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सामान्य श्रुतघर काल खण्ड २ ]
किये ।
उपकेशगच्छ
१३. यक्षदेवसूरि (द्वितीय) १४. देवगुप्तसूरि (द्वितीय) १५. आचार्यसिद्ध (द्वितीय) १६. आचार्य रत्न प्रभ (चतुर्थ) १७. आचार्य यक्षदेव (तृतीय)
इस प्राचार्य को पांच सौ साधुयों और अनेकों श्रावकों के साथ म्लेच्छों द्वारा महुआ की लूट के समय बन्दी बना लिया गया था । एक म्लेच्छ बने हुए श्रावक ने इन प्राचार्य को किसी तरह बचा कर निकाला । श्रमणों के प्रभाव में कहीं गच्छ का उच्छेद नहीं हो जाय इस आशंका से श्रावकों ने अपने ११ पुत्र इनके चरणों में साधु बनाने के लिये प्रस्तुत किये, जिन्हें श्रापने दीक्षित किया और ग्राहड़ नगर में पहुंचे । यह घटना विक्रम सम्वत् १०० के पश्चात् की बताई जाती है ।
इन्होंने नागेन्द्र, चन्द्र, निर्वृत्ति और विद्याधर नाम के चार गच्छ स्थापित
१८. कर्कसूरि (तृतीय)
१६. आचार्य देवगुप्त (तृतीय)
२०. सिद्धसूरि (तृतीय)
इन्होंने अपने शिष्यों में से किसी को प्राचार्य पद न देकर केवल "महत्तर" की पदवी दी ।
२१. महत्तर रत्नप्रभसूरि (पंचम) २२. महत्तर यक्षदेवसूरि (चतुर्थ)
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इन्होंने समन्तभद्र सन्तानीय नाना मुनि को कोरंटक गच्छ का आचार्य. बनाया | नन्नाचार्य के बाद उनके एक मुनि यक्षदेवसूरि ने कृष्णाचार्य को अनेक आचार्य परम्परा वाले सूरिपद हीन इस गच्छ का सूरि बना कर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया ।
२३. आचार्य कक्क (चतुर्थ) । वही कृष्ण ऋषि आचार्य कक्क (चतुर्थ) के नाम से विख्यात हुए ।
२४. प्राचार्य देवगुप्त (चतुर्थ)
२५. आचार्य जयसिंह । २६. प्राचार्य वीरदेव ।
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इन्होंने अपने जीवन काल में ही सत्तावीसवें प्राचार्य को बनाया । पर आज्ञावर्त्ती न रहने के कारण उन्हें हटाकर कक्कसूरि (पंचम) को आचार्य बनाया । पर
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