Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 764
________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ७४५ दूहा : वाणी सुणी साह लखमसी, जणा पस्तालीस साथ । भामोसा आदे केई जणे, लीधो संजम भार ॥१॥ बात अबे एक ए छ, प्रत्यक्ष पंचमे काल । श्री महावीर जिणन्द ना, पाट चौतीस मझार ।।२॥ . ढाल धना श्री। शत्रुजा ऊपर राजा भरत नी देसी। नगरी वनिता नो राय, भरत नृप जाणिये । भामो ने भारमल्ल के, संजम आदरे एह ।। मनवांछित सुखकार सफल फली मुझ आसडिये ॥१॥ सम्वत् पन्द्रा नर सुजाण, बरस एकत्रीसो भलो ए । मास बैसाख सुजाण, सुकल पक्ष ऊजलो ए ।।२॥ दिन इग्यारस जाण, गुरुवार नक्षत्र अनुराधा ए। पोहर बीजो तस, नाम मोहरत अष्टमो ए ।।३।। शुभ लगन शुभ वार संजम मुनि आदरया ए। साह रूपसी आदि दइ, पस्तालीस जणा ए ॥४।। पंच महाव्रत सार, सुमत गुपत पारता ए॥ नव विध धार ब्रह्मचर्य, जति धर्म दस विध ए ॥५।। टाले पाप अठार, सल्य मिथ्यात ने एह। .. पंच हि आस्रव छांड, संवर पंच आदर्या ए ॥६॥ गुण सरव छत्रीसे उदारके, मुनि शोभता ए। गाम नगर परिवार, मुनिसर विचरता ए॥७।। करता धर्मोद्योत, तीरथ थाप्यो तिहां ए। स्थविर पदवी भारमल्ल, भुजराज भामाजी मुनि जाणि ए ॥८॥ तेह तणा शिष्य दोय, केशव धनराजजी ए। पाट पहले शाह रूपसी, ए लोकागच्छ सरदार ॥६॥ जुगन्धर जारिणये शिष्य तेह ना, वलि तीन जसवन्त मुनि खेमसी ए । तीजा तेजसी धार, बन्दर खम्भात ना ए ।।१०।। एतादिक विस्तार लोकागच्छ नीकल्यो ए। मुनि धनराज जोगेन्द्र, मालव देशे गया ए ॥११।। शहर बुरहाणपुरी जाण, अगरवाल बाणिया ए। सेठ मुहनचन्द्र पुत्र रामजी शाह छे ए ॥१२।। सम्वत् १५३६ में, तेह ने बुझय व्या ए। सूत्र दशाश्रुतखन्धजाण, अध्ययन ते पंचमे ए ॥१३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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