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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ "सम्वत् १५२२ वर्षे मूहतो लूंको, जात पोरवाड पाटन नगर मांहि हुप्रो । ग्यारह अंग बारह उपांग एवं ३१ आगम सिद्धान्त नो जाण थयो । तेणे श्रावक व्रत मांहे थकां पूजा नो प्रारम्भ अज्ञान मिथ्यात उथापी ने शुद्ध
साधु मार्ग प्रवर्तायो । लूका नाम साध स्थापना हुई।" इस उल्लेख से दो पंक्ति ऊपर जो उल्लेख है वह इस प्रकार है :
“सम्वत् १५३१ स्वयमेव लूंका जती दो हुआ, भाणा भीदा दीक्षा लीधी।"
लोकाशाह द्वारा शुद्ध साधु मार्ग प्रवर्तन विषयक उल्लेख
१. जैसलमेर भण्डार से प्राप्त पट्टावली, जिसकी जैतारण आदि विभिन्न भण्डारों से भी प्रतियां उपलब्ध होती हैं, उसमें लोकाशाह द्वारा शुद्ध साधु मार्ग प्रवर्तित किये जाने के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रकार का उल्लेख है :
"अने सम्वत् १५३१ से भस्मग्रह नी थिति उतरी । साधकाल प्रवर्ते छ । तिवारे लुका मुहता नी वाणी घणा लोक सांभलवा लागा छ ।
चौपाई सम्वत् पन्द्रह इकतीसो गयो । एक सुमत मत तिहां थी थयो। अहमदाबाद नगर मझार । लूंको शाह बसे सुविचार ।।१।। जे जे पेखे ऋष आचार । ते गाथा नो करे उच्चार ।। ग्रन्थ अर्थ में ले ते घणो । उद्यम मांडे लिखबा तणो ।।२।।
तेह वे तेह ने मिल्यो लिखमसी । तिण बिहूं बात बिचारी इसी । (कि आज के ये साधु)
सूत्तर बोल्यो जे आचार । ते ए पासे नहीं लिगार ।।३।। भणे ग्रन्थ ने राखे वेश । थापे नित कूडो उपदेश । लोक प्रवाहे जाणे नहीं । गुरु जाणी बांदे छै सही ।।४।। सूत्रे तो गुरु जो भाखिया । सांचे जे पाले रिख क्रिया। साघ तणो तो नाम निर्ग्रन्थ । ए तो दाखी तास ग्रन्थ ।।५॥ साधु भाषा छै निरवद्य । ए तो बोले छै सावध । ज्योतिष निमित्त प्रकासे घरणां । वेदक करे पाप करम तणां ।।६।।
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