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। जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
"अथ लोंकाशाह ने जीवन पा महात्मा नो जन्म अरहटवाड़ा ना प्रोसवाल गृहस्थ चोधरी अटकना शेठ हेमाभाई नी पवित्र पतिव्रतपरायणा भार्या गंगाबाई की कुक्षि थी सम्वत् चौदव्यासी (वि० सं० १४७२ होना चाहिए) ना कार्तिकशुदी पूनम ने दिवसे थयो हतो। अने पंदरमें वर्षे सम्वत् १४६७ (सं० १४८७ होना चाहिये) ना माघ मास मां यौवन प्राप्त थये माता पिताए शीरोही शहेरना शाह अोधवजी नी पुत्री बाई सुदर्शना साथे तेमनो विवाह कर्यो हतो। तेमने एक पुत्र पूनमचन्द नामे थयो हतो। लोकाशाह नी वर्तणुक नीतिवाली हती । व्यसन रहित हता। माता पिता नी आज्ञा गमे तेवी काठिन्य होय तो पण तत्काल उठावता हता । वैराग्यवाला पुस्तको वांचता हता। दररोज तेश्रो समाधि मां ध्यान धरता हता। धार्मिक कार्यो करवा मां उत्साह धरावता हता। परण्यां पछी पण घणी वखत एकान्त मां विचारता के हे जीव ! संसारना पदार्थो स्थिर नथी । क्षण क्षण मां अनेक रूपे फर्या करे छ। पर्यायो बदलाया करे छे । अरे चैतन्य ! तारा देखतां पा संसारे पशु पक्षीप्रो अने मनुष्यो वगैरे ना फेरफार पामतो वारंवार जोवामां आवे छे । आ मां तारू कोण छे, तूं कोनो छे, अने तारी साथे शु पावशे तेनो स्वयमेव थी विचार कर । विषय कषाय नी ज्वाला मां वलता आत्मा ने बचाववा माटे एक वीतरागप्रणीत धर्मज छे । लोंकाशाह नी बुद्धि घणी निर्मली हती। तेमना अक्षरो घणांज सुन्दर हता। पोताना वतन मां थी अमदाबाद मां आवी नाणावटी नो धंधो करता हता। तेमां एक दिवस महंमदशाह बादशाह थी अोलखाण थतां महंमदशाहे जाण्यु के आ लोकाशाह तो पक्षपात रहित छ । तेथी तेने पाटण ना तेजेरीदारनी जग्याए निमवा लायक धारी नीमी दीधा । बादशाह पोताना मित्र तरीके गणता हता। जेथी तेने पाछा संवत् पन्नर एक मां अमदाबाद मां तेजुरीदार नी जग्या उपर पाटण थी बोलावी लीधा । राज दरबार मां तेनुं घणुं मान हतु। दरम्यान पंदर सें ने सात नी साल मां जे वखते महंमद शाहे डरी ने दीव बंदर नासी जवानुनक्की कयु ते बात तेमना दीकरा जमालखां नां जाणवा मां प्रावतां झेर अपावी पोताना बाप ने मारी नखाव्यो अने पोतानु नाम बदली कुतुबदीन शाह नाम थी तख्त ऊपर बेठो । पा अनर्थ जांणी लोकाशाह ने विशेष वैराग्य बध्यो। आ संसार मां शरीरादि संयोग सर्व क्षणिक छ । पण देखवा मां जाहिर दृष्टि थी सुन्दर लागे छ । परन्तु अन्तर मां अत्यंत दुःखदायक छ । पुत्र, पुत्री के कलत्र उपर मोह राखवो ए केवल अज्ञान छ । आवा विचारो करी पोतानां संबंधी वर्ग नी अनुमति मेलवी पाटण प्रावी संवत् पंदर नव नां श्रावण शुदि अगीयारस ने शुक्रवारे शुभ योग शुभ नक्षत्र मां प्रथम प्रहरे द्वितीय चौघड़ीये यतिश्रीजी सुमतिविजयजी महाराज नी पासे यतिपणां नी दीक्षा स्वीकारी अने गुरु महाराजे श्री लक्ष्मीविजयजी नाम आप्युपण जगतवासी लोको तेमने लोकाशाह ना नाम थी बोलावता हता। ए समय मां यति वर्ग नी प्रनालीका मर्यादा शास्त्रोक्त विरुद्धपणे प्रवर्तती हती। श्री सुमति विजय यतिजी ना वखत मां
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