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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४
तक ही नहीं, उसके बाद द्वितीय भीमदेव के राज्य तक उक्त पौरमिक, खरतर आदि गच्छों का पाटन में आना जाना बन्द था । १....... खरतरगच्छ वालों के लिये तो १३वीं शती के मध्य भाग में ही मार्ग खुल गया था परन्तु पौर्णमिक, प्रांचलिक गच्छ वाले तो जब तक पाटन में राजपूतों का राज्य रहा, तब तक पाटन से दूर-दूर ही फिरते थे। जब पुराने पाटन का मुसलमानों के आक्रमण से भंग हुआ और मुसलमानों ने वहां अपना राज्य-जमा कर नया पाटन बसाया, तब से पौर्णमिक आदि पाटन में प्रवेश कर पाये थे।"
मेरूतुगीया पट्टावली के उल्लेखों से भी यही बात प्रकट होती है कि उस समय पाटन में साम्प्रदायिक असहिष्णुता बड़े तीव्र वेग से प्रसृत हो रही थी। अनेक गच्छ अपने प्रतिपक्षी गच्छों को लोकदृष्टि में नीचा दिखाने के प्रयास में संलग्न थे। उन्होंने अपने प्रतिपक्षी गच्छों के विरुद्ध कुमारपाल को भड़काया और कहा-"प्राप
और हम सब चौथ के दिन सांवत्सरिक पर्व मनाते हैं किन्तु कतिपय गच्छों के अनुयायी पंचमी को सांवत्सरिक पर्वाराधन करते हैं। आपकी विद्यमानता में इस प्रकार का संघभेद, भ० महावीर के धर्मसंघ की फूट का द्योतक मान्यताभेद वस्तुतः समुचित
नहीं।"
मेरुतुगीया पट्टावली में इस प्रकार का उल्लेख है कि महाराजा कुमारपाल ने राजाज्ञा प्रसारित कर उन सभी गच्छों को पाटन से बाहर चले जाने का आदेश दिया, जो पंचमी के दिन सांवत्सरिक पर्व मनाने के पक्ष में थे। इस उल्लेख से यह एक नया तथ्य भी प्रकाश में आता है कि परमार्हत् के विशिष्ट सम्मानार्ह पद अथवा विरुद से विभूषित चालुक्यराज कुमारपाल जैन संघ में एकरूपता स्थापित करने के लिये कितने प्रयत्नशील एवं चिन्तनशील थे।
___ जैन वांग्मय में इस बात के भी प्रमाण उपलब्ध होते हैं कि साम्प्रदायिक विभेद के परिणामस्वरूप जैनसंघ में बढ़ती हुई खींचातानी, तीव्र होते हुए मनोमालिन्य और पारस्परिक विद्वेष से वस्तुतः अनेक प्रबुद्ध प्राचार्य एवं चतुर्विध धर्मतीर्थ के प्रबुद्ध सदस्य बड़े चिन्तित थे। उन्होंने इस प्रकार की दयनीय स्थिति को समाप्त करने और पारस्परिक सद्भाव का वातावरण उत्पन्न करने की उत्कट लालसा से सम्पूर्ण जैनसंघ में एकरूपता लाने के प्रयास भी किये। लघु शतपदी में प्राचार्य मेरुतुग ने इस प्रकार के एक प्रयास का उल्लेख किया है । लघु शतपदी के उल्लेखानुसार 'वाहकगणी' की प्रेरणा से हेमचन्द्राचार्य ने जयसिंहसूरि को कहा कि वे सभी गच्छों के लिये एक सर्वमान्य समाचारी तैयार करने हेतु 'विउणप' तट से
१. पट्टावली परागसंग्रह, पृ० ३०३ २. पट्टावली परागसंग्रह, पृष्ठ ३०४ ३. मेरुतुगीया पट्टावली (अंचलगच्छ दिग्दर्शन, पृष्ठ ७१)
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