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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह
। ७३७ के जसवन्त मुनि, खेमसी और तेजसी ये तीन शिष्य हुए। इस प्रकार लोंकागच्छ प्रकट हुआ और उसका विस्तार होने लगा।'
लोकाशाह के जीवन एव लोकागच्छ से सम्बन्धित एक पातरिया गच्छ की पट्टावली के पद्य इतिहासरुचि पाठकों एवं शोधार्थियों के हितार्थ यहां यथावत् प्रस्तुत किये जा रहे हैं :एक पातरिया (पोतिया बन्ध) गच्छ की
पट्टावली ओम् नमः सिद्धाः । अथ पट्टावली लिख्यते । दोहा । सकलचन्द्र मुनिवर नम, वर्द्धमान श्री वीर । पूरण वंछित ते करे, सुन्दर गोयम धीर ।।१।।
सम्वत् पन्द्रह नर सुजाण, बरस एकत्रीसो भलो ए। . मास वैसाख सुजाण, सुकलपक्ष ऊजलो ए ।।२।। दिन इग्यारस जांण, गुरुवार नक्षत्र अनुराधा ए । पोहर बीजो तस, नाम मोहरत अष्ट मो ए ॥३॥ शुभ लगन शुभ वार, संजम मुनि प्रादर्या ए। साह रूपसी आदि दई, पस्तालीस जणां ए ।।४।। पंच महाव्रत सार, सुमिति गुपति पारताए । नव विध धार ब्रह्मचर्य, जति धर्म दस विध ए ||५|| टाले पाप अठार, सल्य मिथ्यात ने एह । पंच हि आस्रव छांड, संवर पंच आदर्यो ए ।।६।। गुण सरब छत्रीसे उदारके, मुनि शोभता ए। गाम नगर परिवार, मुनिसर विचरता ए ।।७।। करता धर्मोद्योत, तीरथ थाप्यो तिहां ए । स्थविर पदवी भारमल्ल, भुजराज (भामाजी) मुनि जाणि ए ।।८।। तेह तणा शिष्य दोय, केशव धनराजजी ए। पाट पहले शाह रूपसी, ए लोकागच्छ सरदार ।।६।। जुगन्धर जाणिये शिष्य तेहना, बलि तीन जसवन्त मुनि खेमसी ए। तीजा तेजसी धार, बन्दर खम्भात ना ए ॥१०॥ एतादिक विस्तार लोकागच्छ नीकल्यो ए।.........
-~-एकपातरिया (पोतियाबन्ध) गच्छ पट्टावली, अप्रकाशित ।
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