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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
लोकाशाह का जन्म व जन्म-स्थान प्रादि
_ जिस प्रकार बौद्ध धर्म प्रवर्तक भगवान् बुद्ध के जन्म, दीक्षा एवं निर्वाण काल के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की विभिन्न मान्यताएं इतिहासविदों में अद्यावधि विवाद का विषय बने हुए हैं, ठीक उसी प्रकार महान् धर्मोद्धारक वीर लोकाशाह के जन्म, जन्म-स्थान, जाति, व्यवसाय एवं उनके द्वारा धर्मक्रान्ति का सूत्रपात किये जाने के समय के सम्बन्ध में भी विभिन्न प्रकार की मान्यताएं जैन एवं जैनेतर साहित्य में उपलब्ध होती हैं। अतः लोकाशाह के जीवन का परिचय देने से पूर्व उन · सभी मान्यताओं पर विचार करना परमावश्यक है। इससे इतिहासप्रेमियों को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में सहायता मिलेगी-इसी उद्देश्य से भिन्न-भिन्न काल के विभिन्न विद्वानों द्वारा अभिव्यक्त की गई मान्यताओं का यहां उल्लेख किया जा रहा है ।
लोकाशाह के जन्मकाल के विषय में विभिन्न मान्यताएं .
१. मुनिश्री बीका ने लिखा है :
वीर जिनेसर मुक्ति गया, सइ अोगणीस वर्स जब थया ।
परणयालीस अधिक मा जनई, प्रागवाट पहिलई सा जनई ।। अर्थात् श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण के अनन्तर १९४५ वर्ष व्यतती हो गये तब विक्रम सम्वत् १४७५ में पोरवाल कुल की पहली अर्थात् बड़ी शाखा में आपका जन्म हुआ। लोंका यति भानुचन्द्र ने विक्रम सम्बत् १५७८ की अपनी रचना 'दयाधर्म चौपाई' में लिखा है :
चौदसय व्यासी वइसाखई, वद चौदस नाम लुंको राखई। अर्थात् विक्रम सम्वत् १४८२ की वैसाख कृष्णा चौदस के दिन आपका जन्म हुआ और आपका नाम लुंका अथवा लोंका रक्खा गया। लोकागच्छ यति केशवजी ने अपने "चौवीस कड़ी के सिल्लोके" में लिखा है :
पुनम गच्छइ गुरु सेवन थी, शैयद ना आशिष वचन थी,
पुत्र सगुण थयो लखु हरीष, शत चउद सत सित्तर वर्षि । अर्थात् पूर्णिमा गच्छ के गुरु की सेवा करने और शैयद के आशीर्वाद से विक्रम सम्वत् १४७७ में लोकाशाह का जन्म हुआ।
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