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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ दूसरे दिन प्रभात वेला में उद्योतनसूरि ने अपना अन्त समय समीप समझ कर अनशन किया और समाधिपूर्वक वे स्वर्गस्थ हुए।
तदनन्तर विभिन्न ८३ गच्छों के उन आचार्यपद प्राप्त शिष्यों ने पृथकपृथक क्षेत्रों की ओर विहार किया और वर्द्धमानसूरि एवं उद्योतनसूरि के पट्टधर प्राचार्य बने ।
इस सम्बन्ध में विस्तृत विवरण प्रस्तुत ग्रंथ में ही "उद्योतनसरि" के जीवनवृत्त में डब्ध किया गया है ।
१.
श्री दानसागर जैन ज्ञान भंडार, बीकानेर की ३८ पृष्ठों की गुर्वावली, पो० १० ग्रन्थ १५२, पत्र ५। इसकी एक फोटोस्टेट कापी आचार्यश्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, जयपुर
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