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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
पट्टधर सोमसुन्दरसूरि को क्रियोद्धारपरक कठोर कदम उठाकर अपने श्रमणश्रमणी वर्ग में व्याप्त शिथिलाचार को दूर करने के लिये निम्नलिखित ३६ नये बोलों (आगमानुसारी नियमों अथवा सुधारों) की घोषणा करनी पड़ी :
नियमो
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१. ज्ञान आराधन हेतु मारे हमेशा ५ गाथा मोढ़े करवी अने क्रमवार ५ गाथा
नो अर्थ गुरु समीपे ग्रहण करवो। २. बीजा ने भरणवा माटे हमेशा पांच गाथा मारे लखवी अने भणनाराम्रो ने
क्रमवार पांच-पांच गाथा मारे भरणाववी । वर्षा ऋतु मां मारे ५०० गाथा नूं, शिशिर ऋतु मां ८०० गाथा नूं अने
ग्रीष्म ऋतु मां ३०० गाथा नूं, सज्झाय-ध्यान करवु । ४. नव पद नवकार मन्त्रनु एक सौ वार सदा रटण करू (करवु)।
पांच शक्रस्तव वड़े हमेशा एक वक्त देववन्दन करू अथवा बे वगत, त्रण वगत के पोहरे-पोहरे यथाशक्ति अालसरहित देववन्दन करववु। दरेक अष्टमी चतुर्दशी ने दिवसे सघलां देरासरो जुहारवा, तेमज सघला मुनिजनो ने वांदवा । बाकी नां दिवसे एक देरासरे तो अवश्य जवू । हमेशा वडील साधु ने निश्चै त्रिकाल वन्दन करू, अने बीजा ग्लान तेमज वृद्धादिक मुनिजनोनुवैयावच्च यथाशक्ति करू । ईरियासमिति पालवा माटे स्थंडिल मात्रु करवा जतां अथवा आहारपाणी बहोरवा जतां रस्ता मां वार्तालाप विगेरे करवानुछोडी दऊं । यथाकाल पूंज्यां-प्रमाा वगैर चाल्या जवाय तो, अंग-पडिलेहणा प्रमुख संडासा पाडिलेह्यां वगर बेसी जवाय तो, अने कटासणा (कांबली) वगर . बेसी जवाय तो पांच खमासमरण देवा अथवा पांच नवकार मन्त्र नो जाप
करवो। १०. भाषासमिति पालवा माटे उघाड़े मुखे बोलूज नहीं, तेम छतां गफलत थी
जेटली बार उघाड़े मुखे बोलि जाऊं तेटली बार ईरियावही पूर्वक एक लोगस्सनो काउसग्ग करू । आहार-पारणी करतां तेमज प्रतिक्रमण करतां अने उपधि नी पडिलेहरणां करतां कोई महत्वना कार्य वगर कोई ने कदापि कांई कहूं नहीं (बोलूं
नहीं)। १२. अइसणासमिति पालवा माटे निर्दोष प्राशुक जल मलतु होय तिहां सुधी
पोता ने खप छतां धोवरण वालुजल अणगल (अचित्त) जल अने जरवाणी (झरेलु पाणी) लवुनहि ।
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