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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
अजयदेव
[ ४४६ प्रतापो राजमार्तण्ड, पूर्वस्यामेव राजते ।
स एव विलयं याति, पश्चिमाशावलम्बिनः ।। अर्थात्--हे पूर्व दिशा के स्वामिन् सुभटवर्मन ! सूर्य जब तक पूर्व दिशा में रहता है, उसका प्रचण्ड प्रकाश उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है किन्तु मध्यान्ह वेला के अनन्तर जब वह पश्चिम दिशा की ओर उन्मुख होता है तो उसका तेज क्रमशः घटता ही जाता है और अन्ततोगत्वा धरातल ही नहीं अपितु गगन-मण्डल से भी तिरोहित हो जाता है। पूर्व के स्वामी की पश्चिम विजय की आशा वस्तुतः उसके विनाश का कारण बनेगी।
गुर्जर राज्य के प्रधानामात्य की इस व्याजोक्ति से सुभटवर्मन के मन में अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न हुए और सम्भवतः गुजरात की सशक्त सेना के साथ विग्रह में लाभ की अपेक्षा हानि की अधिक आशंका से सुभटवर्मन बिना युद्ध किये ही अपने राज्य की ओर लौट गया। इस सम्बन्ध में प्रबन्ध चिन्तामणि का निम्नलिखित उल्लेख द्रष्टव्य है :
“सं० १२३५ पूर्ववर्ष ६३ श्री भीमदेवेन राज्यं कृतमस्मिन् राज्ञि राज्यं कुर्वाणे श्री सोहड़नामा (सुभट का विकृत स्वरूप) मालवभूपतिगुर्जरदेश विध्वंसनाय सीमान्तमागतस्तत्प्रधानेन सम्मुखं गत्वेत्यवादि"......."
इति विरुद्धां तगिरमाकर्ण्य स पश्चानिववृते ।............"
इसके विपरीत लब्धप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ आर. सी. मजूमदार का अभिमत है कि सुभटवर्मन परमार ने अजयपाल के बाद गुजरात पर आक्रमण किया। उसने बहुत बड़ी संख्या में जैन मन्दिरों को लूटा, जिनमें प्रमुख थे दमोई और खम्भात के जैन मन्दिर । सुभटवर्मन अपनी सेना के साथ सोमनाथ भी पहुंचा । पर उसे गुजरात के राजा भीम के सामन्त श्रीधर ने आगे बढ़ने से रोका। अन्त में गुर्जरपति भीम का सामन्त (अनहिलपत्तन से १० मील दूर व्याघ्रपल्ली का स्वामी) और प्रधानमन्त्री लवण प्रसाद युद्ध में सुभटवर्मन के समक्ष प्रा डटा और भीषण तुमुल युद्ध के अनन्तर लवण प्रसाद ने सुभटवर्मन को गुजरात से बाहर खदेड़ मालवा की अोर भगा दिया।
वि० सं० १२३५ से वि० सं० १२६८ तक के अपने ६३ वर्षों के शासनकाल में गुर्जरेश्वर भीम को परमार्हत् महाराजा कुमारपाल के मौसेरे भाई सामन्त पानाक भूप' के पुत्र लवणप्रसाद और उसके (लवणप्रसाद के) के पुत्र वीर धवल से, छोटी
१. अथ कदाचिदानाकनामा मातृष्वसीयस्तत्सेवागुण तुष्टेन राज्ञा दत्तसामन्त पदोऽपि तथैव सेवमानः"....." ।
-प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ १५४
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