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भ० महावीर के ५६वें पट्टधर प्राचार्य श्री गजसेन के
प्राचार्यकाल का महान् जिनशासन-प्रभावक श्रावक
जगड़ शाह
श्रमण भगवान महावीर के ५६ वें पट्टधर आचार्य गजसेन (वीर नि० सं० १७७६-१८०६) के प्राचार्यकाल एवं ४१वें युग प्रधानाचार्य रेवति मित्र (वीर नि० सं० १७६२-१८४०) के युगप्रधानाचार्यकाल में जगड़ शाह नामक एक महादानी एवं जिनशासन प्रभावक श्रेष्ठि शिरोमणी श्रावक हुआ, जिसने विक्रम सम्वत् १३१५-१७, तद्नुसार वीर नि० सं० १७८५-८७ में पड़े देशव्यापी भीषण त्रिवार्षिक दुष्काल के समय देश के विभिन्न भागों में ११२ सत्त्रागार (भोजनशालाएं) खोल कर तथा अपने विशाल धान्यागारों को अकालग्रस्त जन-साधारण के लिए दान कर मानवता की अभूतपूर्व सेवा की। महादानी एवं महान् जिनशासन प्रभावक मानव सेवी जगड़ शाह की यशोगाथाएं प्राज भी देश के कोने-कोने में गाई जाती हैं।
महादानी जगड़ शाह ने अपने जीवनकाल में मानवता की जो उल्लेखनीय महती सेवा की, उसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
पांचाल प्रदेश के श्रृंगार स्वरूप भद्रेश्वर नामक ग्राम में शाह सोला-सालग नामक एक श्रीमाली जातीय प्रमुख व्यापारी रहता था। वह जिनशासन के प्रति प्रगाढ़ निष्ठा रखने वाला श्रद्धालु श्रमणोपासक था। शाह सोला के जगड़ नामक एक पुत्र था । जगड़ शाह की गणना प्रमुख श्रातकों में की जाती थी । अपने व्यवसाय में व्यस्त होने के उपन्त भी जगड़ शाह प्रतिदिन नियमित रूप से सामायिक प्रतिक्रमण आदि धर्म साधना किया करता था। एक दिन एक जैनाचार्य अपने शिष्यों के साथ भद्रेश्वर में आये । शाह जगड़ ने बड़ी ही श्रद्धा-निष्ठा के साथ श्रमण वर्ग की सेवा-उपासना की। उसने उपाश्रय में श्रमणों की सेवा में उपस्थित हो किसी पर्व तिथि के दिन पौषध व्रत किया।
रात्रि में प्रतिक्रमण आदि आवश्यक धार्मिक क्रियाओं से निवृत्त होने के अनन्तर मौन धारण किया हुआ जगड़ शाह उपाश्रय में एक ओर बैठ कर पंच परमेष्ठि नमस्कार मन्त्र का स्मरण करने लगा।
एक प्रहर रात्रि के व्यतीत होने पर उपाश्रय में बैठे हुए एक श्रमण की दृष्टि अनायास ही आकाश में ग्रह-नक्षत्रों की अोर पड़ी। उसने देखा कि चन्द्रमा
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