Book Title: Jain Lakshanavali Part 3
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 409
________________ सकलदेशच्छेद ] १०७६, १ अपने वंश की प्रतिष्ठा के लिए जो पुत्र को धर्म और धन के साथ समस्त परिवार को समर्पित किया जाता है, इसका नाम सकलदत्ति है। सकल देशच्छेद (निर्विकल्पक समाधिरूपसामायिकस्य ) सर्वथा च्युतिः सकलदेशच्छेदः । ( प्रव. सा. जय. वृ. ३ - १० ) । सकलसंयम कहते हैं । सकलादेश- -- १. यदा यौगपद्यं तदा सकलादेशः, स एव प्रमाणमित्युच्यते, सकलादेश: प्रमाणाधीन इति वचनात् । ××× एकगुणमुखेना शेषवस्तुरूपसंग्रहात् सकलादेशः । यदा प्रभिन्नमेकं वस्तु एकगुणरूपेण उच्यते गुणिनां गुणरूपमन्तरेण विशेषप्रति निर्विकल्पक समाधिरूप सामायिक से पूर्णतया च्युत पत्तेरसंभवान् । एको हि जीवोऽस्तित्वादिष्वेकस्य होने को सकलच्छेद कहा जाता है । सकल परमात्मा --- १. सयलो प्ररुहसरूवो XX X ॥ ( ज्ञा. सा. ३२ ) । २. सकलो भण्यते सद्भिः केवली जिनसत्तमः ॥ ( भावसं वान. ३५३) । १ चार घातिया कर्मों से रहित अरहन्त को सकलपरमात्मा कहा जाता है । सकलप्रत्यक्ष - १. सकलप्रत्यक्षं केवलज्ञानम्, विषयीकृतत्रिका लगोचराशेषार्थत्वात् अतीन्द्रियत्वात् क्रमवृत्तित्वात् निर्व्यवधानात् आत्मार्थसन्निधानमात्र प्रवर्तनात् । उक्तं च- क्षायिकमेकमनन्तं त्रिकालसर्वार्थयुगपद्विभासम् । निरतिशयमन्त्यमच्युतमव्यवधानं जिनज्ञानम् ॥ ( धव. पु. ६, पृ. १४२) । २. केवलं सयलपच्चक्खं पच्चक्खीकयतिकाल विसयासेसदव्व पज्जयभावादो। ( जयध. १, पृ. २४ ) । ३. सकलप्रत्यक्षस्य सर्वद्रव्य पर्यायसाक्षात्करणं स्वरूपम् । (प्रष्टस. १५ ) । ४ सयलो केवलंणाणं XXX 1 ( जं. दी. प. १३ - ४८ ) । ५. सर्वद्रव्य - पर्यायविषयं सकलम् । तच्च घातिसंघातनिरवशेषघातनात् समुन्मीलितं केवलज्ञानमेव । ( न्यायदी. पृ. २) । ६. X X X तत्सकलप्रत्यक्षमक्षयं ज्ञानम् । ( पंचाध्या. १- ६७ )। गुणस्य रूपेणाभेदवृत्त्या प्रभेदोपचारेण वा निरंशः समस्त वक्तुमिष्यते, विभागनिमित्तस्य प्रतियोगिनो गुणान्तरस्य तत्रानाश्रयणात्, तदा सकलादेशः । (त. वा. ४, ४२, १३-१४) । २. सकला देश: प्रमाणाधीनः x x x 1 ( धव. पु. ६, पृ. १६५ उद्) । ३. स्यादस्ति स्यान्नास्ति, स्यादवक्तव्यः, स्यादस्ति च नास्ति च स्यादस्ति चावक्तव्यश्च, स्यान्नास्ति चावक्तव्यश्च स्यादस्ति च नास्ति चावक्तव्यश्च घट इति सप्तापि सकलादेशः । X X X सकलमादिशति कथयतीति सकलादेशः । X X X सकलादेशः प्रमाणाधीनः प्रमाणायत्तः प्रमाणव्यपाश्रयः प्रमाणजनित इति यावत् । ( जयघ. १, पृ. २०१-२०३ ) । ४. XX X स्याच्छब्दसंसूचिताभ्यन्तरीभूतानन्तधर्मकस्य साक्षादुपन्यस्तजीवशब्द- क्रियाभ्यां प्रधानीकृतात्मभावस्यावधारणव्यवच्छिन्नतदसम्भवस्य वस्तुनः सन्दर्शकत्वात् सकलादेश इत्युच्यते, प्रमाणप्रतिपन्न सम्पूर्णाार्थकथनमिति यावत् । (श्राव. नि. मलय. वृ. ७५४, पृ. ३७१ ) । ५. सकलादेशः सकलस्यानेकधर्मणो वस्तुन प्रादेश: कथनम् | ( लघीय. अभय वृ. ६२, पृ. ८४ ) । १ एक गुण की प्रमुखता से जो समस्त वस्तु को विषय करता है उसे सकलादेश कहते हैं । जैसेएक ही जीव को जब अस्तित्व प्रादि श्रनेक गुणों में एक गुण के प्रभेदोपचार से प्रखण्ड ग्रहण किया जाता है तब उसे सकलादेश समझना चाहिए। उस समय प्रतिपक्षी गुण का श्राश्रय नहीं लिया जाता है । सकाम निर्जरा - देखो प्रविपाक निर्जरा । सकामा पुनरुपक्रमापक्व कर्मनिर्जरणलक्षणा । ( प्रन. ध. स्वो. टी. २-४३)। १ तीनों काल सम्बन्धी समस्त पदार्थों को विषय करने वाला जो केवलज्ञान श्रतीन्द्रिय, युगपद्वृत्ति, व्यवधान से रहित और ग्रात्मा मात्र की अपेक्षा रखने वाला है - इन्द्रिय व प्रकाश आदि की अपेक्षा नहीं करता है - उसे सकलप्रत्यक्ष कहा जाता है। सकलसंयम--- संज्वलनकषाय- नोकषायाणां सर्वघातिस्पर्ध कोदयाभावलक्षणे क्षये, तेषामेव सद्वस्थालक्षणे उपशमे च सति सकलसंयमः । (गो. जी. म. प्र. ३२) । संज्वलन श्रौर नोकषायों के सर्वघाती स्पर्धकों के उदयाभावरूप क्षय तथा उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम के होने पर जो पूर्ण संयम होता है उसे उदय में अप्राप्त कर्मों को जो उपक्रम - बुद्धिपूर्वक श्रात्मपरिणाम के द्वारा उदयावली में प्राप्त कराकर निजीर्ण किया जाता है, इसे सकाम अथवा श्रपक्रमकी निर्जरा कहा जाता है । Jain Education International -- जैन - लक्षणावलो For Private & Personal Use Only | सकाम निर्जर www.jainelibrary.org

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