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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
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के अदष्टपूर्व सुन्दर अक्षरों को देख कर हर्ष-विभोर हो उठा। उसने तत्काल अपने गुरु अानन्द विमलसूरि के सम्मुख उपस्थित हो उन्हें मेहता लखमसी द्वारा लिखित पत्र बताया । सुन्दर अक्षरों को देख आश्चर्याभिभूत प्राचार्य प्रानन्दविमलसूरि ने अपने शिष्य से पूछा- "यह किसने लिखा है ?"
मुनि खेमचन्द्र ने दोनों भाइयों को प्राचार्य श्री के समक्ष उपस्थित कर लखमसी की ओर संकेत करते हुए कहा-"भगवन्, इस लखमसी ने लिखा है।"
उस समय विक्रम सं० १५३१ के शुभारम्भ के साथ ही भस्मग्रह उतर चुका था। प्राचार्य श्री ने जीवराज और मेहता लखमसी को सूत्रों के लिखने का कार्यभार सौंपा। लखमसी ने सूत्रों का लेखन प्रारम्भ किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि जिन प्ररूपित जैन धर्म का वास्तविक स्वरूप तो पागमों में इस प्रकार का निरतिचार और शुद्ध बताया गया है। इसके विपरीत वर्तमान काल में अहिंसाप्रधान जैन धर्म के अनुयायी अनेक प्रकार की आडम्बर पूर्ण हिंसाप्रधान प्रवृत्तियों में ही धर्म मान बैठे हैं। प्रागमों की इस अमूल्य निधि को संचित करने के लक्ष्य से मेहता लखमसी ने वहां के नगर श्रेष्ठ रूपसी से सम्पर्क स्थापित कर आगमों के लेखन कार्य के लिए आर्थिक सहायता प्राप्त की और ३२ प्रागमों को लिखा एवं लिखवाया। तदनन्तर लखमसी और रूपसी ने आनन्द विमल सूरि के पास प्रागमों का अध्ययन किया। आगमों में निष्णात हो जाने पर लखमसी ने पाटण के त्रिपोलिया पर उपदेश देकर लोगों को धर्म का विशुद्ध स्वरूप बताना प्रारम्भ किया।
लोकाशाह के उपदेशों से प्रबुद्ध हो रूपसी, शाह भामा, शाह भारमल आदि ४५ विरक्तात्माओं ने वि० सं० १५३१ की वैसाख शुक्ला एकादशी गुरुवार के दिन श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण की और लोंकागच्छ की स्थापना की । रूपसी को लोकागच्छ का प्रथम पट्टधर तथा भारमल और भुजराज (भोजराज अथवा भामा जी) को स्थविर पदवी प्रदान की गई। तदनन्तर लोंकागच्छ उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया।"
एक पातरिया गच्छ पट्टावली के रचनाकार (मुनि रायचन्द्र वि० सं० १७२६) पर तो पूर्णतः भष्मग्रह का भूत सवार रहा प्रतीत होता है । इस पट्टावली से विचार करने योग्य केवल एक ही नई बात प्रकाश में आती है कि लोंकाशाह मारवाड़ के निवासी थे । खरंटिया अथवा विरांटिया उनका गांव था। उनकी जाति बीसा ओसवाल थी। मारवाड़ में ठिकाने के कामदारों को मेहता की संज्ञा से अभिहित किये जाने की परिपाटी थी, इस कारण सुनिश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि लखमसी की जाति भी मेहता थी।
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