Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur
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८४४ 7
तारणस्वामी - ७०६ तिलकाचार्य - २८१
तिलक सूरि-८१० तुगलक मोहम्मदशाह - ४८७ तुल्यन गण्याचार्य - १८०
สี
दन्तिदुर्ग राजा - ८६
दाहिर राजा - १६६, २०५
दिन सूरि-५०१
दुर्जनसिंह - ७२८
दुर्लभ सेन राजा - १०२, १३६, १७७, १७८, १८३, १५६, १६०, ४५६, ४५६, ४६१, ४६३, ४६७, ४६८, ४७१, ४७२, ४७४, ४६२, ४६५, ५३६ देवगुप्त सूरि- ५०६, ५०७, ५०८ देवपाल श्रावक - २७१
देवबोध मुनि - ३५६ से ३६५ देव विमल गरिण- ११०
देवसूरि - ११७, ११८, १२६, १२८, १४१, देव ऋषि - २३६, २५१, २६५, २६६, २८५,
२६०, २६१ से ३०६, ३०६, ३१०, ३२६, ३३३ से ३३५, ३३७, ३३८, ३४६, ३४७, ३४६, ३७७, ३७८ देवाचार्य - २७३, २७४, २७५, ३६२, ४२३ से ४२६, ४६०, ४७८, ४६२, ५०१, ५३१, ५५६, ५६० से ५६२
देवानन्द सूरि- ५०१
देवीसिंह ठक्कर - ४६७
देवेन्द्र सूरि- ३१३, ५५१, ५७४
द्रोण प्राचार्य - ११६, १५८, १५६, १६४, १६५, १६७, १७६ से १८२, १८५ से १६७, २५६, ५४०, ५४४
घनदेवश्रावक - २६७
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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
धर्मघोष प्राचार्य - ९२, १२८, ३७५, ३७६, ५४३, ५५०, ५६१, ५६२ धर्मचन्द सूरि- ७५, ५५० धर्मदासजी - ७६१
" धर्मप्रभ सूरि- ५५१
धर्न मूर्ति सूरि- ५५१ धर्मशेखर- ३२७
धर्म सागर गणि- १०४, १०६, २५१, २५२, २५४, २५५, ३०६
प्रा० धर्मसागर - २८२, २८४, २८६, ४८८, ५२६, ५३०, ५८५, ७१२
धर्मसिंहजी - ७६१, ७६२, ७६३, ७८८
न
नरचन्द्रसूरि - ५१५, ५५० नरवर्मा राजा -- २४६, २५० नरसिंह सूरि- ५०१, ५२६, ५३० नरेन्द्रनृप तुरंग - ८८ नागावलोक राजा - ७६, ८६ नागेन्द्रचन्द्रजी - ७०८, ७१६
नानगजी स्वामी - ६२० नायक विजय - ७५१ निम्बदेव - ३२
नेमिचन्द्र सूरि- १०५, १०६, ११८, ११६, १२६, १२७, १४१, ३०६, ३२८, ५०१
नेमिचन्द्र - ११७, ११८
पंचायरणजी - ७०८
पद्मदेव सूरि - १२४, ५१५, ५५० पद्मशेखर- ३२७
पल्लवराज- ५४
पृथ्वीराज चौहान - ४५२, ४५३, ८१५ पाण्ड्यराज सुंद्धरपाड्य - २२ε
पाण्ड्यराज कुन् पाण्ड्य - ५२ पादलिप्ति सूरि- १७८, ३२५, ३२६, ५४४,
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