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बद्धबोधितकेवलज्ञान] ८२४, जैन-लक्षणावलो
[बुद्धिसिद्ध १ बुद्ध का अर्थ प्राचार्य है, प्राचार्यों के द्वारा जो करता हूं' इस प्रकार की बुद्धि जिस विपाक के प्रबोध को प्राप्त हुए हैं वे बोधितबुद्ध कहलाते हैं। पूर्व में हुआ करती है उसे बुद्धि पूर्व विपाक कहते २ जिसने सिद्धान्त और संसार के स्वभाव को हैं। जान लिया है उसे बुद्ध कहते हैं, उसके द्वारा ब्रद्धिमान -१. तथौत्पत्तिक्यादिचतुर्विधबुद्ध्युपेता प्रबोध को प्राप्त हुए बुद्धबोधित कहलाते हैं। बुद्धिमन्तः। (सूत्रकृ. सू. शी. वृ. २, ६, १६, पृ. बुद्धबोधितकेवलज्ञान - बुद्धराचार्यादिभिर्बोधि- १४५) । २. क्रम-विक्रमयोरधिष्ठानं बुद्धिमानाहार्यतस्य यत्केवलज्ञानं तत् बुद्धबोधितकेवलज्ञानम् । बुद्धिर्वा । यो विद्याविनीतमतिः स बुद्धिमान् । (प्राव. नि. मलय. वृ. ७८, पृ. ८४)।
(नीतिवा, ५, ३०-३१)। बद्धों-प्राचार्य प्रादि-के द्वारा बोध को प्राप्त हुए १ जो प्रोत्पत्तिकी व पारिणामिकी प्रादि चार जीवोंके केवलज्ञान को बुद्धबोधितकेवलज्ञान कहते हैं। प्रकार की बुद्धि से सम्पन्न होते हैं उन्हें बुद्धिमान बुद्धबोधित सिद्ध-१. बुद्धा प्राचार्यास्तैर्बोधिता: कहा जाता है । २ बुद्धिमान् राजा वह कहलाता सन्तो ये सिद्धास्ते इह ग्रह्यन्ते । (श्रा. प्र. टी. ७६)। है जो क्रम और विक्रम का स्थान होता है तथा २. बद्धा प्राचार्या अवगततत्त्वाः, तैर्बोधिताः सन्तो जिसकी बुद्धि प्राहार्य-मंत्री के उपदेश के ग्रहण ये सिद्धाः ते बद्धबोधितसिद्धाः। (योगशा. स्वो. योग्य होती है । पिता-पितामह आदि को परम्परा विव. ३-१२४)। ३. बुद्धा प्राचार्याः तैर्बोधिताः से राज्य की प्राप्ति को क्रम और शूरवीरता को सन्तो ये सिद्धास्ते बुद्धबोधितसिद्धा : (प्रज्ञाप. मलय. विक्रम कहा जाता है । ये दोनों राज्य की स्थिरता वृ.७, पृ. २०)।
के कारण माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त जिसकी १ जो प्राचार्यों द्वारा प्रबोध को प्राप्त होकर सिद्ध बुद्धि विद्या से विशेष नम्रता को प्राप्त होती है हए हैं उन्हें बुद्धबोधितसिद्ध कहा जाता है। उस राजा को बुद्धिमान जानना चाहिए। बुद्धि-१. ऊहितोऽर्थो बुध्यते अवगम्यते अनया इति बुद्धिवेशद्य-१. अनुमानाद्यतिरेकेण विशेषप्रतिभाबुद्धिः । (धव. पु. १३, पृ. २४३) । २. बुद्धिः इह- सनम् । तद् वैशद्यं मतं बुद्धेः xxx ॥ (लघीय. परलोकान्वेषणपरा। (भ. प्रा. मूला. ४३१, पृ. ४) । २. अनुमानादिभ्योऽतिरेकण-आधिक्येन ६४३) । ३. अर्थग्रहणशक्तिर्बुद्धिः । (अन.ध. स्वो.. वर्ण-संस्थानादिरूपतया अर्थग्रहणलक्षणेन प्रचुरतरटी. ३-४; त. वृत्ति श्रुत. १-१३)।
विशेषान्वितार्थावधारणरूपेण वा-यद् विशेषाणाम् १ जिसके द्वारा ऊहित-ईहा के द्वारा तकित- नियतदेश-काल-संस्थानाद्यर्थाकाराणां प्रतिभासनं पदार्थ का निश्चय होता है उसका नाम बुद्धि है। तद् बुद्धिवैशद्यम् । (न्यायकु. १-४, पृ. ७४) । यह अवाय ज्ञान का समानार्थक शब्द है। २ जो १ अनमान आदि की अपेक्षा जो नियत देश, काल, इस लोक और पर लोक के खोजने में तत्पर रहती एवं प्राकार प्रादि की विशेषता के साथ पदार्थों का है उसे बुद्धि कहा जाता है। ३ पदार्थ के ग्रहण प्रतिभास होता है, यह बुद्धि का वैशद्य कहलाता करने-जानने-की शक्ति को बुद्धि कहते हैं। है। बुद्धि-आकार-देखो आकार व ज्ञानाकार । स्व- बुद्धिसिद्ध-विउला विमला सुहुमा जस्स मई जो परप्रकाशकत्वं हि बुद्धराकारः । (न्यायकु. १-५, चउविहाए व । बुद्धीए संपन्नो स बुद्धिसिद्धो Xx पृ. ११७)।
X ॥ (प्राव. नि. ६३७) ।। स्व को और अन्य पदार्थों को प्रकाशित करना, यही जिसकी बुद्धि विपुल-एक पद से अनेक पदों का बुद्धि या ज्ञान का प्राकार माना जाता है। अनुसरण करने वाली; संशय, विपर्यय और अनध्यवबुद्धिपूर्वविपाक-बुद्धिः पूर्वा यस्य कर्म शाटयामी- सायरूप मल से रहित तथा सूक्ष्म-अतिशय दुरवत्येवंलक्षणा बुद्धिः प्रथमं यस्य विपाकस्य स बुद्धि- बोध पदार्थों के जानने में समर्थ होती है उसे पूर्वविपाकः । (त. भा. सिद्ध. वृ. ६-७, पृ. २२०)। बुद्धि सिद्ध कहा जाता है। अथवा जो प्रोत्पत्तिकी, विपाक का अर्थ निर्जरा है, 'मैं कर्म को निर्जीर्ण पारिणामिकी, वैनयिकी और कर्मजा के भेद से
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