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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ "लूकाए पूछेल १३ प्रश्न अने तेना उत्तरो""
॥६०।"प्रोऽम् नमो अरिहंताणं" श्री वीतराग, श्री गणधर, श्री साधु चारित्रिया संसार मांहि सार पदार्थ छइ । एहज वीतरागादिक गृहवासि हुई अनइ षट्काय नइ आरंभि वर्त्त तिवारइं वंदनीय नहीं तउ प्रतिमा अजीव-अचेतन अनई तिहां षट्काय नइ आरंभ वर्तइ छइ, ते वंदनीय किम हुई ? (प्रश्न सं० १)
तथा तीर्थकर, गणधर, साधु एहनी भक्ति प्रारंभि न थाई तउ अजीव नी भक्ति किम थाई ? (प्रश्न सं० २)
तथा गुण वंदनीक के आकार वन्दनीक ? जइ गुण वन्दनीक तउ प्रतिमां मांहिं केहवउं गुण छइ, अनइ जइ आकार वंदनीक तउ आवड़ा पुरुष आकारवंत छइ, ते वंदनीक किम नहीं ? (प्रश्न सं० ३)
प्रतिमां मांहि केही अवस्था छइ, जइ गही नी तउ साधु नइ वंदनीय नहीं, अनइ यति नी तउ यती नउ चिन्ह दीसतउ नथी, जइ यती नी जाणउ तउ फूल, पाणी, दीवा इम का करउ ? (प्रश्न सं० ४)
तथा देव मोटा के गुरु मोटा ? जइ देव नई फूल चढ़इ तउ गुरु नई स्युइ न चढ़ावउ ? जइ जागउ गुरु महाव्रती तउ देव स्यउं अविरती छइ ? (प्रश्न सं० ५)
तथा केतला एक श्रावक पाहिइं प्रतिमा पुजावइ छइं पूजणार धर्म जारणी पूजइ छइ, यति स्युइ न पूजइ, धर्म तउ यतीइं पुरण करिवउ ? तउ केतला एक कहिस्यइं–जे यती विरती छई पण जो वउनइं (उसे) पाप करिवानउ नीम छइ पणि कर्क करवानउ नीम नथी, डीलइ स्युइ नहीं पूजइ ? (प्रश्न सं० ७)
. तथा प्रतिमा ना वांदणार प्रतिमा नइ वांदइ तिवारइं वंदना केहनइ करइ छइ ? जइ इम कहइ जे वे प्रतिमानइ वांदउं छउं, तउ वीतराग अलगा रह्या, वंदाणा नहीं, अनइ इम कहइ जे ए वंदना वीतराग नई तउ प्रतिमा अलगी रही। अनइ जइ इम कहइ एहज वीतराग-जू जूपा नहीं (दोनों जुदा अर्थात पृथक् नहीं) तउ अजीव सन्ना थाइ अनइं जीव एक समइ बि (बे) किरिया तउ न देयइ । (प्रश्न सं० ८)
___तथा केतला एक ना देव-गुरु-धर्म सारंभी, सपरिग्रही छइ, अनइ केतला एक ना देव-गुरु-धम्म निरारम्भी, निःपरिग्रही छइं विचारी जोज्यो जी ।। (प्रश्न सं० ६)
तथा केतला एक इम कहइ छइं जो अवनउ नइं (उन्हें अथवा किसी को) पूतली दीखइ-राग उपजइ, तउ प्रतिमा दीठइ विराग स्युइ न उपजइ ? तेहना उत्तर-को एक अनार्य पुरुष नइ प्रहार मूकइ तउ पाप लागइ तउ तेहनइं वांद्यइ धर्म स्युइ न लागइ ? तथा बेटा वोसिराव्या न हुई तउ तेहनउं कीघउ पाप बाप । १. पासचन्द गच्छ के संस्थापक श्री मद्दहीपुरीय तपागच्छाधिराज श्री पार्श्वचन्द्र सूरीन्द्रेण
विरचिता चर्चा |
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