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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ j
खरतरगच्छ
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विचरण करते हुए आपके इस प्रख्यात पट्टनगर पत्तनपुर में आये हैं । इनके अपने पक्ष वाले जैन धर्मावलम्बियों से जब इन्हें ठहराने के लिये कोई स्थान प्राप्त नहीं हुआ तो वे दोनों जैन मुनि मेरे घर आये । महाराज ! वस्तुत: वे गुणों के आकर और सशरीरी धर्म के समान समदर्शी हैं । इसलिये मैंने गुणग्राहकता के वशीभूत हो उन दोनों श्रमणोत्तमों को अपने आवास का एक भाग उन्हें रहने के लिये देकर वहां ठहराया है। इन चैत्यवासियों ने मेरे घर पर अपने भटों को भेजा। महाराज ! इसमें यदि मेरा कहीं किंचिन्मात्र भी अपराध हो तो उसके लिये आप जो भी उचित समझे मुझे अपनी इच्छानुसार दण्ड प्रदान करें।"
राज पुरोहित की बात सुनकर महाराज दुर्लभराज ने सस्मित मुद्रा में प्रश्न किया-"हमारे नगर में दूसरे राज्यों, प्रान्तों अथवा प्रदेशों से आने वाले गुणीजनों को रहने से कौन रोकता है। गुणवन्त महापुरुषों के हमारे यहां इस नगर में आने और बसने में किसी को क्या दोष दृष्टिगोचर
होता है ?".
इस पर चैत्यवासी प्राचार्य ने कहा- "महाराज ! प्राचीन काल में शक्तिशाली गुर्जर राज्य के संस्थापक चापोत्कट वनराज का शैशवावस्था में नागेन्द्र गच्छीय पंचाश्रय नामक स्थान के चैत्यवासी आचार्य देवचन्द्र ने पालन, पोषण, शिक्षा, दीक्षा आदि का प्रबन्ध करवाया । चैत्यवासी प्राचार्य देवचन्द्र ने यहाँ इस अणहिल्लपुर पट्टण नगर को बसाकर वनराज को उसका राज्य दिया। इसी उपकार के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये वनराज ने साम्प्रदायिक व्यामोह अथवा विद्वेष के कारण उसके गुरु के गच्छ की कभी किसी प्रकार की हल्की न लगे, कटु आलोचना न हो, इस दष्टि को सामने रखकर महाराजा वनराज ने राजाज्ञा प्रसारित कर सदा के लिये इस प्रकार की व्यवस्था कर दी कि केवल चैत्यवासियों द्वारा सम्मत श्रमण ही पाटण में रहें। चैत्यवासियों द्वारा असम्मत अन्य किसी भी परम्परा का साधु यहां नगर में नहीं रह सकेगा। राजन् ! वही व्यवस्था प्राज दिन तक चली आ रही है। पूर्ववर्ती राजाओं की व्यवस्थाओं का पालन पश्चाद्वर्ती राजाओं द्वारा किया जाना चाहिये। वास्तविक स्थिति तो यही है । अब आप जिस प्रकार का आदेश दें, वैसा ही किया जाय।"
लगभग अपने समसामयिक जिनपालोपाध्याय द्वारा खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली में किये गये, चैत्यवासी आचार्यों के साथ जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ के उल्लेख के स्थान पर प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने निम्न रूप में अपने ग्रन्थ प्रभावक चरित्र में लिखा है
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