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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
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स्थिति में पारिवारिक जीवन के परिचय के अभाव से उन महापुरुषों की महामहनीया महत्ता में कोई अन्तर नहीं आता । उदाहरण स्वरूप दिगम्बर परम्परा के महान् धर्मोद्धारक प्राचार्य कुन्द-कुन्द के पारिवारिक एवं वैयक्तिक जीवन का नाममात्र के लिए भी कोई प्रामाणिक परिचय उपलब्ध नहीं होता किन्तु फिर भी प्रतिदिन प्रातःकाल ऊषावेला में उठे लाखों श्रद्धालुओं के भावविभोर कण्ठों से गुंजरित हुए
"मंगलं कुन्दकुन्दाद्याः, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्'
इस भक्तिसुधासिक्त घोष से विस्तीर्ण वातावरण मुखरित हो उठता है ।
यह सब कुछ होते हुए भी महापुरुषों के वैयक्तिक एवं पारिवारिक जीवन परचिय का भी अपनी जगह बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है—इस तथ्य को किसी भी दशा में भुलाया नहीं जा सकता । महापुरुषों के आध्यात्मिक जीवन परिचय के साथसाथ सांगोपांग वैयक्तिक पारिवारिक जीवन का परिचय भी उपलब्ध हो तो वह समाज के लिए, श्रद्धालुजनों के लिए सोने में सुगन्ध तुल्य सुखावह होता है ।।
यदि लोंकाशाह का कोई प्रामाणिक पारिवारिक एवं वैयक्तिक परिचय उपलब्ध हो जाय तो उनके जीवन परिचय की दृष्टि से नहीं अपितु समाज के, श्रद्धालु अनुयायियों के कर्त्तव्य की दृष्टि से परम सन्तोषप्रद होगा। इतने बड़े महान् धर्मोद्धारक और अभूतपूर्व क्रान्ति के सूत्रधार लोकाशाह जैसे महापुरुष के प्रेरणापुंज सर्वांगपूर्ण जीवन परिचय को एक अक्षय अमूल्य निधि की भांति सुरक्षित नहीं रखा गया इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि लोंकागच्छ के नाम से अभिहित की जाने वाली लोंकाशाह द्वारा प्रकाश में लाई गई विशुद्ध आगमिक परम्परा के प्राचार्यों की पाठ पीढ़ियों के पश्चात् एक लम्बे सुनियोजित षड्यन्त्र के परिणामस्वरूप लोंकागच्छ के कतिपय कर्णधार अपने प्रमुख पट्टधरों के साथ लोंकाशाह द्वारा सूत्रित कान्ति की आधारशिला स्वरूपा मान्यता से मुख मोड़कर भी अपने आपको लोकागच्छ के अनुयायी बताते हुए मूर्तिपूजक बन गये । परिणामतः लोंकागच्छ एवं लोकाशाह से सम्बन्धित सम्पूर्ण महत्वपूर्ण लिखित सामग्री लोकाशाह की मूल मान्यता से विमुख हुए लोगों के अधिकार में रह गई। यदि उस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व की सामग्री को अद्यावधि नष्ट नहीं किया गया है, तो वह बड़ौदा आदि लोंकागच्छीय उपाश्रयों के किन्हीं तलग्रहों में उपलब्ध हो सकती है। उस सामग्री को खोज निकालने के कुछ प्रयास किये गये हैं। किन्तु अभी तक किचित्मात्र भी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकी है। लोंकागच्छ के अन्यान्य उपाश्रयों से लोंकाशाह से सम्बन्धित ऐतिहासिक सामग्री के उपलब्ध हो सकने की प्रबल सम्भावना है। पर इस सब के लिए पूर्ण निष्ठा लगन, श्रम एवं तत्परता के साथ गहन शोध की आवश्यकता है। जब तक इस प्रकार की खोज से वास्तविक तथ्यों को प्रकाश में नहीं
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