Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 776
________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ७५७ महात्मा नुनन्दक हुवो। तेणे महात्मा नां अपवाद बोलव्या मांडिया। तेह ने लखमसी शिष्य मल्यु। ते लखमसी मिथ्यात्वी। महात्मा कन्हं ने भणु । पछे कही मुंह ने सिद्धान्त भरणाव। महात्मा इं न भरणावियु। तिहां थकी रीसाणो लका लेह न शिष्य थयु। तीणे पछे प्रतिमा प्रसाद उथाप्या। वासक्षेप उथाप्या। गुंहली उथापी। पिस्तालीस सूत्र मध्ये अठ्ठावीस राख्या। जिन प्रतिमा ना सूत्र पूजा उपगरण उथाप्या । नियुक्ति उथापी। चूर्ण टीका श्री भद्रबाहु स्वामीइं टीका चूर्ण कोधा ते उथाप्या। चौरासी पयन्नो उथाप्या । ते लखमसी ना प्रतिबोध कीधी । सम्वत् १५३० वर्षे भिक्षाचर हुवो। न महात्मा मांही न महासती मांही न श्रावक मांही न श्राविका मांही। एतला कारण भरणी संघ बाह्य कहिवराई । हवि जिन प्रतिमा उथावीवानी काजी तेरणे लंके तेहवो बोल लीघु । किहां पूजा नथी कही। लोक कन्हें पूछे । हिंसाई धर्म के दयाई धर्म । बायडा लोक ने उत्तर ऊपजे नहीं। सहू कहें दयाइं धर्म । तु जोउन दयाई धर्म नु देवपूजा करतां केवडी हिंसा उपजे छेइं ते तुमें काइ करो। एहवं कही लोक ने मिथ्यात्वी पाडिवा लागा। इम अनेक लोक संसा मां पाडी श्रावक ने संशय पाडी जिन प्रतिमा उथापी ।' चार निक्षेपा उथाप्या । पहलो नाम निखेपो १। बीजो थापना निखेपो २ । तोजो द्रव्य निखेपो ते जिनद्रव्य थांसे ते उथाप्या ३ । चौथो भाव निखेपो ४ । एवं उथाप्या । गुजरात मारुआड दल्ली प्रवर्ती श्री रत्नशेखरसूरि ने पाटे श्री लक्ष्मीसागर सूरि थया । ५३ । श्री सुमति साधु सूरि थया ५४ । ५५ तत्प? श्री हेमविमलसूरि युग प्रधान । गौतम सरखा । ५६ तत्प? श्री आणंदविमलसूरि सम्वत् १५७० वर्षे सूरिपदं । प्रथम शथलाचारी पाटन मध्ये सर्वगच्छ शथलाचारी वीयावट्ट आजीविका करे । पाटन मध्ये पंच गच्छ प्राचार्य ते समें श्रावकें विनती करी गच्छ त्याग्यो (वोसराव्यो) क्रिया उद्धार करो। ते समये लूंको श्रावक अरटवाडा नो ते आनन्द विमलसूरि पासे अठावीस सूत्र भण्यो। पर्छ पोतानी मेलें दीक्षा लीधी। सर्वदेशे लकागच्छ प्रवर्ताव्यो। जिन बिम्ब जल पृथ्वी मय भंडायी। सर्व ढुंढक थयो । तिवारे पाटण ने श्रावके आणन्दविमलसूरिये क्रिया उद्धार कीधो । उपाध्याय श्री विद्यासागर पंडित श्री पति पंडित गणपति पंच संगाते क्रिया उद्धार । गरुभाई ने बीयावट नव कुल दीधां। बीजा कुल पुनमिया खरतरा सरवे जांच्यां तेहने दीधां। बीजा सर्व जलमध्ये बोल्यां। क्रिया उद्धार करी ज्ञानसागर उपाध्यायें संघाते एवं ठाणुं ग्यारह संघातें विहार कीघो। आबुयें अबु दाभवानीयें अट्टम करी, माता नो वर लेइ हेठे उतर्या । श्रावकें प्राचार्य पद अोच्छव कीधों। मार्गे जातां भीलडी ने रूपें माता मली तुष्टमान थई । वासक्षेप मन्त्री दीधो। श्रावक ने माथें घालीस । तेतला ताह रा श्रावक थास्यें। वीस्तार वड जिम विस्तरस्य । आगे जातां सामी मलस्य । ते पदमकनाडी देस्य । ते अोधा मध्ये राखयो । ते थकी झाडे रोग भूत-प्रेत वीतर सर्व जांस्यें। माता अलोप थई । पछं मरुधर मध्ये जोधपुर किशनगढ़ सर्व देसें अोच्छव कीधो । जिन थापना निखेपा चार मनाव्या । पछे अागरा मध्ये श्रावक ३६०० से घर लुका कोधा । ई ग्यारसें देहरा जिन प्रतिमा भुय मध्ये भंडारी छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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