Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 766
________________ ७४७ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह . [ इत्यादिक शुभ योग सू, आव्या मुनीन्द्र तिहिं ठौर । हर दियो तहां, ये समोसरण ठायो रे ॥३॥ अ० आवी समोसरण तिहां कियो, सुरिणयो नगर में नर नरीन्द । संघ मली ने जाय वांदवा, तहां सुणिऊ महता वर्द्धमान रे ॥४॥ अ० तेह नगर नो राजवी, कूपावत जात राठोडो रे। उदयसिंह नृप जाणिये रे, महता श्री वर्द्धमानो रे ॥५।। अ० तेणी समे बैठो गोख में, एकरण दिसे लोक बहु जावे रे। ती ई कस्यो कारण इहां, कोई देव वांदण ने जावे रे ॥६॥ अ० पूछै तिहां राजा सही, महता वर्द्धमान पासे रे। इतना मनुष्य जावे किहां, ते एकण दिश नर नारियो रे ।।७।। अ० महतो वर्द्धमान बोलियो, कोई दीसे छै उत्तम कामो रे। राज मुझ ने खबर तो को नहीं, जाऊं हूं तेह नी पासे रे ।।८।। अ० राजा ने मुजरो करी, तिहां महतो वर्द्धमान जी सिधाया रे। अधिक सेना आडम्बर करी सेना चार प्रकार नी साथे रे ॥६।। अ० ए हय गय रथ साथे लही, जिम जावे श्रेणिक राजा रे। वीर वांदरण ने जावे तिहां तिम महता वर्द्धमानो रे ॥१०॥ अ० फलबाड़ी उद्यान में रिख रामजी त्यां दीख्या रे।। हय थकी हेठा ऊतरी, पंच अभिगम ने सांचवी बांद्या मुनिवर त्यांही रे ॥११॥ अ० मुनिवर परखदा जोई करी, उत्तराध्ययन उगणीसमों अध्यायो रे। मृगापुत्र एहवे नामे सही, संभलाव्यो मुनि त्यां ही रे ॥१२॥ अ० सांभली महतो वर्द्धमानजी, तेने जाण्यो अथिर संसारो रे। गुरु ने वांदी बोले तिहां, सामी मुझ ने संजम आदराओ रे ॥१३।। अ० गुरु ना चरण कमल नमी महतो गयो नगर मझारो रे । राजेन्द्र ने जाय वोनवे, ए तो ऋषि रामजी मुनिरायो रे ॥१४।। अ० . एहवा वचन नृप सांभली मन हुयो हर्ष अपारो रे। राजेन्द्र वांदवा जाइये, ए मुनि मुक्ति दातारो रे ।।१५।। अ० जो कूणिक नृप जाणिये एम गया राजेन्द्र त्यां हो रे । चार प्रकार सेन्या सजी, रिख रामजी बांदवा कामो रे ॥१६॥ अ० एतादिक सर्व जाणिये, राय गया वंदरण ने त्यां ही रे। पंच अभिगमन सांचवी, जे महतो वर्द्धमानो रे ।।१७।। अ० गुरु ना चरण कमल नमी, संभलाव्यो मुनि ए उत्तराध्ययनो ए। अध्ययन अठारमो जारिणये, संजति राय ऋषि नो रे ।।१८।। प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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