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मध्यमग्याद्वारहरये न्याण्डः ३ . का. *नारकपालाउछदन पानाश्चिाक्षपपरिहा: * | कपालावच्छेदेन एतद्घतचक्षुःसंयोगस्य हेतुत्वाम लीलाधवयवावच्छेदेन चक्षुःसनिकर्षे पी- ||
-* जयलता - हेतुत्वान् = कारणत्वोधगमात्, न नीलाद्यवयवावच्छंदन चक्षुःसनिक संत पीनादियाशुपं = ल्या यवृनिपातादिरूपचाक्षुषप्रसङ्गः, पीनादेः पतन्कापालानबछिन्ननिक यन तत्पीनान दिन्नत्यं सनि एनष्टममंचनत्वंन तद्विषयकचाक्षुपस्य पनकपाळान्लिनतन्कपालान किन्नघटनयनरंयांगजन्यनाव-दकाक्रान्नत्यानमूने नदुत्यन्यनुपपत्तेः । न च कार्य नावच्छेदककुग एतत्कपालानवच्छिन्नवृनित्वस्य तत्पीतान्यविशेषणत्वं मास्त गौरवादिति वाच्यम्, तथा सनि एतत्कयालावछिन्नपटादिसंबोगस्य नातान्यत्वेन नमानान्यस्त्रित्वविरहात नमिषयकनाशपस्यैतत्कपालावच्छिन्ननयटचक्ष:मन्निकर्षनिरूपितकार्यनारच्छेदकानाक्रान्न. त्वग्राप्ती नमृत-गि नयादप्रसङ्गान । न च तत्कालानच्छिन्नवृसिकभिन्नदकटममचेतनाक्षपत्वम्यव कार्यताबन्लेदकत्यमस्तु नन्पातान्या प्रबंशन लावादिति वक्तव्यम, गोलपातकपालारब्धघटायगातरूपस्यैतद्घाटसमवेतत्त्व.पि व्यायनिवनतत्कपालानवच्छिन्ननिकत्वात् नदिपयकचाचपस्यैतत्कालवच्छिकतयटनयनसंयोगनिष्ठकारणतानिमितकार्यत्वानाक्रान्तल्यापत्ता पानकामालाब. मलेंदन नम्नगंयोगबिरहदशायामपि नदुत्पादरप दुर्निपरत्वान न चनन्त्रपालानवन्छिम्भवृनिकपणेतान्याटियागिको यो टा नद्रदेतदघटसमरतचाशुषत्वस्यैव हत्कार्थनावच्छेदकत्वमस्तु पीनविशेषणविधया तत्पदा निवेदोन लाघवादिति वाच्यम् , त्यहिननीबनाकपालद्यपीतमात्रकालाचघरवृत्तिव्याप्यनिधीतद्वपस्य व्याप्यनित्वनतत्कपालानवचिन्नपीनान्यभिन्नघटसमवेतत्वेना न्यायालगतगीतमपनन्यघटायनीटपविषयकचाक्षुषस्य पदकपालावच्छिन्नघटनयनसंपोगकार्यनारच्छेदकाक्रान्तवना न्यकपाला इच्छितपटनगनसंयोगविरह, पि गतकपालावच्छिन्नतदधटगत्रसंयोगदशावामुत्पादापतः । न चैतत्कपालानयन्छिन्नवृनिकनानायनिनगोचरनाक्षुषत्वम्वतन्कपालाग्छिन्त्रत टसश्किर्षकार्यतावच्छेदकल्पमस्तु एतद्घटममवतत्वानिवन लायवादिति वाच्यम्, संयागेन दत्र्यस्याच्या प्यातिनन्य एतत्कपादावारकाम्बध्या: प पतत्कयालानच्छिवृरिकतपातान्यमित्रत्वन एतत्कपाले वस्त्रं' इत्याकरकम्य नदिपगनचाक्षुषस्य एतत्कपालावच्छिन्नेतद्धदनयनगंयोगजन्यत्वाकानवन ज्यतिकन्यभिचारगम गात् । | न हि बसे रवाश्रयसमंवतन्त्रसम्बन्धन पतत्कापालावचितघटनापनमयांगों वर्तते । अतो लौकिकविपयनासम्बन्धन एनत्कपाला. नयन्निवृचिकनत्तातान्यभिनघटसमवतस्यतत्कपालयिकचाक्षुष स्वमन्वापिस गन्तसम्बन्धन पनाकपालापछिअनःनशुःसयोगम्य कारणत्वमभ्युपगन्यगिति न घटन्निीलपीनादायतित्वपि नालकपालवच्छेदन वक्ष:मन्त्रिको पानादेचाक्षुषामङ्ग इनि भावः ।
नीलकपालावच्छेदेन घट के साथ नयन का सम्बन्ध होने पर चाक्षुग प्रत्यक्ष प्रसन नहीं हो सकता, क्योंकि उस घट में विद्यमान पीत रूप एतत्कपालानवच्छिन्न जो नपातान्प, उसस भित्र पनपटसमवेत हो जाता है । अतएन एतत्कपाल के साथ उमका चाक्षुप साक्षात्कार ना हो सकता है जर एतनकपालावच्छेदेन एतद्घटक माथ नयनमयोग हो । अतः नीलारपवावच्छंदन पट में नयनसत्रिकर्ष रहने पर पीन मप के प्रत्यक्ष की आपत्ति नहीं होगी । उक. कार्यतारजेडेदक के शरीर में एनकपालावचित्र मंयोग नपानान्यभिन्न नहीं होगा । अनः इसका प्रत्यक्ष गनझपाटावच्छंदन पनघट के साथ नयनसन्निकर्ष के कार्यनाजयदक से आक्रान्न नहीं होने की वजह उपर्युक मनिका के चिना भी उसके प्रत्यक्ष की आपनि आयगी । इसी तरह इन कार्यतावदक म तापीतान्यत्व का निवेश न कान र तत्कपालानजिमाधुनिकभिन्न पनघटसमनत का ही प्रदा होगा। फलतः नीलपीन. कपालारध घट में उत्पन्न पान रूप व्याप्यनि होने की वजह पातकपालानवित्तिव होगा, क्योंकि व्याप्यान का अवच्छंटक, होने में कोई प्रमाण नहीं होने में नह सवंदा निवछिन ही होता है। अनः तदभिन्न एनघटममत में इसका समावेश नहीं होने के सबब उसका चाक्षप माक्षात्कार भी उक्त मात्राप के कार्यतावच्छेदक में आक्रान्त न हो सकेगा । अतः उन गानिकर्ष के बिना भी नीलावयवावच्छतेन नबनसन्निकर्ष वान पर उसके चाक्षुष साक्षात्कार की आपनि दर्बार हो जायगी। एवं यदि उक्त कार्यनावरकोटि में सीतान्य ब. स्थान में कार पीनान्यमात्र का प्रवेश किया जायंगा नो परम्पर यहित दो पीन और नील कपानों में उत्पन्न घर में जो दी पीत रूप उत्पन्न होंगे, दोनों ही पतत्क्रपा नवछिन्ननिक पीनान्यभिन्न एलट्याटसमरन डाग । अनः अन्यम्सालगत पान का में उत्पन्न घटगात पान रूप का चाक्षुष भी पनकपालापन्निनयनमत्रिकर्ष के कार्यतावन्दक में आक्रान्त हो जायेगा । अनः अन्यकपालावच्छिन्न नयनानिकर्ष के विरह में भी पनकपालारच्छेदन नयनर्माचक्रप होने पर भी इगक वाक्षप की आपनि आयेगी । इसी प्रकार उन कार्यतावच्छदककोटि में यदि 'गनदयदममवनत्व का प्रवेश न किया जाय दब पतपालानबन्छिन्नतिक नपीतान्य म भित्र एतत्कमाल का आधारक वस्त्र भी मंयोग सम्बन्ध में