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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
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अनन्तर जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि ने अपने गुरु वर्द्धमानसूरि से निवेदन किया - "भगवन् ! गुजरात प्रदेश में चैत्यवासी परम्परा का पूर्ण वर्चस्व है और पाटन उन चैत्यवासियों का एक सुदृढ़ गढ़ है । विशुद्ध प्रागमिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये हमें चैत्यवासियों के प्रमुख गढ़ रहिल्लपुर पट्टण में ही सर्वप्रथम धर्म क्रान्ति का शंखनाद पूरना चाहिये। ऐसा करने से धर्म क्रान्ति बड़ी तीव्र गति से समग्र देश में व्याप्त हो जायेगी और प्रगणित भव्यों को धर्म के विशुद्ध स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होगा । इससे आपके चिर अभिलषित लक्ष्य की पूर्ति में अपेक्षित सफलता प्राप्त होगी ।"
खरतरगच्छ
वर्द्धमानसूरि ने अपने शिष्यों से कहा - " वत्सों ! तुम्हारा विचार तो बिल्कुल ठीक है । किन्तु वहां चैत्यवासियों का ऐसा प्रबल प्रभाव है कि हमारे मार्ग में पग-पग पर उनके द्वारा अनेक बाधाएं उपस्थित की जाएंगी और हमारे समक्ष अनेक प्रकार के घोर उपसर्ग प्रस्तुत किये जाएंगे ।"
जिनेश्वर और बुद्धिसागर दोनों ने सविनय निवेदन किया- "भगवन् ! यूकाओं के डर से वस्त्रों को फैंका नहीं जा सकता। जिनशासन की सेवा हेतु हम घोरातिघोर उपसर्ग भी सहन करने के लिये सहर्ष कटिबद्ध हैं । आपकी कृपा से विरोधियों द्वारा हमारे समक्ष उपस्थित की गई सभी प्रकार की बाधाएं स्वतः ही शान्त हो जावेंगी ।”
वर्द्धमानसूरि ने अपने शिष्यों की यह अभ्यर्थना स्वीकार कर अणहिल्लपुर पट्टण की ओर विहार किया ।
राहिलपुर पट्टण में अपने शिष्यों के साथ पहुंच कर वर्द्धमानसूरि ने वहां कुछ समय तक निवास के लिये स्थान प्राप्त करने का प्रयास किया । किन्तु चैत्यवासियों के प्रबल प्रभाव के कारण उन्हें रहने के लिये कोई स्थान प्राप्त नहीं हुआ । अन्ततोगत्वा जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि ने गुरु आज्ञा लेकर राजमान्य राज पुरोहित के भवन की ओर प्रयाण किया । उन दोनों बन्धुत्रों ने अपने अगाध ज्ञान के बल पर राज पुरोहित को प्रभावित किया। राज पुरोहित सोमेश्वर ने अपने भवन में ही उन्हें रहने के लिये एक ओर का स्थान दिया ।
चैत्यवासियों को जब यह विदित हुआ कि चैत्यवासी परम्परा से भिन्न किसी श्रमण परम्परा के साधु पट्टण में आये हैं और राज पुरोहित ने उन्हें अपने भवन के एक कक्ष में रहने के लिये स्थान दिया है, तो वे बड़े रुष्ट हुए । चैत्यवासियों ने राजाज्ञा से अपनी सेवा में रहने वाले भटों ( राज कर्मचारियों) को यह निर्देश देकर राज पुरोहित के भवन की ओर भेजा कि वे नवागन्तुक श्वेताम्बर साधुत्रों को पुर पट्टण छोड़कर बाहर जाने के लिये बाध्य करें ।
हिल्ल
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