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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह
[ ७१७ लोकाशाह के दीक्षित होने अथवा न होने विषयक अभिमत
(१) बड़ौदा यूनीवर्सिटी में उपलब्ध यति श्री हेमचन्द्र की पट्टावली में लोकाशाह के स्वयं विक्रम सम्वत् १४२८ में एक सौ बावन (१५२) पुरुषों के साथ दीक्षित होने, तीन माह की दीक्षा पर्याय के अनन्तर आयु पूर्ण कर देवलोक में देव रूप से उत्पन्न होने तथा अपने १५२ साधुओं को, देवलोक से आकर, सूरि मन्त्र देने का उल्लेख है, जो इस प्रकार है
. “संघ १५२ (पन्द्रह) शाह माहा पाटण मां आव्या। वर्षा रथे नील फूल ऊगी । सम्वत् १४२८ मां, पाटण मां देरा देख स्थान जोई रिहिया । तए दिवस नीर्गमे नहीं, तरा लको लहियो सिद्धान्त बत्तीस लखी बाची और परूपणा करे छै । ते पासे १५२ संघवी जेने बत्तीस सूत्र सांभल्या, तरे संघवी एक सौ बावन ने पुछ्यु-के हे लका ! लहिया ! भगवन्त ने एक लाख उनसठ हजार श्रावक थयां। ते मां मोटा बारा व्रतधारी दस, ते एकावतारी, ते नुं सूत्र रचु, ते णे केणे संघ न काढो। देहरू न कराव्यू, प्रतिमा न पूजी । ते नो (संघ निकालने, देहरा करवाने और प्रतिमा पूजने का) पाठ उपासगदसांग मां केम न आव्यो ? ते प्रतिमा तो झूठी, माटे अमारा पैसा संघ काडा ना खराब कर्दी। गाडा ना पेडा हेठे अनेक जीव मर्या । माटे आजीवक मत एह धिगस्तु संसार द्रव्य छै। छोकरा............ पड़ता मूकी ने १५२ साधु थया । पुस्तक लुंका लहिया कने थी लई । लुके दीक्षा लीधी। १५३ ठाणुं विहार करी वन मां जाई रीया । अने पन्नवरणा ए महापन्नवणा ए-महापन्नवणा मां पाठ मां कह्य छै जे भगवन्त ने इन्द्रे विनती कीधी अन्त समय- "हे प्रभु भस्म ग्रह बेसे छ। ते जो बे घड़ी आउखो बघारो तो तमारी दृष्टि ने जोगे दो हजार नी दो घड़ी मां उतरी जासे ।" प्रभु कहे—“ए अर्थ न समर्थ, तीर्थंकर बल न फोडवे । त ए रा (इन्द्र) ने पूछा प्रभु ! पाछो जीव दया मूल धर्म क्या थी दीपसे ? त ए रे प्रभु ए कह्य :-"जे जीवा रूपा दो जीव भविस्सइ । त्यां थी जीवदया मूल धर्म दीपसे ।” पछे लुंके तीन दिन अनशन करी चव्यो (स्वर्गस्थ हुआ)। मध्य रात्रे देव आकाशे आवी १५२ साधु ने सूरिमन्त्र दीघो। ते साधु ए सवारे कागले उतार्यों, कह्य जे (मैं) लको ऋषि देवलोके गयो छू, ओ लोकागच्छ सत्य छै। हवे त्यां थी लोकागच्छ नी पेढी सम्वत् १४२८ थी लखाणी।" (प्राचार्य) (१) रिख लकाजी (लोंका) पाटन रा रेवासी, जात बीसा ओसवाल, गोत्र
लकड (लूकड), दीक्षा मास तीन नी सर्वायु वर्ष ५७ ।
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