________________
५०२ ]
[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
३५. श्री देवसूरि ( इनके सुविहित मार्गाचरण में सुविधि गच्छ के नाम से भी खरतरगच्छ की प्रसिद्धि हुई । )
३६. श्री नेमिचन्द्रसूरि
३७. श्री उद्योतनसूरि ( इनसे ८४ गच्छों की उत्पत्ति हुई । ) ३८. वर्द्धमानसूरि
३६. जिनेश्वरसूरि बुद्धिसागरसूरि “जिनेश्वरसूरिमुद्दिश्य खरा एते इति राज्ञा प्रोक्तं । ततः एव खरतर विरुदं लब्धं, तथा चैत्यवासिनां हि पराजय प्रापणात् कंवला इति नामधेयं प्राप्ता । एवं च सुविहित पक्षधारका जिनेश्वर सूरयो विक्रमतः १०८० वर्षेः खरतर विरुद
धारका जाता: । "
४०. जिनचन्द्रसूरि ४१. अभयदेवसूरि ४२. जिनवल्लभसूरि
४३. जिनदत्तसूरि ( इनके समय में जिनशेखराचार्य से रुद्रपल्लीय शाखा निकली। जिनदत्तसूरि से सम्बन्धित उल्लेखों के ग्रनन्तर अनुष्टुप् छन्द में निम्नलिखित ६ चरण लिखे हुए हैं :
श्री जिनदत्तसूरीणां, गुरुणां गुणवर्णनम् । मया क्षमादिकल्याण, मुनिना लेशतः कृतम् || सुविस्तरेण तत्कर्तुं सुराचार्योऽपि न क्षमः ॥ १ ॥
इस डेड श्लोक के उल्लेख से प्रारम्भ में किये गये हमारे इस अनुमान की पुष्टि होती है कि इस पट्टावली के रचनाकार ने अन्य पट्टावलियों को अपने समक्ष रखकर इस पट्टावली की रचना की होगी । )
?
४४. श्री जिनचन्द्रसूरि
४५. श्री जिनपतिसूरि
४६. जिनेश्वरसूरि (द्वितीय)
४७. जिनप्रबोधसूरि
४८. जिनचन्द्रसूरि ( इनके समय में खरतरगच्छ की राजगच्छ के नाम से भी प्रसिद्धि हुई । )
४६. जिनकुशलसूरि ५०. जिनपद्मसूरि ५१. जिनलब्धिसूरि ५२. श्री जिनचन्द्रसूरि
५३. जिनोदयसूरि ( इनके समय में विक्रम सम्वत १४२२ में बेगड खरतर
शाखा निकली । )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org