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श्री प्रश्सव्याकरण सूत्र..
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गुणों की विराधना करने वाली होने से इसे हिंसा की सहोदर बहन मानी
गई है ।
'इति' 'आदि' और 'अपि' शब्द – इस सूत्रपाठ में 'इति' शब्द समाप्ति अर्थ का बोधक है, 'आदि' शब्द प्रकार वाचक है और अपि शब्द समुच्चयार्थक है । तीस नाम — इस प्रकार प्राणवध के पर्यायवाची ३० नाम सूत्रकार ने बताये हैं । प्राणवध के नाम तो और भी हो सकते हैं, पर यहाँ 'गुणनिष्पन्न' नाम की अपेक्षा से तीस संख्या में ही इन्हें सीमित कर दिया है ।
हिंसा क्यों, किनकी और कैसे ?
द्वितीय द्वार में हिंसा के पर्यायवाची नामों का उल्लेख करके अब तीसरे द्वार में शास्त्रकार प्राणिवध किस भाव या प्रयोजन से, किनका और किन-किन साधनों से किया जाता है, इसका निरूपण करते हैं—
मूलपाठ
तं च पुण करेंति केवि पावा असंजया अविरया अणिहुयपरिणाम - दुप्पओगा पाणवहं भयंकरं बहुविहं बहुप्पगारं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहिं तसथावरेहिं जीवेहिं पडिणिविट्ठा, कि ते ?
पाठी - तिमि तिमिंगल अणेगझस-विविहजाति मंडुक्कदुविहकच्छभ - णक्कचक्क मगरदुविह-मुसंढ - विविहगाह - दिलिवेढयमंडुय-सीमा र पुलक- संसुमार बहुप्पगारा जलयर - विहाणा कए एवमादी |
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कुरंग - रुरु सरह - चमर-संबर - उरब्भ-ससय - पसय-गोणरोहिय- हय-गय-खर- करभ खग्गी- वानर गवय विग - सियाल - कोलमज्जार को लसुणग- सिरियंगदलगावत्त कोंकतिय गोकन्न-मियमहिस- वियग्ध - छगल-दीविय साण-तरच्छ अच्छ-भल्ल- सद्दल-सीहचिल्लल - चउप्पय विहाणा कए य एवमादो ।
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अयगर - गोणस - वराह - मउलि आसालिय-महोरगोरगविहारणा कए य एवमादी ।
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काओदर- दब्भपुप्फ