Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 775
________________ ७५६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ करावी । अने केटलाक कहे छे के दीक्षा ग्रहण करी नथी अने संसार मां रही ने ४५ जणां ने दीक्षा आपावी ।' ५. श्री सुधर्मा स्वामी नी पाटानुपाटे ४६. (वां) पट्टधर लोकाचार्य (लक्ष्मी विजयजी) जन्म सं० १४७२ ना कार्तिक सुद १५, दीक्षा सं० १५०६ ना श्रावण सुद ११ । स्वर्गवास ६९ वर्ष नी ऊमरे ईस्वी सन् १४८५ वि० सं० १५४१ मां । श्री सुधर्मा स्वामी नी पाटानुपाटे ४६वें पट्टधर लोकाचार्य- (लक्ष्मीविजयजी-लोकचन्द्रजी स्वामी) मूल सुधर्मा गच्छ मांथी लोकागच्छ नी स्थापना वीर नि० सं० २००१, वि० सं० १५३१ मां करी। लोकागच्छ की प्राचीन अथवा अर्वाचीन पट्टावलियों के उपर्युल्लिखित उल्लेखों के अतिरिक्त लोंकागच्छ के न केवल प्रतिपक्षी ही अपितु कट्टर विरोधी एवं मूर्तिपूजा के प्रबल समर्थक एक गच्छ की पट्टावली में भी लोकाशाह के दीक्षित होने के उल्लेख के साथ-साथ इस बात का भी स्पष्ट उल्लेख है कि लोंकाशाह के द्वारा जिस धर्मक्रान्ति का सूत्रपात किया गया उस धर्मक्रान्ति के प्रचण्ड वेग से शिथिलाचार का घटाटोप स्वल्प समय में ही किस प्रकार छिन्न-भिन्न हो उठा। उस उल्लेख के आवश्यक अंशों की प्रतिलिपि यहां अक्षरशः प्रस्तुत की जा रही है : श्री विनयचन्द ज्ञान भण्डार, जयपुर के हस्तलिखित पत्रों में क्रम संख्या ४०० पट्टावली, लोंकामत उत्पत्ति, (दीक्षा सूत्र पठन के वृत्तान्त सहित) पत्र १५ फोटोकापी २६ की प्रतिलिपि । नोट : इसमें पत्र संख्या १५ के दूसरी तरफ की पत्र की फोटोप्रति नहीं है। पत्र संख्या १३, १४ और १५ को यहां उद्धत कर रहे हैं ......सम्वत् १५०३ श्री मुनि सूरि स्वर्ग पहुंता, बावनवे पट्टे श्री रत्नशेखर सूरि थया। सम्वत् १५३३ लूका थया । लूकागच्छ उत्पत्ति लिख्यते । सम्वत् १५०८ वर्षे अहमदाबाद नगरे ल को लहइं भंडार लखतो हतो। इम करतां पांच अथवा सात मांड्यो। तेह थकी माहात्माइं दुहव्यू। तिहा थिकी १. . दरियापुरी सम्प्रदाय की इस पट्टावली की प्रति प्राचार्यश्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, लाल भवन, जयपुर में है। गुजराती लोंकागच्छ की इस पट्टावली की प्रतिलिपि प्राचार्यश्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, लाल भवन, जयपुर में रजिस्टर सं० ५, कापी सं० ३, क्रम सं० १ के पृष्ठ ८ से २० पर उपलब्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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