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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
लोकाशाह
[ ७६३ सं० १६६२ मां मुनिश्री लवजी ऋषिए विरोध उठाव्यो हतो। आ बन्ने महात्माग्रो अने तेमना शिष्योए दक्षिण सुधीना हिंदना बधी प्रदेशो मां फरी वली (विहारकरी) प्रचण्ड प्रचार कर्यो हतो। अने ते थी मूर्तिपूजकोमां ते वखते प्रचण्ड ऊहापोह थाय ते स्वाभाविक हतुं । ते थी ते वखते तेमना मन्तव्योनी नोंध-नकल करवानी जरूरियात उभी थवाथी तेमणे (मूर्तिपूजके) उक्त नकल करी लीधी। (२) मुनिश्री धर्मसिंहजी सूत्रना ज्ञाता हता अने तेमणे सूत्रो ना टब्बा पण लख्या हता। एटले सूत्रों, नियुक्तियों, चूणि वगैरेना सूत्र पाठ वाला ते (५८) बोल मुनि श्री धर्मसिंहजी ज लखी शके तेम हता। (३) लुंकाना ५८ बोलमां ना बधा मन्तव्यो मुनि श्री धर्मसिंहजीना प्रमाणेना ज छे। एटले ते कृति मुनि श्री धर्मसिंहजीनीज होवानो पूरो संभव छ।” (पृ० ५४)
___ अधर्म का समूलोन्मूलन करने के परम पुनीत एवं सुदृढ़ संकल्प के साथ सफल धर्मक्रान्ति का सूत्रपात करने वाले महान् धर्मोद्धारक महापुरुष लोंकाशाह के शशिकलासमुज्ज्वल पावन जीवनवृत्त पर अपनी मिथ्याभिनिवेशाभिभूता भावना के साथ अपनी लेखिनी से श्याही बिखेरने से पूर्व श्री नगीनदास गिरधरलाल शेठ को पार्श्वचन्द्रगच्छ के प्रवर्तक, मूर्तिपूजा के प्रबल पक्षपाती श्री पार्श्वचन्द्रसूरि द्वारा रचित "लुकाए पूछेल १३ प्रश्न अने तेना उत्तरो" तथा "श्री स्थापना पंचाशिका प्रकरण" नामक दो कृतियों को और इनके निर्माण के पीछे रही उनकी भावना को भी भली-भांति ध्यान में ले लेना चाहिये था ।
__ "स्थापनापंचाशिका" के निर्माण के पीछे रहे पार्श्वचन्द्रसूरि के लक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए प्राचार्य श्री भ्रातृचन्द्रसूरीश्वर के शिष्य श्री सागरचन्द्रसूरि ने श्री सप्तपदीशास्त्र की भूमिका में लिखा है :
"बीजो ग्रन्थ" श्री स्थापनापंचाशिकाप्रकरण “जेमां स्थापना सम्बन्धी बिना सूत्र-सिद्धान्तना पुरावा बताववापूर्वक जणायेल छ-"जिनप्रतिमा जिन सारखी" ए वस्तु शास्त्रानुसारे सिद्ध करी लोंकाना मत ने अनुसरनाराओ ने शुद्ध श्रद्धा वाला करवा अने युक्तिपुरस्सर समझाववा माटे प्राचार्यवर्ये आ ग्रन्थनी रचना करी छ ।.... सम्वत् १५७४ वर्षे ज्येष्ठ मासे, चतुर्थी तिथौ शनिवासरे लिखिता सूरि पावचन्द्रेण सा० नाडुपुत्र सा० संधारण. पठनार्थ।" १
स्थापनापंचाशिका की पुष्पिका में श्री पार्श्वचन्द्रसूरि ने लिखा है :"वेदमुणिति हिसुवरिसे (सं० १५७४), पंडियसिरिसाहुरयणसीसेण पासचंदेण विहिया, ठवणा पंचासिया एसा ॥५३।।"२
१. श्री सप्तपदी शास्त्र, पार्श्वचन्द्रसूरि लिखित प्रकाशक :–व्होरा मोहनलाल जीवराज
___ मांडलसंघ की ओर से मांडल, प्रस्तावना पृष्ठ १० । २. —वही--- पृष्ठ १८३
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