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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
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३. आचार्य जिनचन्द्रसूरि ४. प्राचार्य आम्रदेव ५. प्राचार्य नेमिचन्द्र ६. प्राचार्य यशोदेव
तीसरी परम्परा १. आचार्य उद्योतनसुरि २. आचार्य प्रद्युम्नसूरि ३. आचार्य अजितदेवसूरि (अभयदेवसूरि ने स्थानांगसूत्र वृत्ति की प्रशस्ति में
आपका नाम अजितसिंहसूरि लिखा है।) ४. प्राचार्य यशोदेवगणि (२५ अंगों की वृत्तियों के निर्माण में आपने अभयदेव
सूरि को सहयोग दिया ।)
चौथी परम्परा १. आचार्य उद्योतनसूरि २. प्राचार्य मानदेवसूरि ३. प्राचार्य जिनदेवगणि ४. आचार्य हरिभद्रसूरि (आपने वि० सं० ११७२ से ११८५ तक क्रमशः बन्ध
स्वामित्व षडशीतिकर्म ग्रन्थ वृत्ति, मुनिपति चरित्र (प्राकृत), श्रेयांस चरित्र, उमास्वाति के प्रशमरति नामक ग्रन्थ की वृत्ति और क्षेत्र समास की वृत्ति की रचना की।
पांचवीं परम्परा १. आचार्य उद्योतनसूरि २. मुनि चन्द्रसूरि ३. आचार्य अजितदेवसूरि आदि ।
१. वनवासी उद्योतनसूरी के सम्बन्ध में “दानसागर जैन ज्ञान भण्डार की गुर्वावली में
उल्लेख हैं कि अपने ८४ शिक्षार्थी शिष्यों को विभिन्न ८४ गच्छों के प्राचार्य पदों पर प्रासीन करने के पश्चात् तत्काल ही आलोचना संलेखनापूर्वक अनशन किया और वे कतिपय ही दिनों के संथारे के साथ स्वर्गस्थ हुए किन्तु इस पट्टावली से ऐसा प्राभास होता है कि वि सं. ९९४ से कतिपय वर्षों पश्चात् वि. सं. १०२० तक उद्योतनसूरि विद्यमान रहे और वि. सं. १०२० से १११० तक ६० वर्ष तक उनके शिष्य सर्वदेवसूरि और प्रशिष्यदेवसूरि का आचार्यकाल रहा ।
-सम्पादक
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