Book Title: Jain Lakshanavali Part 3
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 426
________________ समय (कालविशेष)] १०९३, जैन-लक्षणावली [समयप्रबद्धशेषक क्रमः कालः समयः । (मूला. व. १२-८५)। भी एक रूपवाला है, गति-स्थिति आदि की निमित्तता १३. मंदगतिपरिणतपुद्गलपरमाणुना निमित्तभूतेन से रहित व असाधारण चैतन्यस्वभाव से सहित होने व्यक्तीक्रियमाण: समयः । (पंचा. का. जय. व. २५)। के कारण अन्य धर्माधर्मादि द्रव्यों से भिन्न है, तथा १४. एकस्मिन्नभःप्रदेशे य: परमाणुस्तिष्ठति तमन्यः कभी भी अपने स्वभाव से च्यत न होने के कारण परमाणुर्मन्दचलनाल्लंघयति स समयो व्यवहारका- टांकी से उकेरे गये के समान चैतन्य स्वभाव वाला लः । (नि. सा. वृ. ३१)। १५. णहएयपएसत्थो है; ऐसे इन लक्षणों से युक्त जीवपदार्थ का नाम परमाणू मंदगइपवट्टतो। वीयमणतरखेत्तं जावदियं समय है। जादि तं समयकालं ॥ (द्रव्यस्व. भाव. प्र. नयच. समयक्षेत्र–अड्ढाइज्जा दीवा दो य समुद्दा एस णं. १३६) । १६. आकाशस्यैकप्रदेशस्थितपरमाणुर्मन्द- एवइए समयक्खेत्ते त्ति पवृच्चति । (भगवती २, ६, गतिपरिणतः सन् द्वितीयमनन्तरक्षेत्र यावद्याति सः ५२, पृ. ३०३ प्र. खं.)। समयाख्यः कालः। (कातिके. टी. २२०)। अढ़ाई द्वीप (जम्बद्वीप. धातकीखण्ड और प्राधा १ अतिशय सूक्ष्म क्रिया से संयुक्त व सबसे जघन्य पुष्कर द्वीप) प्रोर लवण व कालोद ये दो समुद्र, गति में परिणत परमाणु का जो अपने अवगाहन- इतने मात्र क्षेत्र को समयक्षेत्र कहा जाता है। क्षेत्र के लांघने का काल है उसका नाम समय है। समयद्योतक–समयद्योतको वादित्वादिना मार्ग४ जिस आकाशप्रदेश में परमाणु स्थित है उसके प्रभावकः । (सा. ध. स्वो. टी. २-५१)।। लांघने में उसे जितना काल लगता है उतने मात्र जो वादित्व प्रादि विशेषतानों के द्वारा मोक्षमार्ग काल को समय कहते हैं, वह विभाग से रहित है। को प्रभावना किया करता है उसे समयद्योतक समय (जीव)--१. योऽयं नित्यमेव परिणामा त्मनि स्वभावे अवतिष्ठमानत्वादुत्पाद-व्यय-ध्रौव्य- समयप्रबद्ध--१. ताहिं अणंतहिं णियमा समयक्यानुभूतिलक्षणया सत्तयानुस्यूतश्चैतन्यस्वरूपत्वान्नि- पबद्धो हवे एक्को। (गो. जी. २४५)। २. ताभि त्योदितविशददशि - ज्ञप्तिज्योतिरनन्तधर्माधिरूढेक- वर्गणाभिरनन्ताभिः सिद्धानन्त भागा भव्यानन्तगुणमित्वादुद्योतमानद्रव्यत्वः क्रमाक्रमप्रवृत्तविचित्र- प्रमिताभिनियमादेक: समयप्रबद्धो नाम योग्यपुद्गलभावस्वभावत्वादुत्सगितगुण-पर्यायः स्व-पराकाराव- स्कन्धो भवति । समयेन प्रबद्धते स्म कर्म-नोकर्मभासनसमर्थत्वादुपात्तवैश्वरूप्यकरूप: प्रतिविशिष्टाव- रूपतया प्रात्मना सम्बध्यते स्म यः पुद्गलस्कन्धः स गाहगति-स्थिति-वर्तनानिमित्तत्त्वरूपित्वाभावासाधार- समयप्रबद्ध इति निरुक्तिसिद्धः, आत्मना मिथ्यादर्शनाणचिद्रूपतास्वभावसभावाच्चाकाश-धर्माधर्म - काल- दिसंक्लेशपरिणामः प्रतिसमयं कर्म-नोकर्मरूपतया पुद्गलेभ्यो भिन्नोऽन्यन्तमनन्तद्रव्यसंकरेऽपि स्वरूपा- परिणममानस्तत्तद्योग्यपुद्गलस्कन्धः समयप्रबद्ध इति दप्रच्यवनात् टंकोत्कीर्णचित्स्वभावो जीवो नाम स्थाद्वादप्रसिद्धो बोद्धव्यः । (गो. जी. म. प्र. व जी. पदार्थः, स समयः। (समयप्रा. अमृत. वृ. २)। प्र. २४५) । २. सम्यगयति गच्छति शुद्धगुण-पर्यायान् परिणमतीति २ सिद्धों के अनन्तवें भाग प्रमाण और प्रभव्यों से समयः । अथवा सम्यगयः संशयादिरहितो बोधो ज्ञानं अनन्तगणी वर्गणाओं से एक समयप्रबद्ध नामक यस्य भवति स समयः । अथवा समित्येकत्वेन परम- पुद्गलस्कन्ध होता है। मिथ्यादर्शनादि संक्लेशसमरसीभावेन स्वकीयशुद्धस्वरूपे अयनं गमनं परिण- परिणामों के वश प्रत्येक समय में कर्म-नोकर्मरूप से मनं समयः । (समयप्रा. जय. वृ. १६१)। परिणत होकर उतना पुद्गलस्कन्ध बंधता है, १. जो परिणमनशील होने से उत्पाद, व्यय और इसलिए उसे समयप्रबद्ध कहा जाता है। ध्रौव्य की एकता के अनुभवन स्वरूप सत्ता से समयप्रबद्धशेषक-जं समयपबद्धस्स वेदिदसे सग्गं अन्वित है, नित्य प्रकाशमान दर्शन व ज्ञानरूप ज्योति पदेसग्गं दिस्सइ, तम्मि अपरिसे सिदम्हि एगसमएण से सहित है, अनन्त धर्मों से सहित होने के कारण उदयमागदम्हि तस्स समयपबद्धस्स अण्णो कम्मपदेसो द्रव्यस्वरूप को प्राप्त है, गुण-पर्यायों से संयुक्त है, वा पत्थि तं समयपबद्धसेसगं णाम । (कसायपा. चू. स्व-परावभासी होने से विश्वरूपता को प्राप्त होकर पृ. ८३३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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