Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

Previous | Next

Page 813
________________ ७६४ ] . [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ नहीं। इस समय शास्त्रोक्त चतुष्पर्वी की आम्नाय भी दिखती नहीं। जहां युग प्रधान होगा, वहां उक्त सभी बातें एक रूप में ही होंगी। इसलिये तुम श्री युग प्रधान का ध्यान करते हुए श्रावक के वेश में “संवरी" बन कर रहो, जिससे तुम्हारी आत्मा का कल्याण हो।" “शाह कडुवा ने जैन सिद्धान्तों की बातें सुनी थीं, उसको हरिकीर्ति की बात ठीक जंची । वह साधुता की भावना वाला प्रासुक जल पीता, अचित आहार करता, अपने निमित्त नहीं बनाया हुआ विशुद्ध आहार श्रावक के घर से लेता । ब्रह्मचर्य का पालन करता, १२ व्रत धारण करता, किसी पर ममता न रखता हुआ पृथ्वी पर विचरने लगा.।" "कडुवाशाह ने सर्वप्रथम पाटण में लीम्बा महता को प्रतिबोध दिया । संवत् १५२४ में शाह मेहता लीम्बा ने शाह कडुवा को विरागी जानकर अपने घर भोजनार्थ बुलाया".......""। लीम्बा जैन धर्म का श्रद्धालु बन गया"१ "संवत् १५२५ में वीरम गांव में ३०० घर अपने मत में लिये, संवत् १५२६ में संलक्खपुर में चातुर्मास्य कर..१५० घर अपने मत में लिये । सं० १५२६ में अहमदाबाद में...७०० घर अपने मत में किये । सं० १५२६ में खम्भात में....५०० घर, सं० १५३० में माडल में........५०० घर,.......सं० १५३३ में चांपानेर में ३०० ........"तथा कराद में ९०० घर अपने मत में लिये। सं० १५३६ से १५३८ तक क्रमशः राधनपुर, मोरवाड़ा में चातुर्मास कर सोदू गांव आदि में अपना मत फैलाया तथा सं० १५३८ में सर्वत्र विहार किया। सं० १५३६ में नाडोलाई में ऋषि भारणा (लोंकामती) के साथ वाद किया और शास्त्रानुसार प्रतिमा को प्रमाणित किया और लुंका के १५० घर अपने मत में लिये। सं० १५४० में पाटन में चातुर्मास किया और ६०० घर कडुवा के समवाय में हुए।" _शाह श्री कडुवा १६ वर्ष गृहस्थ रूप में रहे, १० वर्ष सामान्य संवरी के रूप में रहे, ४० वर्ष तक (वि० सं० १५२४ से १५६४ तक) अपने समवाय के पट्टधर के रूप में रहकर ६६ वर्ष की उम्र में (वि० सं० १५६४ में) परलोकवासी हुए। यद्यपि कडुवा मत पट्टावली में यह तो स्पष्ट उल्लेख है कि कडुवा शाह ने सारस्वत व्याकरण से लेकर आगमों और वाद शास्त्रों का अध्ययन पं० हरिकीर्ति के पास अहमदाबाद के रूपपुरा मोहल्ला की शून्य शाला में रहकर किया किन्तु इस प्रकार का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि उन्होंने किस संवत् में पंन्यास हरि १. कड़वा-मत गच्छ की पट्टावली, पट्टावली पराग संग्रह, पृष्ठ-४८२ २. कडुवा-मत गच्छ पट्टावली, पट्टावली पराग संग्रह, पृ० ४८३ ३. वही, पृष्ठ ४६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880