Book Title: Jain Lakshanavali Part 3
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 551
________________ हेतुविचय] १२१८, जैन-लक्षणावली [हस्व च्छेदेन यत्र गुणप्रकर्षस्तत्राभिनिवेशः श्रेयानिति १ जो अन्यथानुपपन्नत्व (प्रविनाभाव) से रहित होते स्याद्वादतीर्थकरप्रवचने पूर्वापराविरोधहेतुपरिग्रहण- हुए दूसरे एकान्तवादियों के द्वारा हेतुरूप से कल्पित सामर्थ्येन समवस्थानगुणानुचिन्तनं हेतुविचयं दशमं हैं वे हेत्वाभास कहलाते हैं। २ जिनमें हेतु का धर्म्यम् । (चा. सा. पृ. ६०; कातिके. टी. ४८२)। लक्षण तो घटित नहीं होता है, पर हेतु के समान १ तर्क (ऊहापोह) का प्राश्रय लेने वाले पुरुष प्रतीत होते हैं उन्हें हेत्वाभास कहा जाता है । के द्वारा स्थावावप्रक्रिया-अनेकान्तवाद के आश्रय हेलितदोष-देखो हीलितदोष । से-समीचीन मार्ग (मोक्षमार्ग) के प्राश्रयण होता-अध्यात्माग्नौ दया-मन्त्रैः सम्यक्कर्मसमिका जो विचार किया जाता है वह हेतु- च्चयम् । यो जुहोति स होता स्यान्न बाह्याग्निविचय धर्मध्यान कहलाता है। यह प्राध्यात्मिक मेघकः ॥ (उपासका. ८८१)। धर्मध्यान के अपायविचयादि दस भेदों में अन्तिम जो प्रध्यात्मरूप अग्नि में दयारूप मन्त्रों के द्वारा भलीभांति कर्मरूप हव्य सामग्री का होम करता हेत्वाभास-१. अन्यथानुपपन्नत्वरहिता ये विड. है वह वास्तव में होता है, बाह्य अग्नि में समिधा म्बिताः ॥ हेतुत्वेन परस्तेषां हेत्वाभासत्वमीक्ष्यते। का होम करने वाला यथार्थ में होता नहीं है। (न्यायवि. २, १७४-७५, पृ. २१०)। २. हेतु- ह्रस्व-एकमात्रो ह्रस्वः । (धव. पु. १३, पृ. लक्षणरहिता हेतुवदवभासमाना हेत्वाभासाः । २४०)। (न्यायवी. पृ. ६९-१००)। एक मात्रा वाले वर्ण को ह्रस्व कहा जाता है। EME -TAHSI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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