Book Title: Jain Lakshanavali Part 3
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 511
________________ स्तनदृष्टिदोष) ११७८, जैन-लक्षणावली [स्तव स्तनदृष्टिदोष- १. यस्य कायोत्सर्गस्यस्य स्तनयो- त्सर्गेण तस्य स्तम्भदोषः, स्तम्भवत् शून्यहृदयो वा, दृष्टि रात्मीयौ स्तनौ यः पश्यति तस्य स्तनदृष्टिनामा तत्साहचर्येण स एवोच्यते । (मूला, टी. ७-१७१) । दोषः । (मूला. वृ. ७-१७१) । २. दंशादिवारणा- २. स्तम्भः स्तम्भाधवष्टभ्य Xxx स्थितिः ।। र्थमज्ञानाद् वा स्तने चोलपट्टकं निबध्य स्थान स्तन- (अन. प. ८-११३)। ३. स्तम्भमवष्टभ्य स्थान दोषः। धात्रीवद बालार्थ स्तनावन्नमय्य स्थानं वा स्तम्भदोषः । (योगशा. स्वो. विव. ३-१३०)। इत्येके । (योगशा स्वो. विव. ३-१३०)। १खम्भे का पाश्रय लेकर जो कायोत्सर्ग से स्थित १ कायोत्सर्ग में स्थित रहते हुए जिसकी दृष्टि होता है उसके स्तम्भ नामक दोष होता है। अथवा स्तनों पर रहती है - जो अपने स्तनों को देखता है, जो स्तम्भ के समान शून्य हृदय होकर कायोत्सर्ग उसके स्तनदृष्टि नाम का दोष होता है ! २ डांस, से स्थित होता है उसके उक्त दोष समझना चाहिए। मच्छरों प्रादि के निवारण के लिए अथवा प्रज्ञानता से स्तव---१. उसहादिजिणवराणं णामणिरुत्ति गुणाणस्तों को चोलपट्ट से बांध कर कायोत्सर्ग में स्थित कित्ति च । काऊण अच्चिदूण य तिसुद्धिपणमो थवो होना, यह एक स्तनदोष नाम का कायोत्सर्ग का पो।। (मला. १-२४)। २.देविदथयमादी तेणं दोष है। तु परं थया होई ।। (व्यव. भा. ७-१८३) । स्तनदोष-देखो स्तनदष्टिदोष । ३. तीताणागद-बट्टमाणकाल विसयपंचपरमेसराणं स्तनितकुमार- १. स्निग्धाः स्निग्ध-गम्भीरानुना. भेदमकाऊण णमो प्ररहताणं णमो जिणाणमिच्चादिदमहास्वना: कृष्णा वर्धमानचिह्ना: स्तनितकुमाराः। णमोक्कारो दवद्रियणिबन्धणो थवो णाम । (धव, (त. भा. ४-११) । २. स्तनन्ति शब्दं कुर्वन्ति पु.८, प. ८४); बारसंगसंघारों सयलंगविसयप्प. स्त नः शब्दः संजातो वा येषां ते स्तनिताः,xxx णादो धवो णान। xxx कदीए उवसंहारस्स स्तनिताश्च ते कुमारा: स्तनितकुमारा: । (त. वृत्ति सयलाणियोगद्दारेसु उवजोगो थवा गा । (धव. पु. श्रुत. ४-१०)। ६, पृ. २६३); सव्वसुदणाणविसनो उवजोगो थवो १ जो देव स्निग्ध, गम्भीर व अननाद (प्रतिध्वनि) णाम । (धव. पु. १४, पृ. ६)। ४, कृत्वा गुणगणोरूप महान् शब्द से संयुक्त होते हुए श्यामवर्ण व कीर्तिनामव्युत्पत्तिपूजनम् । वृषभादिजिनाधीशस्तवनं वर्धमान (स्वस्तिक) चिह्न से सहित होते हैं वे स्तवनं मतम् ।। (प्राचा. सा. १-१५)। ५. रत्नत्रयमयं स्तनितकुमार (भवनवासी) देव कहलाते हैं। शुद्धं चेतन चेतनात्मकम् । विविक्तं स्तुवतो नित्यं स्तनोन्नतिदोष--देखो स्तनदोष । उन्नमय्य स्थि. स्तवजैः स्तूयते स्तवः ।। (योगसा. प्रा. ५-४८)। तिर्वक्षः स्तनदावत् स्तनोन्नतिः॥ (अन. ध.८, ६. सयलगकंगकंगहियार सवित्थर ससंखेवं । वण्णणसत्थं थय-थुइ-धम्मकहा होइ णियमेण ।। (गो. बालक को स्तनपान कराने वाली स्त्री के समान क. ८८)। ७. स्तवः चतुर्विंशतितीर्थकरस्तुतिः । वक्षस्थल को ऊंचा उठाकर कायोत्सर्ग में स्थित (मला. वृ. १-२२)। ८. परतश्चतुःश्लोकादिकः होने पर स्तनोन्नति नाम का दोष होता है। स्तवः। अन्येषामाचार्याणां मतेन xxx ततः स्तब्धदोष-१. विद्यादिगणोद्धतः सन यः करोति परमष्टश्लोकादिकाः स्तवाः। (व्यव. भा. मलय. क्रियाकर्म तस्य स्तब्धनामा दोषः । (मला. व ७, व ७-१८३)। ६. चतुविशतिजिनानां स्तुतिः १०६)। २. स्तब्धं मदाष्ट कवशीकृतस्य वन्दनम्। स्तवः । (भावप्रा. टी. ७७)। १०. चतुर्विशति(योगशा. ३-१३०) । ३. xxx वन्दनाया तीर्थकरस्तुतिरूप: स्तव: । (त. वृत्ति श्रुत. १-२०)। मदोद्धतिः। स्तब्ध xxx ॥ (अन. ध, ८, ११. परमोरालियदेहसम्मोसरणाण धम्मदेसस्स । १८)। बण्णण मिह तं थवणं तप्पडिवद्धं च सत्थं च ।। १ज्ञान आदि के मद से उद्धत होकर जो कृतिकर्म (अंगप. ३-१५) । को करता है उसके स्तब्ध नामक दोष उत्पन्न होता १, ४ ऋषभादि जिनेन्द्रों की नामनिरुक्ति और है। यह वन्दनाविषयक ३२ दोषों के अन्तर्गत है। गुणानुवाद के साथ जो पूजा की जाती है तथा मन, स्तम्भदोष-१. स्तम्भमाश्रित्य यस्तिष्ठति कायो- वचन व काय की शुद्धिपूर्वक उन्हें प्रणाम किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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