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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
महाराजा कुमारपाल
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की, उसमें भी प्रमुख योगदान कुमारपाल का ही था। भारत के सुदूरस्थ प्रान्तों, राज्यों एवं विभिन्न ज्ञान भण्डारों से प्राचीन साहित्य को विपुल मात्रा में यदि कुमारपाल प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि को उपलब्ध नहीं करवाते, लेखकों के एक बहुत बड़े समूह को आचार्यश्री की सेवा में प्रस्तुत एवं समुद्यत नहीं करते तो सुनिश्चित ही था कि वे इस प्रकार जिनशासन के साहित्य की श्रीवृद्धि करने में इतने अधिक सफलकाम नहीं हो पाते।
परमाहत महाराजा कुमारपाल का गुर्जर राज्य के सिंहासन पर आसीन होने से पहले का जीवन बड़ा ही संघर्षमय और संकटों से ओतप्रोत रहा। गुर्जर राज्य का महान् शक्तिशाली राजा सिद्धराज जयसिंह कुमारपाल के प्राणों का प्यासा बन गया था अतः कुमारपाल को अपने प्राणों की रक्षा के लिये देश के विभिन्न भागों में, वनों में वर्षों तक दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। निरन्तर कई दिनों तक भूखे पेट रह कर उसे लम्बी-लम्बी पदयात्राएँ करनी पड़ीं। संन्यासी के वेष में वर्षों तक इधर-उधर भटकना पड़ा। अनेक बार प्राण संकट की घड़ियां उपस्थित हो जाने पर भी उसने साहस को नहीं छोड़ा, अपने बुद्धि-कौशल से वह सिद्धराज जयसिंह के चगुल से बचकर निकल भागा। महान् गुर्जर राज्य के राज सिंहासन पर उसे गृह कलह, आन्तरिक विद्रोह और बाहरी शत्रुओं से लोहा लेना पड़ा । इस प्रकार की विकट परिस्थितियों में भी कुमारपाल ने साहस और शौर्य का सम्बल ले अपने शत्रुओं को समाप्त कर अपने शासन.को निष्कंटक बनाया। कुमारपाल ने इस प्रकार की सभी भांति प्रतिकूल परिस्थितियों के उपरान्त भी अद्भूत् शौर्य-प्रदर्शन कर अपने राज्य की सीमाएं उत्तर में बाड़मेर मालानी पाली, चित्तौड़, उदयपुर, पूर्व में भेलसा, पश्चिम में काठियाबाड़ और दक्षिण में कौंकरण तक स्थापित कर गुर्जर राज्य को एक विशाल साम्राज्य का स्वरूप प्रदान किया।
गुर्जर प्रदेश में आज भी कर्तव्यनिष्ठा, धर्म के प्रति श्रद्धा, गुणिजनों के प्रति सम्मान, विनय, मृदुभाषिता, दया आदि मानवीय संस्कार दृष्टिगोचर होते हैं। इन संस्कारों का बीजवपन वस्तुतः प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि और परमाहत महाराजा कुमारपाल के चोली-दामन तुल्य सहकार से ही सम्भव हुआ है।
संकटकाल में परम सहायक, अपने जीवन को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, स्वदारसन्तोष रूप ब्रह्मचर्य, के साँचे में ढालने वाले, रत्नत्रयी का बोधिबीज वपन करने वाले और जिनशासन के विश्व-बन्धुत्व के महान् सिद्धान्तों पर आरूढ एवं अग्रसर कराने वाले अपने महान् उपकारी गुरु आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि को संलेखना संथारापूर्वक स्वर्गारोहण के लिए समुद्यत देख परमार्हत कुमारपाल विचलित हो उठा। अनेक भीषण संग्रामों में अपनी चतुरंगिणी विशाल सेना की अग्रिम पंक्ति पर दुर्दमनीय शत्रुओं से साहसपूर्वक लोहा लेने वाला शूरवीर कुमारपाल अपने गुरु की
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