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वलन्मर
१८६, जैन-लक्षणावली
[वश्यकर्म
वृ. २५)। ६. वस्सं वे अयणं पुष xxx। कुल्हाड़ी प्रादि के द्वारा वन के वृक्ष प्रादि को छेदने (जं. दी. प. १३-८)।
का नाम वल्लरिच्छेद है। यह छेदना के दस भेदों १दो अयनों का एक वर्ष होता है।
में छठा है। वलन्मरण-देखो वलायमरण ।
वश उत्पादनदोष-देखो वश्यकर्म । वलाकामरण-देखो आये वलायमरण । वशार्तमरण-१. जे इंदिय विसयवसट्टा मरंति वलायमरण-१. संजमजोगविसना मरंति जे तं वसट्टमरणं । तद्यथा-शलभो रूववग्गो चक्षुरिबलायमरणं, जेसि संजमजोगो अस्थि ते मरणमन्भव- न्द्रियवशा” म्रियते, एवं शेषेरपीन्द्रियः (शेषाः) । गच्छंति, 4 सव्वथा संजममुझंति, से तं वलाय- (उत्तरा. चू. ५, पृ. १२८) । २. इंदियविसममरणं । अथवा वलंता क्षुधापरीसहेहिं मरंति, ण तु वसगया मरंति जे तं वसटें तु ॥ (प्रव. सारो. उवसग्गमरणंति तं वलायमरणं । (उत्तरा. ७. १०१०, पृ. २६८; स्थाना. अभय. वृ. १०२ उद्.)। ५, प. १२८)। २. विनय-वैयावत्यादावतादरः ३. इन्द्रियाणां वशम् अधीनताम, ऋतानां गतानां प्रशस्तयोगोद्वहनालसः प्रमादवान् व्रतेषु समितिषु
स्निग्धदीपकलिकावलोकनाकूलितपतङ्गादीनामिव मगुप्तिषु च स्ववीर्यनिगूहनपरः धर्मचिन्तायां निद्रया रणं वशार्तमरणमिति । (स्थाना. अभय. व. १०२, घर्णित इव ध्यान-नमस्कारादेः पलायते अनुपयुक्ततया, पृ. ६४) । एतस्य मरण वलायमरणम् । (म. प्रा. विजयो. १ जो इन्द्रियविषयों के वश होकर पीड़ित होते २३, पृ. ८९) । ३. संजमजोगविसन्ना मरंति जे तं हुए मरण को प्राप्त होते हैं उनके उस मरण को वलायमर तु। (प्रव. सारो. १०१०, पृ. २९८%3 वशातमरण कहा जाता है। स्थाना. अभय. वृ. १०२ उद्) । ४. संयम-योगेभ्यो वशित्व-१. वशमेंति तवबलेणं ज जीग्रोहा वरि. वलतां भग्नवतपरिणतीनां वतिनां मरणं वलन्मरणम। त्तरिद्धी सा॥ (ति. प. ४-१०३०)। २. सर्वजीव(समवा. वृ. १७) । ५. वलतां संयमान्निवर्तमाना- वशीकरणलब्धिर्वशित्वम् । (त. वा. ३, ३६, ३, मां परीषहादिबाधितत्वात मरणं वलन्मरणम । पृ. २०३; चा. सा. पृ. ९८%योगिभ. टी. ६; (स्थाना. अभय. वृ. १०२)। ६. पावस्थरूपेण योगशा. स्वो. विव. १-८, पृ. ३७)। ३. मागुनमरपं वलाकामरणम् । (भ. प्रा. मला. २५)। मायंग-हरि-तुरयादीणं सगिच्छाए विउन्वणसत्ती १बो संयम के अनुष्ठान से खिन्न हो करके मरण । वसित्तं णाम । (धव. पु. ६, पृ. ७६) । ४. वशित्व को प्राप्त होते हैं उनके उस मरण को वलायमरण यद् भूतानि स्थावर-जङ्गमानि वशं नयति वश्येन्द्रिकहा जाता है। जिनके संयमयोग होता है वे मरण यश्च भवति । (न्यायकु. ४, पृ. १११)। ५. सर्वको स्वीकार करते हैं, पर सर्वथा संयम को नहीं प्राणिगणवशीकरणशक्तिर्वशित्वम् । (त. वृत्ति अन. छोड़ते हैं, यह वलायमरण कहलाता है। प्रथवा जो ३-३६)। संयम से भ्रष्ट होकर क्षुधा परीषहों के द्वारा मरते हैं १ तप के बल से प्राप्त जिस ऋद्धि के प्रभाव से उनका वह मरण वलायमरण कहलाता है। २ जो जीवसमूह अपने वश में हो जाया करते हैं उसका विनय व वैयावृत्य धादि में प्रादर नहीं करता, प्रशस्त नाम वशित्व ऋद्धि है। २ समस्त जीवों को वश योगके अनुष्ठान में अनादरपूर्वक मालस में करने वाली शक्ति को वशित्व ऋद्धि कहा जाता करता है। व्रत, समितियों व गप्तियों के विषय में है। अपनी शक्ति को छिपाता है तथा धर्मचिन्तन में वश्यकर्म-१.xxx वश्यकर्म यत् । वश्यनिद्रा से अभिभूत के समान होता हुमा ध्यान कृन्मंत्र-तंत्रादिदेशनेनाशनार्जनम् ॥ (प्राचा. सा. नमस्कारादि से दूर भागता है, उसके मरण को ८-४२) । २. वशो वशीकरणम् । (प्रन. प. स्वो. वलायमरण कहते हैं । इसका उल्लेख वलन्मरण से टी. ५-१६); अवशस्य अस्वाधीनस्य वशीकृतिः भी किया जाता है।
स्वाधीनीकरणमवशवशीकृतिः। (अन. प. स्वो. टी. पल्लरिच्छेद--कुढारादीहि भइरुक्खादिखंडणं ५-२७) । ३. वशीकरणमंत्र-तंत्राद्युपदेशेन यदन्मोबस्वरिच्छेदो बाम । (वव. पु. १४, पृ. ४३६)। पार्जनं तश्यकर्म । (भावप्रा. टी. १६)।
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