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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये । उपदेशक होने के साथ-साथ वे अपने समय के एक महान् साहित्य सर्जक थे । उन्होंने विविध विषयों पर ग्रन्थ रत्नों की रचनाएं कर सरस्वती के भण्डार की श्रीवृद्धि की । वस्तुतः प्राचार्य श्री हेमचन्द्र ग्रलौकिक प्रतिभा के धनी विद्वद्वरेण्य थे । सम्भवत: ऐसा लगता है कि उनकी इस अप्रतिम अनूठी प्रतिभा से प्रभावित होकर ही पश्चाद्वर्त्ती साहित्यकारों ने उन्हें कलिकाल सर्वज्ञ के विरुद से विभूषित कर उनके सम्बन्ध में देवी वरदान जैसे कथानकों की रचना की हो । उन्होंने विपुल मात्रा में ग्रन्थरत्नों की रचना कर साहित्य जगत् में जो एक नया कीर्तिमान स्थापित किया, उसमें महाराज सिद्धराज जयसिंह और उनके उत्तराधिकारी कुमारपाल का भी बड़ा ही महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय योगदान रहा । - यदि आचार्य श्री हेमचन्द्र को चालुक्यराज सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल का, उन दोनों के शासन का योगदान न मिला होता तो वे इस प्रकार के उच्च कोटि के विपुल साहित्य का निर्माण करने में सम्भवतः इतने अधिक सफल नहीं होते । प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि चालुक्यराज सिद्धराज जयसिंह और परमार्हत महाराजा कुमारपाल इन तीनों ही युग पुरुषों के जीवन वस्तुतः एक-दूसरे के पूरक रहे । इन तीनों में से किसी भी एक के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का मौखिक अथवा लिखित रूप में वर्णन किया जाय तो अनिवार्य रूप से शेष दो के नाम भी स्वतः ही उस विवरण में सम्मिलित हो जायेंगे ।
प्राचार्य श्री हेमचन्द्र द्वारा रचित ग्रन्थ
यह तो ऊपर बताया जा चुका है कि प्राचार्य हेमचन्द्र अपने समय के सशक्त एवं महान् ग्रन्थकार थे । उन्होंने साहित्य निर्माण के क्षेत्र में एक अभिनव कीर्तिमान स्थापित किया । जैन वांग्मय में आचार्यश्री की रचनाओं के सम्बन्ध में इस प्रकार के कतिपय उल्लेख उपलब्ध होते हैं कि उन्होंने साढ़े तीन करोड़ ( ३,५०,००,००० ) श्लोक परिमाण ग्रन्थों की रचना की । किन्तु वर्तमान में उनके द्वारा रचित जो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं उनकी श्लोक परिमाण सहित सूची निम्न प्रकार है :--
श्लोक परिमारण
नाम ग्रन्थ
१. सिद्ध म लघु वृत्ति २. सिद्ध हेम वृहद् वृत्ति
३. सिद्ध हेम वृहन्न्यास ४. सिद्ध हेम प्राकृत वृत्ति
५. लिंगानुशासन
६. उरणादिगरण विवरण
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६,०००
85,000
८४,०००
२,२००
३,६८४
३,२५०
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