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शिङ्गभूपाल का जीवन- आचार्य शिङ्गभूपाल तेजवान और प्रतापी राजा थे। उनके न्याय-अन्याय के ज्ञान तथा गुणों से प्रभावित अन्य सभी राजागण अपने न्यायअन्याय, गुणदोष और स्थान का विचार करके उनके सामने नतमस्तक रहते थे। उनके युद्ध से पराजित हुए राजा लोग अपनी रानियों के सामने जाकर लज्जा का अनुभव करते थे। वे विद्वानों का आदर करते थे और उन्हें माणिक्य, जमीन, गृह सुवर्ण इत्यादि का दान देकर सर्वदा परितुष्ट करते थे। वे सज्जन-पुरुषों तथा कलाओं के अतिशय प्रेमी थे और अपने शासन में उनको पूर्णरूपेण पुष्ट करते थे। उनके पुत्र भी अपने-अपने क्षेत्र में उत्युत्कृष्टता को प्राप्त किये थे। उनका राज्य समृद्धि-वैभव से भरपूर, योग्य और अनुपम योद्धाओं से सम्पन्न, विद्वानों से सुशोभित और सन्मित्रों से वृद्धि को प्राप्त था। उनके राज्य में किसी वस्तु का अभाव नहीं था। उनके तेजोमय, ओजस्वी, पराक्रमी और यशस्वी व्यक्तित्व के सम्मुख सभी शत्रु नतमस्तक रहते थे। इस प्रकार शिङ्गभूपाल का जीवन राजशाही तथा सुखमय था।
शिङ्गभूपाल का व्यक्तित्व- चमत्कारचन्द्रिका के कर्ता आचार्य विश्वेश्वर कविचन्द्र शिङ्गभूपाल के समृद्धिवैभव, चतुर्दिक विस्तृत प्रताप और व्यक्तित्व से विशेष प्रभावित थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ चमत्कारचन्द्रिका में इनके जीवन की विभिन्न घटनाओं के साथ-साथ उनके शारीरिक सौष्ठव का विविध उपमानों द्वारा अत्यधिक मनोरम और स्वाभाविक चित्रण किया है। जैसे कि
पल्लवकोमलपाणितलानामुन्नतमांसलवक्षसिजानाम् । मानसमुत्तममानवतीनां रक्ततरं त्वयि शिङ्गनृपालः ॥
(चमत्कारचन्द्रिका 1.38) अर्थात् पल्लव (नये पत्ते) के समान कोमल हथेलियों वाली तथा समुन्नत और मांसल स्तनों वाली परम मानवती (ललना) लोगों का मन तुम्हारे प्रति प्रगाढ़ रागयुक्त रहता है।
शिङ्गभूपाल तेजविशेष से सम्पन्न प्रतापी राजा थे। उनका समृद्ध और विस्तृत राज्य उनकी बुद्धिमत्ता, दूरदर्शिता और अपरिमित शौर्य का स्पष्ट प्रमाण है। इनका रणकौशल अद्वितीय था। इनके धनुष की टङ्कार सुन कर ही शत्रुराजा भयभीत हो जाते थे।
(1) द्रष्टव्यः - 1. 32 (2) द्रष्टव्यः - 1. 34 (3) द्रष्टव्य:- 1. 31
(4) द्रष्टव्यः - 1. 30 (5) द्रष्टव्य:- 1. 37