Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
अर्थकारणतावादः प्रसिद्ध हि तमसो विज्ञानप्रतिबन्धकत्वेनातत्कारणस्यापि परिच्छेद्यत्वम् । ननु ज्ञानानुत्पत्तिव्यतिरेकेणान्यस्य तमसोऽभावात्कस्य दृष्टान्ता ? इत्यप्यसङ्गतम् ; तस्यार्थान्तरभूतस्यालोकस्येवात्रवानन्तरं समर्थयिष्यमारणत्वात् । ननु परिच्छेद्यत्वं च स्यात्तयोस्तत्कारणत्वं च प्रविरोधात्; इत्यप्यपेशलम् ; तत्कारणत्वे तयोश्चक्षुरादिवत्परिच्छेद्यत्वविरोधात् ।
सूत्रार्थ-पदार्थ और प्रकाश ज्ञानके कारण नहीं हैं क्योंकि वे परिच्छेद्य (जानने योग्य) हैं जैसे अंधकार जानने योग्य पदार्थ है। देखा जाता है कि अंधकार ज्ञानका प्रतिबंधक होनेसे उसका कारण नहीं होते हुए भी उस ज्ञानका विषय अवश्य है इसीप्रकार पदार्थ और प्रकाश हैं, वे ज्ञानके कारण नहीं हैं, मात्र ज्ञानके द्वारा जानने योग्य हैं।
शंका-ज्ञानकी उत्पत्ति नहीं होना यही तो अंधकार है अन्य कोई वास्तविक पदार्थ नहीं है इसलिये अंधकारका दृष्टान्त देना गलत है ?
समाधान-ऐसी बात नहीं है, प्रकाशके समान अंधकार भी एक पृथक वास्तविक पदार्थ है इस बातको हम आगे भली प्रकार सिद्ध करेंगे।
___ शंका-पदार्थ और प्रकाश जानने योग्य भी हैं और ज्ञानके कारण भी हैं कोई विरोधकी बात नहीं है, अर्थात् आपने कहा कि पदार्थ तथा प्रकाश परिच्छेद्य होनेसे ज्ञानके कारण नहीं हो सकते, सो बात नहीं है ?
समाधान-यह कथन असुन्दर है, पदार्थ और प्रकाशको ज्ञानका कारण मानने पर वे परिच्छेद्य नहीं रह सकेंगे, जैसे कि चक्षु प्रादि इन्द्रियां ज्ञानका कारण है अतः परिच्छेद्य नहीं है।
दूसरी बात यह है कि ज्ञान पदार्थका कार्य है (पदार्थ के निमित्तसे हुआ है) यह बात प्रत्यक्ष प्रमाणसे जानी जाती है कि अन्य किसी प्रमाणसे इस बातका निर्णय करना होगा ? ज्ञान पदार्थका कार्य है इस बातको प्रत्यक्ष प्रमाणसे जाना जाता है ऐसा माने तो वह प्रत्यक्ष कौनसा होगा ? जो प्रत्यक्ष जिस घटादिको विषय कर रहा है वही स्वयं जान लेता है कि क्या मैं इस घट से उत्पन्न हुआ हूं, अथवा अन्य कोई पट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org