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अजयदेव
गुर्जर नरेश परमार्हत महाराजा कुमारपाल के पश्चात् विक्रम संवत् १२३० तदनुसार वीर सम्वत् १७०० में अजयदेव विशाल गुर्जर राज्य के राज सिंहासन पर आसीन हुआ। इसका तीन वर्ष जैसी अल्पावधि का राज्य भी साधारणतः गुर्जर राज्य की सम्पूर्ण प्रजा के लिये और विशेषतः जैन धर्मानुयायियों के लिए बड़ा ही उत्पीड़क सिद्ध हुआ।
अजयदेव ने शासन की बागडोर सम्हालते ही अपने पूर्वजों द्वारा निर्मापित देव मन्दिरों को गिरवाना प्रारम्भ कर दिया। उसके इन धर्म विरोधी विध्वंसक: कुकृत्यों को रुकवाने के लिये प्रमुख प्रजाजनों द्वारा किये गये अनेक उपायों के निष्फल हो जाने पर प्रजाजनों के आग्रह पर अभिनय कला में निष्णात सीलण नामक राजमान्य नाटककार ने राजा को ठीक मार्ग पर लाने का बीड़ा उठाया। उसने राज प्रासाद में महाराजा अजयपाल के समक्ष अपनी आश्चर्यकारिणी नाट्यकला का प्रदर्शन करते हुए एक अद्भुत नाटक का मन्चन किया। उस नाटक में नाट्यकार सीलण ने इन्द्रजाल जैसी माया के माध्यम से अतीव सुन्दर पांच देव मन्दिरों का निर्माण किया और उन्हें अपने पुत्रों को सम्हलाते हुए कहा-“मेरे प्राणप्रिय आज्ञाकारी पुत्रों ! मेरी मृत्यु के अनन्तर भी तुम लोग इन मन्दिरों की अच्छी तरह देखभाल करते रहना, इनकी सुरक्षा का सावधानीपूर्वक ध्यान रखना।"
___तत्पश्चात् सीलण रुग्ण की भांति इस प्रकार पलंग पर लेट गया मानो वह परलोक की ओर प्रयाण करने वाला ही है। उसी समय सीलण के कनिष्ठ पुत्र ने उन कृत्रिम देव मन्दिरों को तोड़-फोड़ कर धराशायी कर दिया । अपने पुत्र द्वारा देव मन्दिरों के नष्ट किये जाने की बात सुनते ही सीलण तत्काल धूलिसात हुई देव कूलिकाओं की ओर दौड़ा और उसने अपने पुत्र की भर्त्सना करते हुए कहा :-“अरे प्रो कुपुत्र! महाराजा अजयदेव ने तो अपने पिता (पूर्वज राजा कुमारपाल) के परलोक की अोर प्रयाण कर चुकने के अनन्तर उनके द्वारा बनवाये गये मन्दिरों को तुड़वाया, पर तू तो सबसे बड़ा ऐसा कुपूत निकला कि मेरी जीवितावस्था में ही तूने मेरे द्वारा बनवाये गये मन्दिरों को तोड़-फोड़ कर धूलिसात् कर अपने आपको अधमाधम सिद्ध कर दिया है।"
नाटक में इस प्रकार के संवाद को सुनकर अजयदेव बड़ा लज्जित हुआ और उसने अधर्मपूर्ण उस विध्वंसक कार्य को त्याग दिया। देव मन्दिरों को भूलु ठित
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