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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
सिद्धान्त के साथ इन बातों का कोई सम्बन्ध नहीं है। प्राचार्याभिषेक के प्रसंग में इन्होंने भावी प्राचार्य को तैलादि विधिपूर्वक अविधवा स्त्रियों द्वारा वर्णक (पीठी) करने तक का विधान किया है। यह सब देखते तो यही लगता है कि श्री पादलिप्तसूरि स्वयं चैत्ववासी होने चाहिये। कदाचित ऐसा मानने में कोई आपत्ति हो तो न माने फिर भी इतना तो निर्विवाद है कि पादलिप्तसूरि का समय चैत्यवासियों के प्राबल्य का था। इससे इनकी प्रतिष्ठा-पद्धति प्रादि कृतियों पर चैत्यवासियों की अनेक प्रवृत्तियों की अनिवार्य छाप है। साधु को सचित्त जल, पुष्पादि द्रव्यों द्वारा जिनपूजा करने का विधान जैसे चैत्यवासियों की प्राचरणा है, उसी प्रकार से सुवर्णमुद्रा, कंकणधारणादि विधान ठेठ चैत्यवासियों के घर का है, सुविहितों का नहीं। - श्रीचन्द्र, जिनप्रभ, वर्द्धमानसूरि स्वयं चैत्यवासी नहीं थे, फिर भी वे उनके साम्राज्यकाल में विद्यमान अवश्य थे। इन्होंने प्रतिष्ठाचार्य के लिये मुद्रा, कंकरणधारण का विधान किया इसका कारण श्रीचन्द्रसूरिजी आदि की प्रतिष्ठा पद्धतियां चैत्यवासियों की प्रतिष्ठा विधियों के आधार से बनी हुई हैं, इस कारण से इनमें चैत्यवासियों की प्राचरणामों का आना स्वाभाविक है । उपर्युक्त आचार्यों के समय में चैत्यवासियों के किले टूटने लगे थे फिर भी वे सुविहितों द्वारा सर नहीं हुए थे। चैत्यवासियों के मुकाबिले में हमारे सुविहित प्राचार्य बहुत कम थे। उनमें कतिपय अच्छे विद्वान् और ग्रन्थकार भी थे, तथापि उनके ग्रन्थों का निर्माण चैत्यवासियों के ग्रन्थों के आधार से होता था। प्रतिष्ठाविधि जैसे विषयों में तो पूर्वग्रन्थों का सहारा लिये बिना चलता ही नहीं था। इस विषय में “प्राचार दिनकर" ग्रन्थ स्वयं साक्षी है । इसमें जो कुछ संग्रह किया है, वह सब चैत्यवासियों और दिगम्बर भट्टारकों का है, वर्द्धमानसूरि का अपना कुछ भी नहीं है।"
__ "प्रतिष्ठा-विधियों में क्रान्ति का प्रारम्भ प्रतिष्ठाविधियों में लगभग चौदहवीं शती से क्रान्ति आरम्भ हो गई थी। बारहवीं शती तक प्रत्येक प्रतिष्ठाचार्य विधिकार्य में सचित्त जल, पुष्पादि का स्पर्श और सुवर्ण मुद्रादि धारण अनिवार्य गिनते थे, परन्तु तेरहवीं शती और उसके बाद में कतिपय सुविहित आचार्यों ने प्रतिष्ठाविषयक कितनी ही बातों के सम्बन्ध में ऊहापोह किया और त्यागी गुरु को प्रतिष्ठा में कौन-कौन से कार्य करने चाहिए, इसका निर्णय कर नीचे मुजब घोषणा की :
थुइदाण, मंतनासो, पाहवणं तह जिणाणं दिसिबंधो। ___ नित्तुम्मीलण, देसण, गुरु अहिगारा इहं कप्पे ।।
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