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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
सिद्धराज जयसिंह
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और वस्तुतः उसे एकदम कुरूप देखकर उसने उसके साथ विवाह करने की बात को पूरी तरह ठुकरा दिया। इस प्रकार ठुकराये जाने से हताश हो राजकुमारी मयणल्ल देवी ने अपनी आठ सहचरियों के साथ सहर्ष मृत्यु वरण का निश्चय किया । कर्ण की माता उदयमती ने जब इस प्रकार की बात सुनी तो वह द्रवित हो उठी और उसने स्वयं ने भी उसी प्रकार मरने का संकल्प कर लिया। अपनी माता के स्वेच्छा मरण वरण की बात सुनकर मातृभक्त कर्ण ने माता के प्राणों की रक्षा करने के लिये मयगल्लदेवी के साथ विवाह कर लिया । विवाह कर लेने के उपरान्त भी कर्ण ने मयणल्लदेवी के अन्तःपुर में जाने की बात तो दूर, उसकी अोर कभी दृष्टि निपात तक नहीं किया।
इस प्रकार कतिपय मास व्यतीत हो जाने के अनन्तर एक दिन मन्त्री मुजाल को राजा के विश्वासपात्र कंचुकी से ज्ञात हुआ कि महाराजा कर्ण एक नीच जाति की नवौढा पर मुग्ध है और उससे समागम करने के लिये आतुर है। मुजाल ने मयगल्लदेवी को उस नीच जाति को रमणी के समान परिधान पहनाकर एकान्त स्थान में भेज दिया । अपनी कंचुकी से अपनी अभीप्सित नोच जाति की नारी के एकान्त स्थान में प्रागमन की बात सुनकर राजा कर्ण उस एकान्त कक्ष में गया । और वहां उस अंधकार पूर्ण कक्ष में मयणल्ल देवी को ही अपनी हीनकुलीना प्रेयसी समझते हुए उसका उपभोग किया । मयणल्लदेवी उसी रात गर्भवती हो गई और उसने राजा से विदा होते समय राजा की अगूंठी स्मरणचिह्न के रूप में मांग ली । कर्ण अपनी अगूंठी देकर अपने कक्ष में चला गया और मयणल्लदेवी अपने महल में।
दूसरे दिन प्रातःकाल राजा कर्ण को रात्रि में किये गये अपने दुष्कृत्य पर भयंकर पश्चात्ताप हुआ । उसने तत्काल मनुस्मृति आदि मान्य स्मृतियों के निष्णात ब्राह्मण विद्वानों को बुलवाया और उनसे अगम्या नीच कुल की नारी के साथ समागम का प्रायश्चित्त पूछा । उन स्मार्तों ने प्रमाण पुरस्सर बताया कि अग्निकुण्ड में प्रतप्त की गई ताम्र की पुतली का आलिंगन करना ही इस प्रकार के जघन्य अपराध को प्रायश्चित्त है । तदनुसार राजा कर्ण ने तांबे की पुतली मंगवाकर उसे अग्नि में तपाने का अपने अनुचरों को आदेश दिया। राजा को मरने के लिये कृतसंकल्प देखकर मन्त्री मुजाल ने रात्रि के रहस्य का उद्घाटन करते हुए बता दिया कि जिस स्त्री के साथ उसने समागम किया है, वह कोई नीच कुल की कन्या नहीं, अपितु कर्णाटक के महाराजा जयकेशी की कुलीना राजपुत्री और महाराजा कर्ण की परिणीता महारानी मयणल्ल देवी थी। इस रहस्य के उद्घाटन से कर्ण को ऐसा अनुभव हुआ मानो वह नर्क कुण्ड से निकल कर पुनः मृत्युलोक में आ गया है । अपनी मुद्रिका एवं महारानी मयणल्लदेवी को देखकर उसे पूर्णतः विश्वास हो गया कि उसने कोई जघन्य दुष्कृत्य नहीं किया है ।
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