावविशिएनीलायभावस्य भावर्णित विग्रहस्वरूपस्य नीलेतरसामानाधिकरण्याऽविशिष्ट सम्बन्ध में नालादि के प्रति अवच्छंदकतासमन्धावच्चियानियोगिनाक नीलेतराभावविशिष्ट नीलाद्यभाव कारण है' <- नर यमपि नीलपीनकपाल में अवदकतासम्बन्ध मे नीलादि रूप की आपनि का निवारण हो सकता है, क्योंकि नीलपीतकपाल में पीनकपालिकावच्छित्रप्रतियोगिताक नीलायभाव रहने पर भी वह नीलेनराभावविशिष्ट नहीं है, क्योंकि नीलपीतकपाल में समवायसम्बन्ध से नीलेकर पीतरूप रहता है तथापि यह कार्यकारणभाव मान्य नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसके स्वीकारपक्ष में कारणतावदक धर्म में गौरव प्रसक्त होता है। याण्यइति । इसके अतिरिक दोष यह है कि जहाँ नील-पीतरूपवार, घट के आगम्भक एक कपाल में व्याप्यवृनि नील रूप और दूसरे कपाल में पीतरूप होता है वहाँ व्याप्यनितीलरूपवाले कपाल में अवन्दकतासम्बन्ध में घटनीलरूप की उत्पत्ति होने की आपनि आयगी. क्योंकि उम कपाल में समरायसम्बन्ध में नालेनर रूप नहीं है और उसका नील रूप कपाल में च्याप्यवृनि होने की बजह, ममचाय सम्बन्ध में वहाँ रहता है, न कि अवछटकनासम्बन्ध में । अतः समवायावछिनप्रतियोगिताक नीलेतगभार मे विशिष्ट अवच्छेदकतासम्बन्धावनिप्रतियोगिताक नीलाधभार होने से व्याप्यवृत्तिनीलरूपवाले कपार में भी अबदकता मबन्ध में कपासनीलरूप की आपनि अपरिहार्य बन जायेगी। ब, इनि । यदि यहाँ ऐसा कहा जाय कि -> 'अभी जिस कार्य-कारणभाव का निरूपण किया गया है उसमें

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