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.०२ मध्वमस्याहादरहस्य खण्ड: . का.. *अभिनयकशिमताधिकारः
रक्तोत्पत्यानन्तरमेव तत्राऽप्यन्याय्यवृत्तिनीलोत्पत्तिरित्रापरे ।
नन्वेवमपि नानारूपवत्कपालाधार घटे तत्कयालावच्छेदेन नीलाधापत्तिरिति चेत् ? स्टील पालिसवच्छिमातहदच्छेदेनेष्टत्वमेव तस्याः ।
* जयलता सम्वेतदन्यसमवायसम्बन्धन नीलेतररूपस्याऽसत्त्वात. कार्योन्यादान्यवहितपूर्वक्षणावरदेन कायाधिकरणविधयाभिमने कारणताबच्छेदकसम्बन्धनाश्वत: कारणत्वाच्योगात । उत्थश्च न्यतिरकन्यभिचारकलालित्वान्नावन्डेदकतया नीलादी म्बममवापिसमवेनद्रव्ययमन्त्रायसम्बन्धन नीलंतररूपादेः कारणत्वमित्यन्यधामाशयः ।
पाकात रक्तोत्पत्त्यनन्तरमेय, न तु पाकजरूपांत्यत्तिक्षणावच्छेदन, नत्र नलकपालद्रयान्वयट कपलान्तावच्छंदन ग्न, रूपजनकापाकस्थले, अपि अवच्छेदकतासम्बन्धन अव्याप्यवृनिनीलोत्पत्तिरिति म व्यतिरकन्यभिचागं लब्धावकाश.. तया व्यायवृत्तिनीलोत्पादाऽव्यवहितप्राकृक्षणावच्छदन स्वसमबाविस संवतद्रव्यममायनाक्यवान्तरसमचतीलतगत प ... अपरे वदन्ति । अपर इत्पन्नास्वरसोद्भावनं कृतम्, रक्तांत्यदानन्तरमंत्र तत्र नीलात्यादा न जानात्तिणाव-::.. युवत्यादिविकलत्वेन झापथमानदेयत्वात् । न च निरुक्तकार्यकारणभावमलप्रसङ्ग व रत्नांत्यादक्षण: पनकतया तत्र . . .: बाधक इति वाच्यम्, परम्परालयग्नस्तत्वप्रसङ्गात. सिद्ध तादृशकार्यकारणभाचे रकान्यदानन्नगायाप्यनिनीलोत्पादगिद्ध: पड़े च तस्मिन् निरुक्तफल-फलबद्भादसिद्धेरिति दिक ।
एकदेशिनस्तु नीलमात्रारब्धे कपालान्तवदेन पकिन रतरूपांत्यांना प्राकतनीलरूपनादादेवा व्यायवृनिनीलोत्पनेः अवच्छेदकतया नीलादी अवच्छेदकनया नीलाभानादस्व तत्वनि ब्याचक्षने ।
ननु एवमपि = अवछंदकतया नीलादा समवायन नालाद कारणत्वं गगनगि. नानारूपवत्कपालाद्यारब्धं = नीलमात्र-पीतमात्रकपालिकादयारधन लपातकपाल कपालान्तगरब्ध, पर तत्कपाळावच्छेदन = अबछदकतासम्बन्धन नीलपीताभयाश्रयकपाले नीलाद्यापत्तिः समवायन तब नीलादेस्सन्चादिति । न चापदफनया नीमादी समयावना वयवनालाद: म्बममवापिसमवेतत्वेन द्रव्यविशिष्टनीलादेर्वा समवायन हेतुल्लाभ्यपगनेकी ननिस्तारः । नानारूपचदयपदारब्धववियव भवनामन्याप्यवृत्तिनानाजानीयरूपाभ्युपगमो न तु नानाजातोयरूपदवपवार ययाति चेत् : न, नानाजातीय नियं ग्य- ॥ वयविनीबाच्याग्यवृत्तिनानारूपोपगमात् । अत एव नीलकपालिकावच्छिन्नतदवच्छेदन = स्बसमा . . .लिका - विशिष्टतत्कपालावच्छेदेन, स्वसमबतत्वसम्बन्धन नीलकपालिकाचिकटतत्कपालं अयच्छन्दका मानना , इष्टत्वमेव तस्याः = तत्कपालगतनालाग्रुत्यतः ॥ यदि च नीलमान-पानमात्रकपालिकाद्वयारञ्च-गामालकालाधारब्धघाटगतनीलादौ नीलकालिकाविशिष्टतत्कापालावच्छेद्यत्वमनभवचिद्धमित्यशाच्यते तदाऽवच्छेदकत्या नीलादः समवायन नीलंतररूपाय प्रतिबन्ध
रूप की अनुपस्थिति है। कारण की उपस्थिति तो कार्याधिकरणविधया अभिमन में कारणतार टकसम्बन्ध से कार्योपनि की पूर्व क्षण में होनी ही चाहिए । इस व्यतिरेक व्यभिचार के प्रसंग से उपर्युक्त कार्यकारणभाव को मान्य नहीं किया जा सकता' । <- मगर यहाँ अपर विद्वानों का यह मन्तव्य है कि नीलकपालद्वारब्ध घट के एक कपान में पाक में रक रूप की उत्पत्ति होती है, न कि रनोत्पत्तिक्षण में । जब अन्याप्यवृति नील रूप अवच्छेदयाना सम्बन्ध से कपाल में उत्पन्न होता है उसकी अव्यवहित पूर्व क्षण में तो स्त्रसमवापिसमवेतद्रव्यसमवायसम्बन्ध में अवयरान्नग्रामवंत नीलतर - ग्न रूप उस कपाल में रहता ही है, क्योंकि तब वह पाक में उन्पग्रमान होता है। अनः अवटकनासम्बन्ध से नीलादि रूप के प्रति अवयवान्तरसमवंत नीलेतररूपादि को स्वसमवायिसमवेनद्रव्यसमवायसम्बन्ध में करण मानन में कोई दोष नहीं है ।
नन्धवइति । यहाँ यह शंका हो सकती है कि -> 'अवच्छेदकतासम्बन्ध में नीलादि के प्रति समवाय सम्बन्ध में नीलादि को कारण मानने पर भी नीलमात्र और पीतमान मप से विशिष्ट कपालिकाद्वय से उत्पन्न होने वाले नीलपीतकपाल से घट उत्पन्न होने पर नील-पीतकपाल में अवच्छेदकतासम्बन्ध से तन्कपालगत नील रूप की उत्पनि की आपनि आयेगी, क्योंकि समवाय सम्बन्ध से नील रूप वहाँ रहता है। आपनं नो अव्याप्यवृत्ति अनेक रूए का स्वीकार अवयवी में किया है, न कि अवयव में* <- मगर यह शंका इमलिए निराकृत हो जाती है कि नीलकपालिकाविशिष्टकपालावच्छेटेन नत्कपाल में अवदकतासम्बन्ध से तत्कपालगत नील रूप की उत्पनि इष्ट ही है। अत: यह इष्टापनि है, न कि अनिष्पापत्ति । हमें अवयनी की भाँति अवयव में भी अन्यायवृत्ति अनेक विजातीय रूप को मान्य करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।