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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
"तस्मिन्नवसरे च सोमब्राह्मणस्य द्वौ पुत्रौ शिवदासबुद्धिसागर नामानौ एका च कल्याणवतीनाम्नी पुत्री-एवं त्रयोऽप्येते सोमेश्वरमहादेवस्य यात्रार्थं गच्छन्तः सरसाभिधाने पत्तने समाजग्मुस्तत्र सरस्वत्यां नद्यां स्नात्वा रात्रौ तत्रैव सुप्ताः । ततोऽर्द्धरात्रिवेलायां सोमेश्वर : (महादेव :) प्रादुर्भूय तेभ्य इत्युवाच-भो ! प्रसन्नोऽहं मार्गयत मनोवांछितं वरं । ततस्तैर्वैकुण्ठं याचितम् । स प्राह-भो! ममापि वैकुण्ठं नास्ति ततो भवद्भ्यः कुतो ददामि ? परं यदि वैकुण्ठे भवतां इच्छास्ति तर्हि श्री वर्द्धमानसूरेश्चरण-सेवा कार्या स एवैको वैकुण्ठदाताऽस्ति-इत्युक्त वा देवोऽदृश्यो बभूव । ततः प्रातः काले ते त्रयोऽपि जना नद्यां स्नात्वा उपाश्रयमागत्य च गुरुभ्यो वैकुण्ठममार्गयन् । ततो गुरुभिरपि एकस्य भ्रातुर्मस्तकशिखायां स्थितां मत्सी दर्शयित्वा दयामयं श्री जैनधर्म द्योतयित्वा तान् प्रतिबोध्य दीक्षा दत्ता,'योगादिकं वाहयित्वा सर्वसिद्धान्तपारगाःकृताः। शिवदासस्य जिनेश्वरेति नाम दत्तम् ।।
शोधार्थियों एवं इतिहास में अभिरुचि रखने वाले विज्ञजनों के लिये . उपयुद्ध त गुर्वावलि-गद्यांश में उल्लिखित प्रत्येक 'बात बड़ी गंभीरता के साथ मननीय है । इस गद्यांश से विभिन्न गच्छों की पट्टावलियों के ऐतिहासिक दृष्टि से , मूल्यांकन में तथा उनकी प्रामाणिकता अथवा अप्रामाणिकता के निर्धारण में बड़ी सहायता मिलती है। तपागच्छ पट्टावली के उल्लेखों से पूर्णतः भिन्न प्रतिकूल अथवा विरुद्ध जिन घटनाओं का उल्लेख इस गुर्वावली में किया गया है, वे इस प्रकार हैं :
१. तपागच्छ गुर्वावली में उद्योतनसूरि को विनयचन्द्रसूरि का पट्टधर और भगवान् महावीर की प्राचार्य परम्परा का ३५वां और मुनि सुन्दर रचित गुर्वावली परम्परा में ३६वां प्राचार्य बताया गया है ।
इसके विपरीत खरतरगच्छ की उपर्युल्लिखित दानसागर जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर में विद्यमान जैन गुर्वावली में उद्योतनसूरि को प्राचार्य नेमिचन्द्रसूरि का पट्टधर २७वां प्राचार्य बताया गया है। तपागच्छ पट्टावली में इन्हीं आचार्य नेमिचन्द्र को ३६वें प्राचार्य के रूप में यशोभद्रसूरि के साथ बताया गया है । इसके विपरीत तपागच्छ पट्टावली में ३९वें उद्योतनसूरि के उत्तरवर्ती कालीन पट्टधर यशोभद्रसूरि को खरतरगच्छ की इस गुर्वावली में उद्योतनसूरि से ४ पट्ट पूर्व के ३४वें प्राचार्य के रूप में उल्लिखित किया गया है । 3
१. गुर्वावली (१८९२) तक पो. १०. ग्रं. १५२, श्रीदानसागर जैन ज्ञान भण्डार बीकानेर । पत्र
५३८ पृष्ठों वाली इस गुर्वावली की फोटोस्टेट प्रति मा. विनय चन्द्रज्ञान भण्डार में है । गुर्वावली (१८६२) तक पो. १० नं. १५२ श्री दानसागर जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर पत्र ५. (८३ पृष्ठों वाली इस गुर्वावली की फोटोस्टेट प्रति आचार्य श्री विनयचन्द्र
ज्ञानभण्डार में है)। ३. पट्टावली समुच्चय प्रथम भाग पृष्ठ २४, ५३, ५४ और (खरतरगच्छ) गुर्वावली
दानसागर जैन ज्ञान भण्डार, बीकानेर पो. १०, ग्रं. १५२, पृष्ठ ८ । .
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