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सोमसुन्दरसूरि
श्रमण भगवान् महावीर के ५६ वें पट्टधर आचार्यश्री शिवराजजी के श्राचार्यकाल में तपागच्छ के ५० वें प्राचार्यश्री सोमसुन्दरसूरि ने अपने गच्छ के श्रमण श्रमरणीवर्ग के श्रमणाचार में किसी प्रकार का शिथिलाचार प्रविष्ट न हो जाय, इस लक्ष्य से ३६ नियमों की अपने गच्छ की समाचारी के अंग के रूप में घोषणा करते हुए अपने गच्छ के सभी साधुत्रों एवं साध्वियों को आज्ञा प्रदान की कि वे सब इन ३६ नियमों का कड़ाई के साथ पालन करें ।
श्री सोमसुन्दरसूरि द्वारा इस प्रकार के नियमों का प्रसारण किया जाना वस्तुतः उस समय श्रमरण-श्रमणी वर्ग में बढ़ते शिथिलाचार पर अंकुश लगाने तुल्य बड़ा ही महत्वपूर्ण एवं क्रान्तिकारी निर्णय था ।
तपागच्छ पट्टावली के उल्लेखानुसार सोमसुन्दरसूरि का जन्म वि० सं० १४३०, पंच महाव्रतधारण वि० सं० १४३७, वाचक पद वि० सं० १४५०, आचार्यपद वि० सं० १४५७ और स्वर्गारोहण वि० सं० १४६९ में हुआ ।
"सोम सौभाग्य काव्य" में सोमसुन्दरसूरि के १४ पट्टधरों के अतिरिक्त वाचकों एवं शिष्यों की एक लम्बी सूची दी हुई है । तपागच्छ पट्टावली सूत्र के उल्लेखानुसार आपके साधु परिवार में १८०० साधु थे । १
श्री सोमसुन्दरसूरि अपने श्रमण वर्ग को शिथिलाचार के दलदल से बचाये रखने के लिए जो ३६ नियम बनाये, वे इसी ग्रन्थ के पृष्ठ संख्या ५७६ पर छप चुके हैं । ये ३६ नियम विनयचन्द ज्ञान भण्डार, लाल भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर में इसके संग्रहालय एवं पुस्तकालय के पट्टावली संग्रह नं० १४, क्रम संख्या ७ पर तथा पं० कल्याणविजयजी द्वारा लिखित तपागच्छ पट्टावली के पृष्ठ संख्या १६० से १६३ पर भी उल्लिखित हैं ।
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१. पट्टावली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ३६ और ४० (सोम सौभाग्य पट्टावली )
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