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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
जगड़ शाह
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८ लाख मन, महाराजा हम्मीर को १२ हजार मूढक अर्थात् १२ लाख मन' और अन्यान्य राजाओं को उनकी प्रजा एवं सेना आदि के जीवन-निर्वाह के लिए अगणित मूढक अनाज के भण्डार प्रदान किये।
एक भी देशवासी भूखा न रहे, इसके लिये इस प्रकार की समुचित व्यवस्था कर देने के उपरान्त भी सुदूरस्थ प्रदेशों के राजाओं, श्रेष्ठियों, जनसेवियों आदि ने अपने यहां के लोगों के लिये समय-समय पर जितने अनाज की मांग की जगड़ शाह ने उनकी मांग के अनुसार प्रचुर मात्रा में धान्यराशियां प्रदान की। पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण, सम्पूर्ण देश के इस छोर से उस छोर तक प्रातः सायं-दोनों समय भर-पेट सरस भोजन पाकर कोटि-कोटि कण्ठ अहर्निश जगड़ शाह को यशोगाथाएं गाने लगे। प्रतिदिन दोनों समय घृतयुक्त सरस-स्वादु भोजन से तृप्त हुई करोड़ों लोगों की बातें जगड़ शाह को अनेकानेक आशीषं देतीं।
इस प्रकार भूखों को भोजन देने की समुचित व्यवस्था कर देने के साथसाथ जगड़ शाह ने एक विशिष्ट प्रकार की दानशाला में दान देना भी प्रारम्भ कर दिया। प्रतिष्ठित परिवारों और सम्भ्रांत कुलों में उत्पन्न जो लोग जगड़ शाह द्वारा नित्य नियमित रूप से चलाये जाने वाले सत्त्रागारों में जाने और वहां भोजन करने में लज्जा का अनुभव करते थे, उन लोगों को भी दुर्भिक्षकाल में किसी प्रकार का कष्ट न हो, इस अभिलाषा से जगड़ शाह ने उस दानशाला में पर्दे के पीछे बैठकर प्रतिदिन प्रातःकाल दान देना प्रारम्भ किया । कुलीन और प्रजा के प्रतिष्ठित वर्गों के लोग उस दानशाला में आते और पर्दे के अन्दर अपना हाथ पसारते । पर्दे के अन्दर बैठा जगड़ शाह हाथ को देखते ही उस पर उसके भाग्यानुसार स्वर्ण अथवा रजत की पर्याप्त मुद्राएं रख देता।
इस अनूठे गुप्तदान की महिमा सुनकर अणहिल्लपुर पट्टणपति गुर्जरराज बीसलदेव ने मन ही मन जगड़ शाह की परीक्षा लेने की ठानी । एक दिन प्रातःकाल बीसलदेव वेष बदलकर जगड़ शाह की दानशाला में पहुंचा और उसने पर्दे के अन्दर अपना दक्षिण हाथ डालकर पसार दिया।
तपाये हुए ताम्र के समान वर्ण वाले कठोर हाथ में अनुपम भाग्य, लक्ष्मी विद्या, कीति, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि की सूचक हस्तरेखाओं एवं शुभ लक्षणों पर दृष्टि पड़ते ही जगड़ शाह ने समझ लिया कि यह कोई न कोई राजा है और किसी कारणवश इस प्रकार की अवस्था को प्राप्त हो गया है। "इसको ऐसी मूल्यवान्
१. अट्ठय मूड सहस्सा बीसलदेवस्स बार हम्मीरे ।
, इगवीस य सुरत्राणे, दुब्भिक्खे जगडू साहुणा दिण्णा ।।
-उपदेश तंरगिरणी
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